विद्वता युवकों को संयमी बना देती है। यह बुढ़ापे का आराम है, निर्धनता निर्धनता में धन का काम देती है और धनवानों के लिये आभूषण का काम करती है।
-सिसरो
शरीर में काम क्रोध, मोह सन्तोष , दण्ड, दया आदि अनेकों भावनायें हैं, यह सब या तो आनन्द की प्राप्ति के लिये हैं अथवा आनन्द में विघ्न पैदा होने के कारण है। आनन्द सबका मूल है वैसे ही आनन्द सबका लक्ष्य है। लक्ष्य और उसकी सिद्धि दोनों ही आत्मा में विद्यमान हैं जो आत्मा को ही लक्ष्य बनाकर आत्मा के ही द्वारा अपने आपको बेधता है वह उसे पाता भी है। आत्मा ही परमात्मा का अंश है, इसलिये आत्मा का ज्ञान हो जाने पर परमात्मा की प्राप्ति अपने आप हो जाती है।