अब्राहम लिंकन

July 1964

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बालक अब्राहम लिंकन में महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ने का बड़ा शौक था। घर की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी इसलिए वे खरीद तो न सकते पर इधर-उधर से माँग कर अपना शौक पूरा करते।

एक सुशिक्षित सज्जन से वे एक पुस्तक माँग कर पढ़ने लाये। उनने बालक की उत्कंठा देख कर पुस्तक दे तो दी पर कड़े शब्दों में हिदायत कर दी कि पुस्तक खराब न होने पावे और जल्दी से जल्दी लौटा दी जाय।

घर में दीपक न था। ठंड दूर करने के लिए अंगीठी में आग जला कर सारा घर उसी पर आग तापता था। लिंकन उसी के प्रकाश में पुस्तक पढ़ते थे। सारा घर सो गया, पर वे न सोये और पुस्तक में खोये रहे। अधिक रात गए जब नींद आने लगी तो जंगले में पुस्तक रख कर सो गया। संयोगवश रात को वर्षा हुई। बौछारें जंगले में हो कर आईं और पुस्तक भीग गई।

बालक सवेरे उठा तो उसे बड़ा दुख हुआ। बिना मैली कुचैली किये ठीक समय पर पुस्तक लौटा देने का वचन वह पूरा न कर सकेगा, इस पर उसे बड़ा दुःख हुआ। आँखों में आँसू भरे वह पुस्तक उधार देने वाले सज्जन के पास पहुँचा और ‘रुद्ध’ कण्ठ से भारी परिस्थिति कह सुनाई।

वे मैली पुस्तक वापिस लेने को तैयार न हुए। कीमत चुकाने को पैसे न थे। अंत में उनने यह उपाय बताया कि तीन दिन तक वह उस सज्जन के खेत में धान काटे और उस मजदूरी से पुस्तक की मूल्य भरपाई करे। बालक ने खुशी-खुशी यह स्वीकार कर लिया। तीन दिन धान काटे और वचन पूरा न करने के संकोच से छुटकारा पा लिया।

बालक लिंकन के ऐसे-ऐसे छोटे सद्गुणों ने उसे आगे बढ़ाया और बड़ा हो कर वह अमेरिका का लोक-प्रिय राष्ट्रपति चुना गया।


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