परिवर्तन ही सत्य
एक बाग में दो वृक्ष थे। एक बिलकुल सूख गया था दूसरे में सुन्दर फूल लग रहे थे। सूखे वृक्ष में एक गीध रहता था, हरे वृक्ष में कोयल निवास करती थी।
दोनों में प्रायः विवाद हो जाया करता था। गीध कहता था संसार मिथ्या है, कोयल कहती संसार सत्य है। बहस में कभी-कभी गरमा-गरमी भी हो जाती थी। कुछ दिन बीते सूखे वृक्ष में से कहीं एक हरी डाल फूट पड़ी और हरा वृक्ष सूख कर ठूँठ हो गया । अब भी गीध और कोयल में झगड़ा होता, पर गीध अब संसार को सत्य कहता और कोयल उसे मिथ्या बताती।
एक दिन एक कौआ उधर आ निकला। उसने दोनों का झगड़ा सुना तो हंस कर बोला- भाइयो-बहनों! व्यर्थ झगड़ा न करो। न संसार सर्वथा सत्य है न बिलकुल मिथ्या । संसार परिवर्तनशील है इसलिये झगड़ने की अपेक्षा जो प्रगट है उसे ही सुन्दर और सफल बनाना बुद्धिमानी है। परिवर्तनों के अनुरूप जो अपने जीवन को ढालते हैं वही इस संसार के सही अर्थ को जानते हैं।