गत अंक में महिला जागरण अभियान पर इस वर्ष ध्यान केन्द्रित करने के लिए परिजनों का आह्वान गया था। प्रसन्नता की बात है कि उसकी आशाजनक क्रिया हुई हैं। आधी मनुष्य जाति को प्रभावित करने इस अत्यन्त महत्वपूर्ण समस्या को सुलझाने के लिए प्रबल पुरुषार्थ की आवश्यकता है। उसके लिए शक्ति जुटानी पड़ेगी। यह तभी सम्भव है जब व्यक्तित्व उस और ज्यों-त्यों करके नहीं पूरी तत्परता के साथ संलग्न हों। आह्मन इसी आशा से किया गया सन्तोष की बात है कि प्रायः भी जागृत परिजन दशा में अत्यन्त उत्साहपूर्वक जुट गये हैं।
इस दिशा में काम तो पहले से भी हो रहा था। तब उसे पूर्ण व्यवस्थित किया जा रहा है। क्योंकि अगले दिनों उसका स्वरूप देश, जाति और धर्म की सीमाएँ अन्तर्राष्ट्रीय सार्वभौम बनने वाला हैं। इतने आँदोलन को सुगठित और सुव्यवस्थित बनाकर बना होगा। जहाँ भी सार्वजनिक जीवन के लिए हो वहाँ महिला जागरण अभियान की शाखाएँ इतनी स्थापित करली जानी चाहिए।
कहा जा चुका है आरम्भ में प्रथम भूमिका नर की भूमिका नारी की होगी। शाखा संगठन खड़ा करने उसे स्वावलम्बी गतिशील बनाने तक का उत्तरदायित्व उन्हें ही निभाना होगा। घायल नारी आज की स्थिति में अकेली इतना बड़ा साहस नहीं कर सकती। बहुत कम ही स्त्रियाँ ऐसी होंगी जो अपने बलबूते इस प्रकार के संगठन खड़े कर सकें और उन्हें उत्साहपूर्वक चला सकें। लोकमंगल में अभिरुचि रखने वाले सृजन सैनिकों को अपने घरों की महिलाओं को ही इसके लिए आगे धकेलना होगा। उन्हें प्रोत्साहन प्रशिक्षण, मार्ग-दर्शन, अवकाश देते हुए इसके लिए अन्य सभी साधन जुटाने होंगे।
संगठन की ‘सदस्य’ तो महिलाएं ही होंगी, पर सहायक सभ्य पुरुष भी हो सकेंगे। महिलाएँ अग्रिम मोर्चा सम्भालेंगी। कार्यक्रमों को स्वयं सम्भालेंगी। सहायक पुरुष पर्दे के पीछे रहकर सारी व्यवस्था करेंगे और साधन जुटायेंगे। पहला कदम ‘सदस्य’ और ‘सभ्य’ बनाने का हैं। अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्य अपनी पत्नी बहिन, पुत्री या जो भी थोड़ी सक्रिय दिखाई पड़ें उन्हें सदस्य बनाये और स्वयं ‘सहायक’ बनें। कुछ लोग टोली बना कर निकल पड़ें और अपने प्रभाव परिचय क्षेत्र में दोनों प्रकार के सदस्य बना डालने का काम पूरा करलें। जो महिला सबसे अधिक सक्रिय कुशल और समय दे सकने वाली हो उसे ‘कार्य वाहक’ चुन लें और एक कोषाध्यक्ष भी चुन लें। अधिक पदाधिकारी न बनायें। ‘सदस्य’ और ‘सभ्य’ बनाने के लिए प्रतिज्ञा पत्र और उन्हें प्रमाणित करने वाले प्रमाण−पत्र छपाये गये हैं। बड़े साज के आकर्षक दुरंगे सदस्यता पत्रों और प्रमाण-पत्रों वाली दोनों पक्षों के लिए ‘सदस्य पुस्तकें’ छाप दी गई हैं। दोनों में 25-25 फार्म हैं। मूल्य सवा-सवा रुपया हैं। इनकी जहाँ जितनी आवश्यकता हो वहाँ उतनी मँगा लेना चाहिए।
दोनों प्रकार के सदस्य जितने अधिक बन सकें प्रथम प्रयास में ही बना लिये जायं ताकि उनके सहारे शाखा आरम्भ की जाय। पीछे तो उनका बनना-बढ़ना जारी ही रहेगा। सदस्यों और सभ्यों के पूरे पते समेत लिस्ट तथा कार्यवाहक का नाम शाखा कार्यालय का स्थान तथा पत्र व्यवहार का पूरा पता हरिद्वार भेज देना चाहिए। जहाँ शाखा पंजीकृत करती जायेंगे और (1) पंजीकरण प्रमाण पत्र तथा (2) कार्यवाहक का नियुक्ति पत्र भेज दिया जायेगा। इतना कार्य हो जाने पर समझा जाना चाहिए कि शाखा संगठन की स्थापना का कार्य पूरा हो गया। आशा की जायगी कि बिना समय गँवाये पूरे उत्साह से यह कार्य किया जायेगा और अगले महीने तक जहाँ भी सम्भावना है वहाँ सुव्यवस्थित शाखाएँ स्थापित होने का कार्य पूरा कर लिया जायेगा।
