श्री रामकृष्ण परमहंस

January 1969

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श्री रामकृष्ण परमहंस शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। वह समझा रहे थे कि जीवन में आये अवसरों को व्यक्ति साहस तथा ज्ञान की कमी के कारण खो दे रहे थे। अज्ञान के कारण उस अवसर का महत्व नहीं समझने पाते। समझकर भी उसके पूरे लाभों का ज्ञान न होने से उसमें अपने आपको पूरी शक्ति से लगा नहीं पाते। शिष्यों की समझ में यह बात ठीक ढंग से न आ सकी। तब श्रीरामकृष्ण देव बोले-नरेन्द्र कल्पना कर तू एक मक्खी है। सामने एक कटोरे में अमृत भरा रखा है। तुझे यह पता है कि यह अमृत है, बता उसमें एकदम कूद पड़ेगा या किनारे बैठकर उसे स्पर्श करने का प्रयास करेगा।”

उत्तर मिला-किनारे बैठकर स्पर्श का प्रयास करूँगा। बीच में एकदम कूद पड़ने से अपने जीवन अस्तित्व के लिए संकट उपस्थित हो सकते है। साथियों ने नरेन्द्र की विचारशील को सराहा। किन्तु परमहंस जी हंस पड़े। बोले-मूर्ख-जिसके स्पर्श से तू अमरता की कल्पना करता है, उसके बीच में कूदकर, उसमें स्नान करके, सरोवर होकर भी मृत्यु से भयभीत होता है।”

“चाहे भौतिक उन्नति हो या आध्यात्मिक जब तक आत्म शक्ति का पूर्ण समर्पण नहीं होता सफलता नहीं मिलती” यह रहस्य शिष्यों ने उस दिन समझा।


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