काँग्रेस के सुप्रसिद्ध नेता और बंबई हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे को बंगला भाषा सीखनी थी । समय का अभाव और अध्यापक ढूँढ़ने की कठिनाई से बचने के लिए उन्होंने एक बंगाली भाषी नाई से हजामत बनाने के लिए नित्य की व्यवस्था कर ली। वह जितनी देर में हजामत बनाता उतनी देर में उससे बंगला सीखते रहते। इस प्रकार उनकी शिक्षण व्यवस्था चलने लगी।
एक दिन उनकी धर्मपत्नी ने यह देखा तो कहा—इसे कोई और सुनेगा और देखेगा तो आपका सम्मान घटेगा। भला अनपढ़ नाई से आप जज होकर इस प्रकार पढ़ें, वह भी कोई सम्मान की बात है।
रानाडे ने हँसते हुए कहा—दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाये थे जिनमें कीड़े-मकोड़े और पशु-पक्षी भी थे फिर मुझे नाई को गुरु बनाने में क्यों संकोच होना चाहिए?