आगे साप्ताहिक सत्संगों को नियमित रूप से चालू करने का दूसरा कार्य है। यह सत्संग एक स्थान पर हों या सदस्यों के घरों पर अदलते-बदलते यह स्वयं ही निर्णय करना चाहिए। सत्संगों में (1) सामूहिक रूप से 24 गायत्री मन्त्रों का पाठ। (2) आधा घण्टे में हो सकने वाला संक्षिप्त हवन। (3) रामायण की चौपाइयों एवं प्रेरक गीतों के आधार पर सहगान कीर्तन। (4) प्रवचन। वह चार कार्यक्रम सत्संगों के रहा करेंगे। इसके लिए आरम्भिक सत्संगों में महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। पीछे तो वे स्वयं ही अपना काम आप कर लिया करेंगी। उपरोक्त प्रयोजनों के लिए तीन नई पुस्तकें छाप दी गई हैं। (1) सर्वसुलभ हवन-विधि (2) रामायण, कीर्तन (3) सहगान कीर्तन। इन्हें इतनी संख्या में मँगाना चाहिए जिससे उपस्थित महिलाएँ मिल-जुलकर उच्चारण करने आ आधार प्राप्त कर सकें।
पीछे घर-घर रामायण कथा, सत्यनारायण कथा कहने तथा जन्म-दिन, पुँसवन, नामकरण, अन्न-प्राशन, मुण्डन और विद्यारंभ संस्कार कराने के आयोजन भी महिला सदस्याएँ ही किया करेंगी। इस आधार पर परिवार निर्माण के लिए आवश्यक प्रशिक्षण की शृंखला सुचारु रूप से चल पड़ेगी। इस प्रयोजन के लिए फिलहाल दो पुस्तकें छापी गई हैं-(1) सत्यनारायण व्रत की प्रेरणा (2) संक्षिप्त संस्कार एवं पर्व पद्धति।
सन् 75 में महिला जागरण अभियान के चार चरण पूरे करने का लक्ष्य हैं। (1) सुव्यवस्थित शाखा संगठन की स्थापना (2) साप्ताहिक सत्संगों की नियमितता (3) कथाओं और संस्कारों के माध्यम से परिवार प्रशिक्षण तथा धर्म परम्पराओं का पुनरुत्थान (4) महिला प्रौढ़ पाठशाला की स्थापना। तीसरे प्रहर दो से पाँच बजे तक का समय ही महिलाओं को अवकाश का मिलता है। उस समय पाठशालाएँ चलाई जानी चाहिए। उसमें उस मुहल्ले की महिलाओं को पढ़ने आने का क्रम चलाया जाय। अशिक्षित महिलाएँ साक्षर बनें। साक्षरता (1) संगीत (2) गृह उद्योग (3) लोक-व्यवहार के लिए उपयोगी सामान्य ज्ञान (4) व्यक्ति तथा समाज की प्रस्तुत समस्याओं का स्वरूप तथा समाधान। इन चार विषयों को पढ़ें। इन अति महत्वपूर्ण पाठ्य-क्रमों के लिए कुछ है समय में पुस्तकें छप जायेंगी। जून के अन्त तक संगठन सत्संग, प्रचार शृंखला के तीन कार्य चल पड़े तो आशा की जानी चाहिए कि 1 जुलाई से प्रौढ़ पाठशालाओं स्थापना सम्भव हो सकेगी। पाठशालाओं का वर्ष 1 जुलाई से ही आरम्भ हुआ करेगा।
शाखा के कार्यालय का बोध कराने वाला 20*1 साइज के चार रंगों के बने टीन के साइन बोर्ड में तैयार करा लिये गये हैं। सदस्य जब भी आयोजनों उपस्थित हों तब सीने पर बिल्ले लगा कर आवे इसलिए बिल्ले भी तैयार करा लिये गये हैं।
