राजेन्द्र बाबू अपने गाँव जीराबाई जा रहे थे। नौका में एक मुसाफिर ने सिगरेट सुलगाई। सिगरेट के धुँए से देश रत्न की खाँसी उभर आई। जब गंध असह्य हो उठी, तो उन्होंने मुसाफिर से पूछा- “यह सिगरेट आपकी ही है न?” उत्तर मिला- मेरी नहीं तो क्या आपकी है। देश रत्न ने कहा- तो यह धुँआ भी आपका ही हुआ। इसे अपने पास न रखकर दूसरों पर क्यों फेंकते हो? मुसाफिर ने जलाकर सिगरेट फेंक दी।