पूर्व जन्मों के सम्बन्धित संस्कार

January 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर के सम्बन्ध में एक किंवदंती प्रचलित थी कि वह पहले जन्म में ब्राह्मण था। उसका नाम मुकुंद था। उस जीवन में उसने भगवान शिव की घोर तपश्चर्या सम्पन्न की। उसकी इच्छा एक बहुत बड़ा राजा बनने की थी। बहुत काल तक उपासना करने पर भी जब इच्छापूर्ति के कोई लक्षण दिखाई न दिये तो मुकुंद ने निराश होकर आत्म हत्या कर ली। मृत्यु के समय भी उसकी सम्राट बनने वाली इच्छा बनी रही। कहते है उसी के फलस्वरूप उसको दूसरे जन्म में सम्राट होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

इस घटना को पढ़कर दो प्रश्न मस्तिष्क में उठते है-यह कि क्या पूर्वजन्मों के संस्कारों का इस जन्म से सम्बन्ध हो जाता है, (2)यह कि यदि इस जीवन में न मिले तो अन्यत्र जीवन में वह सम्भव है क्या?

इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम शास्त्रीय मान्यताओं को जान लेना आवश्यक है, गीता कहती है-

तत्र तं बुद्धि संयोग लभते पौर्वदेहिकम्। यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन - 6।43

जो पुरुष इस जीवन में साधना करता है और ज्ञान संचय कर लेता है, वह पुनर्जन्म में उन संस्कारों को अनायास ही प्राप्त कर लेता है। यह संस्कार उसे ईश्वर प्राप्ति में सहयोग देते है।

थियोसोफी भी इस बात को को मानती है। इस सिद्धांत के अनुसार जीव का मानसिक पदार्थ बदल कर कारण शरीर बन जाता है और अपने सब अनुभवों को अपने में सोख लेता है, इसलिये कोई अनुभव बेकार नहीं जाता है और वह नया बना हुआ’ आदमी अपने युगों तक के अस्तित्व में उन अनुभवों को साथ रखता है। इस तरह मनः लोक में जीवात्मा का एक व्यक्तित्व बना रहता है। अर्थात् मनुष्य जो कुछ बनाना चाहता है, खाना चाहता है, जहाँ कही भी जाना या कुछ करना चाहता है, उसका सर्वप्रथम मस्तिष्क में ही रेखा चित्र बनता है, कई बार परिस्थितियाँ ऐसी नहीं होती कि इच्छाएँ पूर्ण हो ही जाये तो वह इच्छा मस्तिष्क में ही दबकर रह जाती है। नष्ट नहीं होती और समय समय पर उकसाती रहती है। फिर कोई ऐसा संयोग आता है। इसी तरह कारण शरीर का विकास होते होते मनुष्य एक दिन ईश्वर को भी प्राप्त कर लेता है।

इस सिद्धान्त को प्रमाणित करने वाले अनेक संदर्भ विचित्र ढंग से हमारे सामने आते है। सूरत के एक ज्योतिषी की दस वर्षीया पुत्री ने अभी हाल ही में रतलाम में अपनी अद्भुत ज्ञान शक्ति से हजारों लोगों को चकित कर दिया।

इस बालिका का नाम सरोजबाला है। वह बिल्कुल अनपढ़ है। दिन में वह सामान्य लड़की की भाँति रहती है और रात में जब वह प्रवचन करने के लिये मंच पर आसन ग्रहण करती है तो गीता, रामायण, महाभारत, पुराण, योग, वेदान्त आदि विभिन्न विषयों पर धाराप्रवाह और विद्वतापूर्ण भावना देने लगती है। इस बालिका ने धर्म प्राण जतन में पुनर्जन्म के बारे में प्रचलित विश्वास को दृढ़ किया है, वहाँ यह भी सिद्ध किया है कि हमारे इस जीवन के संस्कार पूर्वजन्मों के साधनों का ही फल होते है, इस बालिका के पिता ने बताया कि जब वह कुल 2 वर्ष की थी, तभी उसने गायत्री मन्त्र का उच्चारण किया था। 5 वर्ष की आयु में भूतपूर्व स्व. राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के समक्ष इसका प्रवचन हो चुका है, तीन वर्ष की आयु पूर्वजन्म की अनेक बातें बताई थीं।

मृत्यु यद्यपि अचेतन अवस्था होती है तो भी जागृत आत्माओं की अनुभव शक्ति क्षीण नहीं होती। उनके मानसिक कण क्रियाशील बने रहने से पूर्व स्मृतियाँ बनी रहती हैं, अचेतन अवस्था में भी जीव जहाँ भी होता है, वहाँ की परिस्थितियों का उसे ज्ञान बना रहता है, उदाहरणार्थ निद्रावस्था में दिखाई देने वाले स्वप्न कई बार इतने सत्य होते हैं कि ऐसा लगता है, वह बात स्थूल आँखों से ही देखी गई हों। धुँधले दृश्य समझ में नहीं आते पर जितना अन्तःकरण और मन-पवित्र एवं शुद्ध होता है, स्वप्न के हृदय उतने ही स्पष्ट और साफ दिखाई दे आते हैं, ऐसे कई उदाहरण हमें मिलते रहते हैं। अब यह विश्वास विदेशों में भी दृढ़ होते जा रहे हैं।