यह सभी वस्तुएँ छुट-पुट तैयार कराने में मंत्र पड़ती हैं। आवश्यकता तो इन सभी वस्तुओं की पड़ेगी ऐसी दशा में यही उचित समझा गया कि इन वस्तुओं को इकट्ठी ही तैयार करा लिया जाय और महिला शाखाएँ इन्हें आवश्यकतानुसार शान्ति-कुञ्ज से मँगाती रहें। इनके अतिरिक्त साप्ताहिक सत्संगों के लिए हवन उपकरण-प्रौढ़ पाठशालाओं के लिए विविध उपकरणों की जरूरत पड़ेगी। सदस्यता शुल्क तो कुछ रखा नहीं गया है। पैसे की आवश्यकता मिल-जुलकर मासिक चन्दा या मुट्ठी अनाज फण्ड, ज्ञानघट आदि से ही करना पड़ेगा। इसके लिए शाखाओं द्वारा प्रयुक्त होने वाली चन्दा वसूल करने की रसीद बहियाँ भी छपा दी गई हैं। प्रारम्भिक खर्च के लिए सामान्यतया 100) की राशि तो जमा कर ही ली जानी चाहिए। इसके लिए संगठन की स्थापना के साथ-साथ ही प्रयत्न आरम्भ कर दिया जाना चाहिए।
महिला जागरण अभियान का सूत्र संचालन हरिद्वार से हो राह है इसलिये तत्सम्बन्धी पत्र व्यवहार मथुरा के पते पर न किया जाय वरन् सम्बन्धित लिखा-पढ़ी महिला जागरण अभियान, शान्ति-कुञ्ज पो0 सप्त सरोवर हरिद्वार के पते पर की जाय।
शान्ति-कुञ्ज में महिला एवं कन्या प्रशिक्षण की व्यवस्था अब और भी अधिक सुनियोजित ढंग से कर दी गई हैं। महिलाओं की शिक्षा तीन-तीन महीने की है। कन्या शिक्षा का पाठ्य-क्रम एक वर्ष रखा गया था, पर अत्यधिक आवेदन पत्र आने और सभी को अवसर देने की दृष्टि से वह समय घटाकर छह महीने का कर दिया गया है। एक सत्र जुलाई से दिसम्बर तक और दूसरा जनवरी से जून तक हर वर्ष हुआ करेगा। प्रथम सत्र में जिन्हें अपनी कन्याएँ भेजनी हों वे इसके लिए छपा आवेदन पत्र मँगालें। महिलाओं की सीटें दिसम्बर 75 तक पूरी हो चुकी है। अब नये आवेदन पत्रों का प्रवेश जनवरी 76 से ही सम्भव होगा। यह शिक्षण सत्र गत वर्ष इतने अधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं कि परिवार के सभी स्वजन अपने घरों की महिलाओं को भेजने के लिए अत्यधिक उत्सुक हैं। छः महीने की कन्या शिक्षा के बारे में ऐसी ही उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया सामने आवेगी।
महिला जागरण अभियान के संदर्भ में जो साहित्य एवं उपकरण अभी-अभी तैयार हुए हैं उनकी सूची इस प्रकार हैं-(1) सदस्याओं के प्रतिज्ञा पत्रों तथा प्रमाण पत्रों की 25 पृष्ठों वाली बड़े साइज की पुस्तक 1) 25 (2) सहायक सभ्यों के प्रतिज्ञा पत्र तथा प्रमाण पत्रों की 5 पृष्ठों वाली बड़े साइज की पुस्तक 1) (3) चन्दा वसूल करने की 50 पृष्ठ वाली पुस्तक 1) रु. (4) आठ पृष्ठ की दुरंगी छपाई वाली बीस प्रचार पुस्तकों का सैट 2) (5) सहगान कीर्तन-1) 50 (6) रामायण परायण 1) (7) नई संक्षिप्त हवन-विधि 50 पैसा, (8) संक्षिप्त संस्कार पद्धति 40 पैसा, (9) सत्यनारायण व्रत की प्रेरणा 1) (10) शाखा कार्यालय पर लगाने का 20*15 साइज की टीन बोर्ड 2) 50 (11) सदस्यों के बिल्ले 1) 50 पैसे।
यह सभी सामग्री बहुत सस्ती साथ ही भारी है। डाक से मँगाने पर लगभग मूल्य के बराबर ही डाक खर्च बैठ जायगा। साइन बोर्ड और बिल्ले तो डाक से जा ही नहीं सकते। इसलिए हरिद्वार आने जाने वालों के हाथ ही यह सामग्री मँगाई जानी चाहिए।
आशा की गई है कि अखण्ड ज्योति परिवार का प्रत्येक सदस्य महिला जागरण अभियान के लिए पूरी तत्परता व्यक्त करेगा। युग की इस महती आवश्यकता को पूरा करने में हम सब का भाव भरा साहसिक योग दान होना चाहिए।
