बुद्ध आस्वान राज्य के किसी नगर से गुजर रहे थे। यह स्थान उनके विरोधियों का गढ़ था। जब विरोधियों को बुद्ध के नगर में होने का पता चला तो उन्होंने एक चाल चली। एक कुलटा स्त्री के पेट में बहुत-सा कपड़ा बाँधकर भेजा गया। वह स्त्री जहाँ बुद्ध थे वहाँ पहुँची और जोर -जोर से चिल्लाकर कहने लगी-देखो यह पाप इसी महात्मा का है। यहाँ ढोंग रचाये घूमता है और अब मुझे स्वीकार भी नहीं करता।” सभा में खलबली मच गई। उनके शिष्य आनन्द बहुत चिन्तित हो उठे और पूछा-भगवन् अब क्या होगा?”
बुद्ध हँसे और बोले-तुम चिन्ता मत करो कपट देर तक नहीं। चिरस्थायी फलने फूलने की शक्ति केवल सत्य में ही है।” इसी बीच उस स्त्री की करधनी खिसक गई और सारे कपड़े जमीन पर खिसक पड़े। पोल खुल गई। स्त्री अपने कृत्य पर बहुत लज्जित हुई। लोग उसे मारने दौड़े पर बुद्ध ने यह कहकर सुरक्षित लौटा दिया-जिनकी आत्मा मर गई हो, वह मरों से अधिक हैं, उन्हें शारीरिक दण्ड देने से क्या लाभ?”