सिडनी से प्राप्त एक समाचार ऐसा ही है। यहाँ पुलिस ने एक व्यक्ति को 2 हजार डालर का पुरस्कार दिया है, इस व्यक्ति ने स्वप्न द्वारा एक मृत बालिका के शव का पता लगाया है, 64 वर्षीय विधुर टीम टीचर ऐसे करतब कई बार दिखा चुके है। इस बार उनसे पुलिस ने एक मामले में सहयोग की अपील की थी। सुपर बाज़ार से एक 7 मास की बालिका को उठा ले जाया गया। पुलिस ने शव का पता लगाने की भरसक चेष्टा की पर सफलता न मिली, अन्त में टीम फीचर ने उसका पता बताकर लोगों को आश्रय चकित कर दिया। टीम फीचर रहस्यमय मृत्युओं और पुनर्जन्म आदि पर विशद अध्ययन कर रहे है।

इन मान्यताओं की पुष्टि में प्रो. बी.डी. ऋषि की खोजे और उपलब्धियाँ बड़ा महत्व रखती है। वे शास्त्र की इस मान्यता का अनुमोदन करते है कि मृत्यु के बाद जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता वरन वह अपनी पूर्व स्मृतियों और संस्कारों के साथ कही विचरण कर रही होती है ओर विशेष मानसिक संकल्प द्वारा उसे आकर्षित एवं वार्तालाप भी किया जा सकता है।

श्री ऋषि का जन्म अहमदनगर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। बी.ए.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1915 में इन्दौर में जब नियुक्त हुये। 4 वर्ष बाद उनकी धर्मपत्नी सुभद्रा देवी का अचानक देहान्त हो गया। उनकी इच्छा मृत पत्नी से वार्ता करने की हुईं। इसलिये वे इस खोज में लग गये। उन्होंने इसमें सफलता भी पाई और अन्त में अपना जीवन परलोक विद्या की जानकारी एवं खोज करने में ही लगा दिया। वे मृत आत्माओं को बुलाने और उनसे वार्तालाप के अनेक आश्चर्यजनक प्रस्तुत कर चुके है।

एक बार श्री देशपाण्डे एवं भूतपूर्व संसद सदस्य पण्डित ब्रजनारायण ‘ब्रजेश’ ने बम्बई जाकर श्री ऋषि से भेंट की ओर अपने घनिष्ठ मित्र प्रसिद्ध उद्योगपति स्व. भागीरथ जी मेहता का आवाहन किया। मृतात्मा के आ जाने पर श्री देशपाण्डे ने प्रश्न किया-मेहता जी (मृतात्मा) आप ब्रजेश जी को कभी कभी हँसी में कुछ कहा करते थे, क्या बतायेंगे-क्या कहा करते थे? उत्तर के लिये एक सफेद कागज सबके सामने छिपाकर रखा गया और जब उसे निकाला गया तो उस पर लिखा था-सफेद साँड’। श्री ब्रजेश ने स्वीकार किया कि एकान्त में मेहता जी सचमुच उन्हें कई बार ‘सफेद साँड’ कह दिया करते थे।

‘सरस्वती’ के सम्पादक श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता स्वर्गीय प. द्वारिकाप्रसाद चतुर्वेदी भी मृतात्माओं को बुलाने का प्रयोग किया करते थे। वे एक मेज़ पर पंचपात्र और उस पर एक चमची रखा करते थे। मृतात्मा आती थी, तो पंचपात्र अपने आप बजने लगता था।

ऐसे प्रयोग अब जर्मनी, अमेरिका, जापान और ब्रिटेन में भी बहुतायत से होने लगे है। लन्दन से प्रकाशित होने वाले ‘दि होल्डस’ पत्र के सम्पादक श्री मौरित बारबानिल का कहना है कि-इस दृश्य जगत के अतिरिक्त भी एक दूसरा विलक्षण लोक है, जहाँ मृत्यु के उपरान्त जीवन है “ब्रिटेन के ही रिटायर्ड एयर मार्शल लार्ड डागिंड ने कई ऐसे प्रयोग कर मृतात्माओं के अस्तित्व में अपना विश्वास प्रगट किया है।

जीवात्मा के अदृश्य लोकों में अस्तित्व का कारण एक मात्र इच्छाएँ और वासनायें होती है। महोपनिषत् में महर्षि ऋभु ने अपने पुत्र को ब्रह्म विद्या का उपदेश दिया है। पाँचवें अध्याय में उन्होंने कहा-

एवं जीवो हि संकल्प वासना रज्जु वेष्टितः। दुःख जालपरीतात्मा क्रमादायाति नोचक्तम्॥

इति शक्तिमयं चेतो धनाहंकारता गतम्। कोशकार्राक्रमिरिव स्वेच्छया यातिबन्धनम्॥

हे वत्स! इस प्रकार संकल्प और वासना रूपी रस्सी से बँधा हुआ प्राणी दुःख पाता रहता है और अन्त में अधोगति को प्राप्त हो जाता हैं जैसे रेशम का कीड़ा अपनी इच्छा से बन्धन में बँधा रहता है, उसी प्रकार चित्त-वृत्तियाँ में फँसे जीव को बन्धन से जकड़े रहती हैं।