अभियान में प्रत्येक परिजन दिलचस्पी ले
मनुष्य जाति की सर्वोपरि समस्या नारी पुनरुत्थान के लिए व्यापक प्रयत्न संगठित आन्दोलन के रूप में ही हो सकते हैं। इसके लिए अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्यों को कहा गया है कि वे अपने प्रभाव क्षेत्र की महिलाओं को आगे धकेलकर छोटा-मोटा शाखा संगठन खड़ा करने और नियमित साप्ताहिक सत्संग चल पड़ने तक उसका पूरा सूत्र संचालन करें। पीछे तो प्रगति अपनी गति से घूमने लगेगा, तदनुसार उनका उत्तरदायित्व भी हल्का हो जायेगा।
किन्तु ऐसे भी अनेक व्यक्ति हैं जो संगठन खड़ा कर सकने की स्थिति में नहीं है उनका अनुभव उत्साह इस दिशा में कम हैं फिर व्यस्तता या अन्य कारणों से वैसा करना उनके लिए सक्रिय रूप से अधिक कुछ कर सकना कठिन है। ऐसे व्यक्ति अपने घर परिवार को ही नारी पुनरुत्थान का छोटा घटक मान कर चल सकते हैं और उतने क्षेत्र में भी बहुत कुछ कर सकते हैं। परिवार में पुरुष भी होते हैं और स्त्रियाँ भी। पुरुष वर्ग अपने घर की नारियों को उनकी स्थिति के अनुरूप किसी न किसी प्रकार अधिक सुयोग्य, अधिक समर्थ बनने का मार्ग दर्शन करें तथा सुविधा सहयोग प्रदान करें। नारियाँ उस प्रयत्न में पूरी रुचि लें और प्रयत्न यह करें कि आज की अपेक्षा कल वे अधिक समर्थ, सक्रिय, सुयोग्य बन सकें, इस प्रकार प्रत्येक घर परिवार अपनी छोटी सीमा के सहज संगठन को नव जागरण आलोक की किरणों से आलोकित कर सकता है। इस स्तर का प्रयत्न तो हर भावनाशील व्यक्ति कर सकता है। अस्तु हम में से एक को भी यह कहने का अवसर नहीं रह जाता है कि हम इस अभियान में सम्मिलित हो सकने या उसमें सहायता कर सकने की स्थिति में नहीं हैं।
झोला पुस्तकालय चलाने की अपनी पुरानी परम्परा है और वह बहुत ही सफल हुई है। युग-निर्माण अभियान उसी माध्यम से सुविस्तृत क्षेत्र में फला है। वैसा प्रयास अब महिला जागरण अभियान को सुविस्तृत बनाने के लिए तत्काल आरंभ करना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए 20 छोटी प्रचार पुस्तिकाओं का सैट बना दिया गया है। उसका मूल्य दो रुपया है। उसे नर और नारी अधिकाधिक संख्या में पढ़ेंगे, तो युगान्तर चेतना का प्रकाश निश्चित रूप से फैलेगा। हम लोग कुछ सैट अपने पास रखें। उन्हें अपने संपर्क क्षेत्र में पढ़ाने का क्रम बनावें। उन सैटों को बेचें, एवं वितरित करें। इस प्रकार अभियान की उपयोगिता, आवश्यकता की ओर जन साधारण का ध्यान जायेगा और उनमें उत्साहजनक प्रतिक्रियाएँ- हलचलें उत्पन्न होंगी।
एक छोटे घर परिवार के क्षेत्र में वे कार्य-क्रम बड़े रूप में नहीं चल सकते, जो शाखा संगठनों के द्वारा किये जाने हैं, पर वे छोटे रूप में, बीज रूप में, हर घर में प्रचलित हो सकते हैं। इस प्रकार हर परिवार मिशन की गति विधियों का एक छोटा घटक और केन्द्र रह सकता है तथा उतने क्षेत्र में भी नारी उत्कर्ष की हलचलें उत्पन्न कर सकता है।
