पूजित वर्चस्व (kavita

April 1975

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विश्व हितों में जो बढ़कर मिटने की हिम्मत दिखलाएगा। उसका ही वर्चस्व जगत में युग-युग तक पूजा जाएगा।।

आया है संक्रांति काल कलियुग को अब जाना ही होगा। उसकी जगह नये सत् युग को और आज आना ही होगा।।

पर वह होगा तभी मनुज जब कर्म क्षेत्र में उतर पड़ेगा। औ निज श्रम से आगत युग की मनभावन नव मूर्ति गढ़ेगा।।

याद करेगा विश्व सदा उसको- जो ‘अब’ आगे आएगा। उसका ही वर्चस्व जगत में युग-युग तक पूजा जाएगा।।

माना कठिनाई होती है पहले पहल जूझ जाने में। माना, कुछ हिम्मत गिरती है, अपना ही बल अजमाने में।।

किन्तु जिन्दगी की परिभाषा ही संघर्ष और हिम्मत है। सत्प्रयास में मिट जाता जो, उसकी ही स्मृति चिर-शाश्वत है।।

निश्चय ही वह सफल बनेगा जो अपना बल अजमायेगा। उसका ही वर्चस्व जगत में युग-युग तक पूजा जायेगा।।

यदि अपने जलने से सौ प्राणों को नव ऊष्मा मिलती हो। यदि अपने से किसी हृदय की मुरझाई कलिका खिलती हो।।

तो हंसते-हंसते मिटने में- सच मानो सुख बहुत बड़ा है। बहुत सरल यह कार्य- मात्र लगता है जैसे बहुत बड़ा है।।

त्यागपूर्ण साहस से नवयुग का इतिहास लिखा जाएगा। उसका ही वर्चस्व जगत में युग-युग तक पूरा जाएगा।।

*समाप्त*


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