दूध और पानी की मित्रता

September 1967

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दूध और पानी की मित्रता

दूध ने पानी से कहा- बन्धु किसी मित्र के बिना मेरा हृदय सूना है। आओ मैं तुम्हें हृदय से लगा लेना चाहता हूँ। पानी ने कहा भाई, तुम्हारी बात तो मुझे पसन्द है, पर यकीन नहीं होता कि अग्नि परीक्षा के समय भी तुम मुझसे अलग न होंगे। दूध ने वचन दिया -ऐसा ही होगा और दोनों में मित्रता हो गई, ऐसी कि उनके पृथक स्वरूप को पहचानना कठिन हो गया।

अग्नि एक रोज परीक्षा लेती है। और पानी को जलाती है। पर दूध है कि वह हर बार मित्र की रक्षा के लिए अपने आपको जला देता है। दूध की तरह जो लोग अपने दाम्पत्ति, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में परस्पर विश्वास रखते हैं उन्हीं का मनुष्य जीवन धन्य होता है।


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