इसके लिए भी नियमित निरन्तर मार्ग दर्शन आवश्यक होगा। इस क्षेत्र की अगणित समस्याएँ हैं जिनमें से कुछ अवाँछनीयताओं के निवारण से सम्बन्धित हैं और कुछ सृजनात्मक सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन के रूप में हैँ। इनका समाधान कैसे होना चाहिए इस संदर्भ में हमें बहुत कुछ जानना समझना होगा। प्रस्तुत प्रयोजन के लिए महिला जागरण हिन्दी मासिक पत्रिका 1 जुलाई से निकलने लगेगी। उसमें मात्र संगठन का सूत्र संचालन ही नहीं होगा वरन् प्रत्येक घर परिवार में क्या सोचा और क्या किया जाना चाहिए? इसका अति महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन रहेगा। अस्त, उसकी उपयोगिता मात्र संगठनों को ही नहीं, प्रत्येक परिवार को रहेगी।
नारी पुनरुत्थान में जिन्हें तनिक भी दिलचस्पी है उन्हें दिशा एवं प्रगति के संबंध में अनेकानेक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करने के लिए भी इस पत्रिका को पढ़ना चाहिए। प्रबुद्ध व्यक्ति चिन्तन एवं दिशा निर्धारण की दृष्टि से भी प्रस्तुत पत्रिका से बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार जो कुछ भी नहीं कर सकते, पर अभियान में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए भी उसका वाचन आवश्यक है। कहना न होगा कि अब तक जिस घिसे-पिटे ढंग से महिला समस्या पर सोचा जाता रहा है- लिखा पढ़ा और किया जाता रहा है उसकी अपेक्षा अपना चिन्तन सर्वथा मौलिक और विशिष्ट स्तर का ही होगा और ऐसा होगा जिसमें हर किसी की रुचि होनी चाहिए। क्योंकि नारी समस्या हर किसी को कहीं न कहीं से निश्चय ही प्रभावित करती है। माता, पुत्री भगिनी और पत्नी के रूप में ही नहीं, मानव तत्व का आधा पक्ष होने के कारण नारी समस्त विश्व की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सता है। उस में दिलचस्पी रखना अपने आप में रुचि रखने का ही दूसरा नाम है।
इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक समझा गया है कि महिला जागरण पत्रिका के अधिकाधिक व्यक्ति सदस्य बनें। 1 जुलाई को ‘महिला जागरण’ पत्रिका का प्रथम अंक शान्ति कुञ्ज के अपने युगान्तर चेतना प्रेस से छपकर प्रकाशित हो जायेगा। इसका उत्साहवर्धक स्वागत होना चाहिए। वार्षिक चन्दा 6 रुपये हैं। पृष्ठ भी उतने होंगे जितने कि अधिक पैसे भी अधिक से अधिक दिये जा सकते हैं। सुन्दर बनाने का यथा सम्भव प्रयत्न किया जायेगा। उसे उतनी संख्या में छापा जायगा जितने कि ग्राहक होंगे। फालतू छपा कर रख लेने से जो घाटा पड़ेगा उसे सह सकना कठिन है। ऐसी दशा में यही उचित समझा गया है कि जिन्हें उसका सदस्य बनना हो वे अभी से अपने नाम नोट करादें अथवा सदा भेज दें। यह कार्य अप्रैल मई में पूरा हो जाय तो 1 जून से पत्रिका उतनी ही छपनी आरम्भ कर दी जायगी, जितने कि नाम नोट हो चुके होंगे।
शाखा संगठनों को दो-दो प्रतियाँ महिला और पुरुष सदस्यों के लिए कहा गया है उसे तो अनिवार्य ही माना जाय। शेष इस अभियान से रुचि रखने वाले सज्जन व्यक्तिगत रूप में उसे मँगाने और अपने घर परिवार को अभियान के प्रकाश से आलोकित करने का प्रयास कर सकते हैं। आशा है प्रस्तुत पत्रिका की ग्राहक सूची अप्रैल और मई में पूरी हो जाय। इसके लिए सभी परिजन उत्साह पूर्वक सहयोग देंगे।
रामायण प्रधान वानप्रस्थ सत्र
