एक निश्चय- एक अमल

September 1967

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एक निश्चय- एक अमल-

एक लड़के ने एक बहुत धनी आदमी को देख कर धनवान बनने का निश्चय किया। कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा और कुछ पैसे भी कमा लिये। इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान से हुई तब उसने विद्वान बनने का निश्चय किया और दूसरे ही दिन से कमाई-धमाई छोड़ कर पढ़ने में लग गया। अभी अक्षर अभ्यास ही सीख पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई उसे संगीत में अधिक आकर्षण दिखाई दिया, अतः उस दिन से पढ़ाई बन्द कर दी और संगीत सीखने लगा।

काफी उम्र बीत गई न वह धनी हो सका न विद्वान। न संगीत सीख पाया न नेता बन सका। तब उसे बड़ा दुःख हुआ। एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई। उसने अपने दुःख का कारण बताया। महात्माजी मुस्करा कर बोले- ‘बेटा! दुनिया बड़ी चिकनी है जहाँ जाओगे कोई न कोई आकर्षण दिखाई देगा। एक निश्चय कर लो और फिर जीते-जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हारी उन्नति अवश्य हो जायेगी। बार-बार रुचि बदलते रहने से कोई भी उन्नति न कर पाओगे।’ युवक समझ गया और अपना एक उद्देश्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा।


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