“युग-निर्माण योजना” पाक्षिक

July 1964

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राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम के बाद समाज को अभिनव रचना का दूसरा अभियान युग-निर्माण आन्दोलन ही है। व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में उत्कर्ष उत्पन्न करने के लिए जिस आध्यात्म आधार की नितान्त आवश्यकता है। उसकी पूर्ति इस महान् प्रयास के द्वारा संभव हो सकेगी ऐसी संभावना स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अखण्ड-ज्योति परिवार ने इस आन्दोलन को आरम्भ करके एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व अपने कन्धे पर लिया है। आशा करनी चाहिये कि उसे वह ईश्वरीय सहायता मिलेगी जिसके आधार पर इस अभियान को प्रगति के पथ पर काफी दूर तक आगे बढ़ाया जा सके।

ज्येष्ठ में हुए तीन शिविरों में ‘युग-निर्माण योजना’ पाक्षिक निकलने की व्यवस्था पर बड़ा हर्ष एवं सन्तोष प्रकट किया गया। इतने बड़े आन्दोलन की गतिविधियों की प्रगति एवं कार्य-पद्धति की जानकारी के लिए कम-से-कम 20 पृष्ठ का पाक्षिक तो होना ही चाहिए था। सभी आगन्तुकों ने साप्ताहिक की आवश्यकता पर बल दिया पर चूँकि आरम्भ में उतनी बड़ी व्यवस्था बन नहीं पड़ेगी यह देखकर कुछ समय पाक्षिक से ही सन्तोष करने की बात मान ली गई। यों हर महीने ता0 7 और 22 को वह प्रकाशित हुआ करेगा पर जुलाई पहले दूसरे अंक 10-5 दिन लेट छपने की सम्भावना है। क्योंकि ता0 24 जून को शिविर समाप्त होने पर ही इसका मैटर जुटाना एवं सम्पादन आरम्भ किया गया है।

प्रत्येक शाखा संचालन के पास इसका पहुँचना आवश्यक है। हर सक्रिय कार्यकर्ता का कर्तव्य है कि वह अपने नाम एक प्रति मंगाकर क्षेत्र के कम-से-कम दस अखण्ड-ज्योति पाठकों को उसे पढ़ा दे। एक भी परिजन ऐसा न बचे जिसे युग-निर्माण पत्रिका पढ़ने को न मिलती हो। इसे सब खरीदें यह आवश्यक नहीं पर पढ़ना तो इसे सभी को चाहिए। भारतीय इतिहास में अपना स्थान बनाने वाले इस आन्दोलन की सफलता और व्यापकता पर हर परिजन को गर्व और श्रेय अनुभव करने का अधिकार होगा क्योंकि उसमें उसका श्रम एवं सहयोग सन्निहित रहेगा। ऐसी दशा में हम में से हर किसी को उसकी गतिविधियों की जानकारी रखने की आवश्यकता अनुभव होगी। इसकी पूर्ति यह नवीन पाक्षिक पत्र ही करेगा। प्रयत्न यह होना चाहिए कि पाक्षिक हर जगह पहुँचे और उसे सभी परिजनों द्वारा पढ़ा जाना संभव हो सके। इसके लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं की विशेष जिम्मेदारी है। उन्हें अपने पैसे से या मिल जुलकर इकट्ठे किये पैसे से पाक्षिक पत्र इसी महीने से मंगाना आरम्भ कर देना चाहिए। जिनने अपनी स्वीकृति या पैसा न भेजा हो उन्हें अविलम्ब इसी महीने से उसे मंगाने लगने की व्यवस्था कर लेनी चाहिये और ऐसा ढर्रा बिठा लेना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों तक इस पाक्षिक की पहुँच होने लगे।