गत दो वर्षों से शान्ति कुञ्ज में वानप्रस्थ सत्र सफलता पूर्वक चल रहें हैं। प्रशिक्षित वानप्रस्थों ने उपलब्ध ज्ञान के आधार पर अपने निजी व्यक्तित्वों को असाधारण रूप से प्रतिभा सम्पन्न बनाया है और अपने-अपने क्षेत्रों में इतना कार्य किया है जिसे उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण एवं सुनिश्चित आश्वासन कहा जा सकता है।
वानप्रस्थ प्रशिक्षण के माध्यम से जन-मानस का भावनात्मक नव निर्माण करने में जो असाधारण योगदान मिल रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक समझा गया है कि इन सत्रों को यदा-कदा करते रहने से काम नहीं चलेगा, वरन् उसे स्थायी बनाने से ही समय की माँग पूरी करनी होगी। आज ऐसे असंख्य कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है जो अपने उज्ज्वल चरित्र और उत्कृष्ट सेवा साधना से युग परिवर्तन धर्मचक्र को तेजी से घुमा सकें। उन्हें तैयार करने में वानप्रस्थ परम्परा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। अस्तु शान्ति कुञ्ज की वानप्रस्थ शिक्षण प्रक्रिया को स्थाई बनाया जा रहा है और उसमें थोड़े उत्साहवर्धक हेर-फेर किये गये है।
अब तक वह शिक्षण दो महीने का था। एक महीना हरिद्वार में शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी और एक महीने कार्य क्षेत्र में व्यावहारिक सेवा शिक्षण के लिए जाना पड़ता था। दो महीने में शिक्षा पूरी होती थी। अब आगे से डेढ़ महीने शिक्षा प्राप्त करनी होगी और कार्य क्षेत्र में जाना अपनी सुविधानुसार कभी भी अब या फिर कभी पूरा किया जा सकेगा। बाहर जाने को स्वेच्छा विषय बना दिया गया है। शिक्षण एक महीने का वर्तमान बढ़े हुए पाठ्यक्रम के अनुसार कम पड़ता था अस्तु उसे डेढ़ महीने का कर दिया गया है।
भविष्य में अपना अधिकांश लोकशिक्षण रामायण और भागवत के माध्यम से हुआ करेगा। भगवान राम और भगवान कृष्ण का अवतरण भी उसी प्रयोजन के लिए हुआ था जिसके लिए अपने समय में युग-निर्माण योजना कार्य हो रहा है। अभी रामायण को हाथ में लिया गया है अगले वर्ष भागवत द्वारा लोक शिक्षण का ढाँचा खड़ा कर दिया जायेगा।
रामायण में तुलसीकृत रामचरित मानस को प्रधान आधार रखा गया है। साथ ही वाल्मीकि रामायण और अध्यात्म रामायण का भी आवश्यक समावेश कर दिया हैं। जगह-जगह प्रातःकाल रामायण की साप्ताहिक हुआ करेंगी और साथ ही सायंकाल रामायण सम्मेलनों जैसी प्रवचन व्यवस्था सार्वजनिक सभा के रूप रहा करेगी। अन्तिम दिन गायत्री यज्ञ हुआ करेगा। विषय में युग निर्माण शाखाएँ अपने वार्षिकोत्सव प्रायः प्रकार सम्पन्न किया करेगी। इन आयोजनों में जाकर के शिक्षण की आवश्यकता शान्ति कुञ्ज के प्रशिक्षित वानप्रस्थों की जोड़ी भली प्रकार पूरी कर दिया करेगी। मण्डलियाँ स्वेच्छा पूर्वक अपने घर, पड़ौस, गाँव तथा सत्र में भी रामायण प्रचार के माध्यम से युग निर्माण अभियान की जड़ें बहुत ही गहराई तक जमा देने का फल प्रयत्न करती रहेगी। इसके लिए किन्हीं शाखाओं आमन्त्रण की अथवा किसी बड़ी पूर्व तैयारी की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कभी भी कहीं भी यह रामायण सप्ताह नियोजित किये जा सकेंगे। वर्तमान शाखाओं के सीमित क्षेत्र तक अवरुद्ध न रह कर जनसंपर्क का विशाल क्षेत्र पकड़ सकना इसी प्रकार सम्भव होगा।
