रेगिस्तान युद्ध में सेनापति सरसिड़ने गम्भीर रूप से घायल हुये। मैदानी क्षेत्रों के युद्ध बड़े भयंकर होते हैं, फिर रेगिस्तान का तो कहना ही क्या। दिन भयंकर युद्ध और सूर्य ताप से त्रस्त सर सिड़ने व्याकुल पड़े थे, तभी एक अफसर उन्हें खोजता हुआ, उधर आ पहुँचा। उसने सेनापति को पहचाना दौड़कर उनके पास पहुँचा। कोई सन्देश दे, इससे पूर्व ही सिड़ने में पानी माँगा। प्यास के मारे दम करूँ को आ रहा था। उस समय जल ही सबसे सुखद सन्देश हो सकता था।
अफसर के पास एक ही केतली पानी था। उसने तुरन्त केतली खोली और सर सिड़ने की ओर बढ़ाई। हाथ में केतली थाम तो ली पर पानी मुँह की ओर नहीं बढ़ा। उनकी आत्मा से आवाज आई-तेरे जैसे सैकड़ों सिपाही रणांगन में आहत पड़े है, उनमें से कितने ही तुझसे भी अधिक प्यासे होंगे। उन्हें प्यासा छोड़कर तेरा पानी पी लेना कहाँ तक ठीक है?”
हाथ वहीं का वहीं रुक गया। आँखें पास पड़े घायल सैनिकों की ओर उठीं। एक सिपाही प्यास से व्याकुल हाथ उठाये पानी के लिये संकेत कर रहा था। प्यास के मारे उसके कंठ से बोल भी नहीं निकल रहे थे। सिड़ने की आँखें भर आई और उन्होंने कहा-मेरा सिपाही मुझसे अधिक प्यासा है, जो अफसर लो यह पानी उस तक पहुँचा दो।”
अफसर ने केतली लेकर सिपाही को थमा दी। पानी पीकर सिपाही के प्राण लौट आये पर जब अफसर दुबारा लौट कर सिड़ने के पास आया तो देखा अब उनका शरीर शेष है, प्राण तो कहीं उड़ गये हैं।