आध्यात्मिक साधनाओं का उद्देश्य इसीलिये अन्तःकरण की शुद्धि रखा गया हैं। कामनायें, वासनायें, अहंभाव समाप्त हो जाते हैं तो जीव अपने-आप परमगति को प्राप्त कर लेता है, इस साधना में यदि कहीं पूर्ण सफलता न मिले तो भी उपरोक्त कथन यह बताते हैं कि आत्मा लोकों में रहकर पुनर्जन्म के रूप में प्रकट होती हैं, वहाँ उसे अगले विकास की परिस्थितियाँ अनायास ही मिल जाती है।

जिनकी वासनायें और इच्छाएँ कम नहीं होती, उस मनुष्य का अन्तःकरण दिनों दिन मलिन और पतित होता जाता है, वह अदृश्य लोक में प्रेतात्माओं के रूप में रहकर पुनः इस संसार में जन्म लेता और जिस मनोदशा से मृत्यु को प्राप्त हुआ था, वही से फिर अपनी जीवन लीला प्रारंभ करता है। अब यह उसका अपना अधिकार है, चाहे सत्कर्मों द्वारा ऊर्ध्वलोकों को प्राप्त करे या फिर दुष्कर्म करे और पुनः अधोगति में घूमता रहे।

12 अगस्त के वीर अर्जुन में इस संदर्भ में एक सनसनी खोज समाचार इस तरह छपा है-लुधियाना -एक मुस्लिम पीर ने एक हजार वर्ष तक प्रेत की योनि में रहने के बाद गत 5 अगस्त को लुधियाना जिले के ललितो खुर्द में जन्म लिया है।’

यह रहस्योद्घाटन स्थानीय ग्रेवाल कालेज के प्रिंसिपल ने किया है। आप लिखते हैं कि इस पीर का मजार उत्तर-प्रदेश के एक स्थान पर है। प्रेत-योनि में यह आत्मा एक युवक छात्र मनमोहन सिंह के शरीर में प्रवेश कर गाई। मनमोहन सिंह सहारनपुर जिले के खेड़ा मुगलग्राम के डा. शेरसिंह का पुत्र और नवें कक्षा का छात्र है। इस बच्चे की झाड़-फूँक हापुड़ के सन्त राड़ेवाला ने की। वहाँ बच्चे के मुँह से प्रेत ने कहा-आप वली अल्लाह हैं मुझे मुक्ति दिलाये मैं 1 हजार वर्ष पूर्व मुसलमानों के साथ भारत आया था। इस युवक से मेरी अनबन थी, मृत्यु के समय मुझे इससे बदला लेने का संकल्प बना रहा। प्रेतयोनि में मुझे बदला लेने का अच्छा अवसर मिला। वह लड़का कुछ दिन संत की संगत में रहा। वहीं उसे बताया गया कि वह ललतों के गुरुदेवसिंह के यहाँ जन्म लेगा।”

प्रिंसिपल साहब लिखते हैं-मुझे इन तमाम बातों पर तब विश्वास हुआ, जब मैंने स्वयं मनमोहन सिंह से भेंट की, उसने कई विलक्षण बातें बताई। उसने धर्मराज का सूक्ष्म एवं दिव्य रूप भी बताया।” एक वर्ष बाद इसी आत्मा ने गुरुदेवसिंह के यहाँ जन्म लिया।

प्रिंसिपल साहब लिखते हैं-मुझे इन तमाम बातों पर तब विश्वास हुआ, जब मैंने स्वयं मनमोहन सिंह से भेंट की, उसने कई विलक्षण बातें बताई। उसने धर्मराज का सूक्ष्म एवं दिव्य रूप भी बताया।” एक वर्ष बाद इसी आत्मा ने गुरुदेवसिंह के यहाँ जन्म लिया।

यह तथ्य और घटनायें ऐसी हैं, जिन्हें काल्पनिक नहीं कहा जा सकता। मनुष्य शरीर की सूक्ष्म कोशिकाओं की विज्ञान तेजी से जानकारी प्राप्त कर रहा हैं, जब यह जानकारियां समुन्नत रूप में सामने आयेंगी तो इस संबंध में अनेक आश्चर्यजनक प्रमाण प्रस्तुत किये जा सकेंगे। अभी तो इतना ही कहना पर्याप्त है कि मनुष्य जैसा सर्वोत्तम जीवन पाकर भी जिसने आध्यात्मिक लक्ष्य पूरा न किया- उसका जन्म निरर्थक ही गया। पर जो अब से ही प्रयत्न में जुट गया, साधनायें प्रारंभ कर दीं, उसे उन संस्कारों का लाभ अब नहीं तो कालांतर में मिलेगा अवश्य। साधनायें कभी निष्फल नहीं जाती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118