इस प्रयोजन के लिए वानप्रस्थों का प्रशिक्षण इस वर्ष रामायण के मध्यम से किया गया है जिन्हें संस्कृति का भी ज्ञान होगा, उन्हें अगले वर्ष में भागवत भी पढ़ाई जाने लगेगी। रामायण सप्ताह का कथा-वाचन तथा युग की समस्याओं का स्वरूप तथा समाधान प्रस्तुत करने वाले रामायण के माध्यम से दिये जाने वाले भाषण दे सकना इस शिक्षण का मुख्य पाठ्यक्रम है, साथ ही भाषण-शैली निखारने का निरन्तर अभ्यास करना होगा। इतना संगीत सिखा देना भी इसी प्रशिक्षण में जुआ हुआ है जिसके सहारे चौपाइयाँ, दोहे तथा कीर्तन हारमोनियम, खंजरी, तबला, मजीरा, घुंघरू, इकतारा आदि वाद्य यन्त्रों के सहारे गाये जा सकें। संगीत शिक्षा के लिए छः सप्ताह कम है और वह उपयुक्त कण्ठ और दिमागी पकड़ न होने पर हर किसी के लिए सम्भव भी नहीं है तो भी यह प्रयास किया जायेगा कि अपनी योग्यता के अनुरूप शिक्षार्थी जितना अधिक संगीत ज्ञान प्राप्त कर सकें, उन्हें उसके लिए पूरा-पूरा अवसर सरलतम शिक्षण पद्धति के सहारे उपलब्ध कराया जाय। रामायण के कथा-प्रसंग वैसे ही अपने देश में बहुत लोकप्रिय हैं, उनमें साथ-साथ संगीत का समावेश रहने से आकर्षण और भी अधिक बढ़ जायेगा। लोकमंगल के साथ लोकरंजक के इस अभिनव प्रयास में सफलता की बहुत बड़ी आशा किरणें छिपी हुई हैं।
गायत्री हवन पद्धति, संस्कार प्रक्रिया, पर्व पद्धति, सत्य नारायण कथा आदि धर्म तन्त्र से लोक निर्माण की शिक्षाएँ साथ-साथ चलेंगी और सिखाया जायगा कि व्यक्ति परिवार और समाज की अभिनव रचना के लिए बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्रान्ति के लिए, क्या और कैसे प्रचारात्मक रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कदम उठाये जाने चाहिये।
कहना न होगा कि यह प्रशिक्षण सृजन सेना के प्रत्येक सैनिक को अनिवार्य रूप से प्राप्त करना चाहिए। निज के व्यक्तिगत जीवन के परिष्कार और लोक मंगल के लिए अभीष्ट कुशलता प्राप्त करने के लिए यह सामयिक और कितना प्रभावोत्पादक है इसे सहज ही प्रयोग की कसौटी पर भली-भाँति परखा जा सकता है। जीवन साधना के महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेश रहने से इन सत्रों की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है।
सामयिक वानप्रस्थ युग के अनुरूप एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, अमुक समय तक साधु ब्राह्मण की पुण्य परम्पराओं का निर्वाह करके फिर अपने सामान्य जीवन में लौट जाना तथा समय-समय पर उस व्रत को धारण करके अपनी आत्मिक स्थिति तपस्वी, अनुष्ठानकर्ता जैसी बनाते रहना, आत्मिक प्रगति का क्रमिक विकास करने की दृष्टि से हर दृष्टि से उपयोगी हैं। जिन्हें वर्ष में एक दो महीने का भी समय इस प्रयोजन के लिए मिल सकें उन्हें बड़भागी कहा जायेगा। ऐसे लोग अपने परिवार में बहुत हो सकते हैं। उन्हें इन रामायण बहुल, वानप्रस्थ सत्रों में आग्रह पूर्वक आमन्त्रित किया जा रहा हैं।
इन दिनों प्रथम सत्र 16 मई से 20 जून तक दूसरा सत्र 1 जुलाई से 15 अगस्त तक और तीसरा सत्र 16 अगस्त से 30 सितम्बर तक हैं। फिलहाल तीन सत्रों की ही घोषणा की गई है। वे यों चलेंगे तो आगे भी, पर उनकी तारीखें पीछे घोषित की जायगी। आने के इच्छुक अभी तो इन तीन में से जिसमें आने की सुविधा हो उन्हीं में आने के लिए आवेदन पत्र भेजें। आवेदन−कर्त्ताओं का शारीरिक, मानसिक दृष्टि से निरोग निर्व्यसनी और अनुशासन प्रिय होना आवश्यक है।
