काँग्रेस का अधिवेशन हो रहा था और वर्षा की झड़ी लगी थीं एक-एक करके नेता लोग निकले चले जा रहे थे। एक कोने में खड़े श्री व्यंकटेशनारायण तिवारी वर्षा रुकने की प्रतीक्षा में थे, अनेक नेता छाता लगाये हुए, उनके सामने से गुजरे और सभी ने केवल एक बात पूछी-क्यों व्यंकटेश छाता नहीं लाये” अन्त में आये महामना मालवीय, सिमटे खड़े तिवारी जी को देखते हुए बोले-अरे व्यंकटेश, तुम यहाँ खड़े हो, आओ छाते में हो लो।”
महामना ने उन्हें खींचकर अपने छाते में ले ही लिया और बोले-आखिर यह छाता है, किस काम के लिये?”