उस दिन भारी तूफान आया। बड़े−बड़े विशाल वृक्ष उखड़ कर धराशायी हो गये। किशोर पौधे उखड़े तो नहीं, पर डर बुरी तरह गये। वे काँप रहे थे कि अगली कल आने वाला तूफान उन्हें भी इसी तरह उखाड़ फेंकेगा।
रात्रि भर चिन्ता से खिन्न उस वन के सभी नवोदित वृक्ष सकपकाये बैठे रहे, उनके चेहरों पर गहरी उदासी छाई थी।
प्रभातकालीन मलायानिल उधर से निकला तो उसने उपवन में छाई इस उदासी का कारण पूछा−मालूम हुआ कि अन्धड़ ने विशाल वृक्षों को उखाड़ फेंका है इसी असमंजस में ये किशोर पौधे डरे सहमे बैठे हैं। संकट कहीं उन्हें भी न धर दबोचे।
मलायानिल ने किशोर वृक्षों को दिखाया कि बूढ़े पड़े अन्धड़ ने कहीं उखाड़े उनकी जड़े पहले से ही सड़ गई हैं। अन्धड़ का बहाना लेकर वे खुद ही गिरे और खुद ही मरे है।
किशोरों को ढाढ़स बंधा और उन्होंने साहस पूर्वक पूछा−क्या हमारे लिए कोई संकट नहीं हैं।
मलायानिल ने उन्हें पूर्ण आश्वस्त करते हुए कहा− अन्धड़ से जरा भी मत डरो। जब तक तुम्हारी जड़े मजबूत हैं तब तक तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अपनी जड़े मजबूत रखो और निर्भयता पूर्वक जीवनयापन करो।