दस−दस दिवसीय साधना सत्रों की शृंखला 3 जुलाई तक चलेगी। कुछ समय बन्द रहने के उपरान्त अक्टूबर में उसके तीन सत्र फिर होंगे।
शिक्षार्थियों को छोटे बच्चे साथ लेकर चलने के लिए पहले से ही कठोर प्रतिबन्ध है अब अशिक्षित महिलाओं को साथ लाने या उनकी स्वीकृति माँगने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बच्चों से व्यस्त प्रशिक्षण प्रक्रिया में गड़बड़ी फैलती है और अशिक्षित महिला कुछ सीख समझ न पाने के कारण व्यर्थ ही जगह घेरती हैं यह प्रतिबन्ध बार−बार दुहराया जाता रहा है कि शान्ति कुञ्ज में धर्मशाला जैसी ठहरने की व्यवस्था नहीं है। पर्यटक, दर्शनार्थी, मिलने भेंटने के इच्छुक पहले ठहरने का अन्यत्र प्रबन्ध करें, पीछे एक से पाँच बजे के बीच मिलने के लिए आयें। आशा है कि विवशता को ध्यान में रखते हुए इस अनुरोध का उल्लंघन करके हमें असमंजस में न डालेंगे।
गायनों और प्रवचनों के टेप
टेप रिकार्डर के माध्यम से प्रेरक संदेश जन−जन तक पहुँचाने की प्रक्रिया अब व्यवस्थित रूप से चल पड़ी है। इस वर्ष के लिए दस गायन और इस प्रवचन प्रसारित किए गये हैं। गायन शान्ति कुञ्ज की कन्याओं द्वारा गाये गये है और प्रवचन गुरुदेव के हैं।
गीतों के बोल हैं− (1) युग युग से हम खोज रहे हैं सुरपुर के भगवान को (2) जिसने सुपन्थ दिखाया करें उस व्यक्ति का जयकार (3) घर घर में निराली ज्योति जले (4) जोश न ठण्डा होने पाए कदम मिलाकर चल (5) हम धनी न चाहे हों धन के पर हृदयधनी होवें (6) है अगर प्रभु प्रेम पाना तो हृदय में प्यार भरलो (7) एक दिन ही जी मगर इंसान बन कर जी (8) कहाँ छुपा बैठा है अब तक वह सच्चा इंसान (9) जीवन के बुझते दीपों में हम फिर नव ज्योति जलायेंगे (11) नर से नारायण बन जायें।
प्रवचनों के शीर्षक है−(1) जीवन लक्ष्य और उसका स्वरूप (2) समस्त समस्याओं का एक ही हल (3) हम बदलें तो दुनिया बदले (4) व्यक्ति निर्माण के 3 आधार (5) परिवार निर्माण की अनिवार्यता (6) समाज निर्माण का उत्तरदायित्व (7) महिला जागरण और उसकी आवश्यकता (8) महिला जागरण अभियान का स्वरूप और कार्य पद्धति (9) विवाहोन्माद (10) स्वच्छ प्रजातन्त्र की स्थापनाएँ हमारी भूमिका।
इन्हें कोई भी परिजन अपने टेपों पर उतार कर ले जा सकते हैं। जो डाक से भेजेंगे उन्हें उतार कर डाक से ही वापिस भेज दिया जायगा। भेजने का डाक खर्च देना होगा।
अपने टेप रिकार्डर कैसेट प्रणाली के हैं। अतः केवल कैसेट टेपों पर ही प्रवचन तथा गीत टेप करके भेजे जा सकते हैं। जिनके पास स्थूल प्रणाली के टेप रिकार्डर है उन्हें अपनी मशीन रिकार्डिंग के लिए शान्ति कुञ्ज भेजनी होगी। कैसेट 90 मिनट वाले ही होने चाहिए क्योंकि भाषण 45-45 मिनट के हैं। सी 90 टेपों में एक ओर एक भाषण ठीक प्रकार आ जाते हैं।
एक बात और ध्यान रखी जाय। टेप सभी मैगनेटिक होते हैं। उन्हें लोहे के डिब्बे अथवा अलमारी में नहीं रखना चाहिए। उनके पास लोहे की वस्तुएँ भी नहीं रखनी चाहिए। अन्यथा टेपों में भरी आवाज खराब हो जाती हैं। टेप शान्ति कुञ्ज भेजने में भी डिब्बों का प्रयोग न किया जाय।