बैसाख सुदी पूर्णिमा से लेकर जेष्ठ सुदी पूर्णिमा तक एक महीने गायत्री तपोभूमि में दस-दस दिन के तीन शिक्षण शिविर सानन्द पूर्ण हुए। देश के कोने-कोने से ‘युग-निर्माण’ योजना में अभिरुचि लेने वाले प्रबुद्ध परिजन इन शिविरों में भाग लेने आये। प्रथम शिविर 26 मई से 4 जून तक, दूसरा 5 से 14 जून तक और तीसरा 15 से 24 जून तक सम्पन्न हुआ। इस एक महीने प्रेम, आनन्द, उल्लास और सद्ज्ञान की प्रेरणा का ऐसा स्वर्गीय वातावरण यहाँ बना रहा कि विदा होते समय हर शिक्षार्थी की आँखें छलछला आई। विवशता के कारण जाना तो था पर जाने के लिए इच्छा किसी की भी न होती थी। देवभूमि में ठहरने का जितना स्थान है तथा जितने लोगों के साथ व्यक्तिगत परामर्श कर सकना सम्भव है उसे ध्यान में रखते हुए ही आने वालों को स्वीकृति दी गई थी।
यह तीनों शिविर परामर्श शिविर थे। शिक्षार्थियों का जीवन किस प्रकार सुविकसित एवं सुसंस्कृत बने, इस संबंध में आवश्यक परामर्श दिये गए और वे ऐसा कार्य-क्रम बनाकर ले गये जिस पर चलना घर पहुँचते ही आरंभ करेंगे। दस दिन की शिक्षा में यह भली प्रकार समझाया गया कि आध्यात्म केवल पूजा पाठ की ही वस्तु नहीं है, वरन् उसका लाभ उठाया जा सकना तभी संभव है जब इन उच्च आदर्शों का अपने व्यावहारिक जीवन में समावेश किया जाय। उपासना का निश्चय ही बहुत महत्व है पर जब तक जीवन-निर्माण की साधना के लिए भी समुचित प्रयत्न न किया जायगा तब तक उपासना एकाँगी एवं अपूर्ण रहेगी और उसका समुचित लाभ उपलब्ध न हो सकेगा। इसलिए जिन्हें वस्तुतः आत्मिक प्रगति करनी हो उन्हें उच्च आदर्शों को अपने दैनिक व्यवहार में समाविष्ट करना चाहिए। इस तथ्य को इन शिविरों में ऐसी अच्छी तरह प्रतिपादित किया गया कि आगन्तुकों में से प्रत्येक ने अपने गुण, कर्म, स्वभाव को परिष्कृत एवं सुसंस्कृत बनाने की प्रतिज्ञा की और इसके लिए आरम्भिक शुभारम्भ उसी समय से आरम्भ कर दिया। स्थिति को देखते हुए यह विश्वास किया जा सकता है कि जो भी सज्जन इन शिविरों में आये वे उत्कृष्ट एवं आदर्श जीवन-यापन के लिए अपने प्रयत्नों को और भी तीव्र करेंगे। यदि यह प्रयत्न जारी रहे तो यह निश्चित है कि इन शिक्षार्थियों में से अनेकों प्रकाशवान् उज्ज्वल नक्षत्रों की तरह चमकते हुए दृष्टिगोचर होंगे। पिछले पच्चीस वर्षों में अखण्ड-ज्योति आध्यात्मिक आदर्शों के प्रसार में लगी रही, अब वह समय आ गया है कि उन आदर्शों को व्यवहारिक जीवन में समाविष्ट करने के लिए एक आन्दोलन के रूप में कटिबद्ध हुआ जाय। यही शिविर उसी भावना से बुलाये गये थे। स्थिति को देखते हुए यह विश्वास किया जा सकता है कि वे पूर्ण सफल रहे। इस बार के इन शिविरों में प्रायः विचारशील और सुसंस्कृत लोग ही थे, इसलिए उनके विचार और परामर्शों को युग-निर्माण योजना के सफल एवं व्यापक बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाता रहा। विचार गोष्ठियों में योजना के प्रत्येक पहलू पर गम्भीर विचार विनिमय हुआ और अन्त में शत-सूत्री योजना का सार लेकर स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज निर्माण करने की युग-निर्माण योजना को एक व्यापक आन्दोलन के रूप में व्यापक बनाने का निश्चय किया गया।
गत वर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर 6 जुलाई को युग-निर्माण योजना का विधिवत् उद्घाटन हुआ था। उस बात को एक वर्ष पूरा होने को जा रहा है। इस अवधि में जो कार्य हुआ उसे असंतोषजनक नहीं कहा जा सकता पर अभी जो करना शेष है, वह भी बहुत है। द्वितीय वर्ष की कार्यपद्धति का निर्धारण करने के लिए इन तीन शिविरों में परिवार के प्रबुद्ध परिजनों एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था। उनके परामर्श से जो कार्यक्रम बना उसे प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। शिविरों के विचार-विमर्श एवं निष्कर्ष का साराँश पाठक अगले पृष्ठों पर पढ़ें।