पिछले पृष्ठों पर जिन आन्दोलनों एवं कार्यक्रमों की चर्चा की गई वे सभी जहाँ, जिस प्रकार, जितनी मात्रा में संभव हो सकेंगे आरंभ हो जायेंगे। पाक्षिक के सदस्यों का कर्तव्य है कि अपने विवरण छापने के लिए बराबर भेजते रहें। यह समाचार चिट्ठी पत्री के साथ नहीं लिखे रहें व न उन्हें अलग से भेजना चाहिए ताकि उत्पादन विभाग के कार्यकर्ता उसका स्वतन्त्र रूप से उपयोग कर सकें। एक दो अंकों को देखकर यह भली प्रकार समझ में आ जायगा कि समाचार किस प्रकार के रहेंगे। अपने क्षेत्र में उस प्रकार की जितनी गतिविधियाँ हों वे तभी छपने के लिए जाती रहेंगी तो उन्हें पढ़कर दूसरे लोग प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्राप्त करेंगे तथा अन्यत्र भी उनके अनुकरण का प्रयास होने लगेगा।

शिविर में आये हुए कार्यकर्ताओं के लगभग 300 फोटो प्राप्त कर लिए गये हैं। अब योजना के अन्य सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं के फोटो इकट्ठे किए जाने शेष हैं। समाचारों के साथ उन श्रेष्ठ कार्यों में प्रमुख भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं के फोटो छपते रहने से जहाँ पत्रिका की सुन्दरता बढ़ती है वहाँ वैसे कार्यों के लिए प्रोत्साहन मिलने का उद्देश्य भी पूरा होता है। स्कूली परीक्षाओं के लिए फार्मों पर चिपकाने के लिए जो पासपोर्ट साइज फोटो काम आते हैं वे ही युग-निर्माण पत्रिका में भी काम आवेंगे। बिजली से खिंचे गहरे सफेद और गहरे काले फोटो ही ब्लाक के काम में आ सकते हैं। धुँधले, बच्चों के छोटे कैमरे के फोटो ब्लाक बनाने के काम नहीं आते। छोटे-बड़े साइज भी असुविधा जनक होते हैं इसलिये पासपोर्ट साइज (डेढ़ इंच चौड़े दो इंच लंबे फोटो के लगभग) ही भिजवाने चाहिएं। पहले महीने तक सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं के फोटो इकट्ठे हो जाएं यह प्रयत्न किया जाना चाहिए।

पहले अंक से ही पाक्षिक के ग्राहक रहना चाहिए ताकि आन्दोलन की प्रगति का समग्र परिचय रह सके। जिनने अपने नाम न लिखाये हों या चंदा न भेजा हो उन्हें अपनी पत्रिका चालू करा लेनी चाहिए लिस्ट के अनुसार ही नियत संख्या में पाक्षिक छपेगा, जो देर से सूचना भेजेंगे उन्हें पिछले अंकों से वंचित रहना पड़ सकता है।

किशोर बालकों की चार वर्षीय शिक्षा और जातीय संगठनों की रूपरेखा के संबंध में भी इन तीनों शिविरों में महत्वपूर्ण विचार विनिमय हुआ किन्तु वह अनिर्णित रह गया। यह दोनों कार्य जितने महान हैं उतने ही गम्भीर तथा पेचीदगियों से भरे हुए भी हैं। इन दोनों समस्याओं में जो उलझनें रह गई हैं उन्हें सुलझाने के लिए पाक्षिक पत्रिका में पाठकों का अभिमत जानने के लिये पूरा विवरण प्रस्तुत क्रिया जायगा और शाखा संचालकों का जैसा बहुमत होगा वैसा कार्यक्रम बनाया जायगा।

इस वर्ष के तीनों शिविर सभी दृष्टि से सफल रहे। गंभीर मन्त्रणा के पश्चात् जो कार्य पद्धति निर्धारित की गई, उसका मूर्तरूप पाठक ‘युग-निर्माण योजना’ के पृष्ठों पर विस्तारपूर्वक पृष्ठों में पढ़ सकेंगे।


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