गीता-माध्यम से जन-जागरण की शिक्षा

July 1964

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विविध प्रशिक्षण में से एक मास की गृहस्थ शिक्षा इसी आश्विन से आरम्भ हो रही है और एक वर्ष के लिए जो वानप्रस्थ आना चाहेंगे उनका स्वागत है। “तीन लोक से मथुरा न्यारी” कहावत के अनुसार इस तीर्थ भूमि का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व सर्वविदित है। भगवान कृष्ण की जन्मभूमि में तप करते हुए जीवन साधना का एक विशेष आनन्द है। रसखान के शब्दों में ब्रजभूमि इतनी सुन्दर है कि उस पर तीनों लोकों को निछावर किया जा सकता है। यह विशेषताएँ आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान मिल सकती हैं।

एक वर्ष तक निरन्तर चलने वाली 40 गायत्री अनुष्ठानों की शृंखला, नित्य हवन, चान्द्रायणव्रत द्वारा आत्मशोधन, दैनिक स्वाध्याय, नित्य सत्संग, गीता का विशिष्ट अध्ययन वेद, उपनिषद् दर्शन आदि की शास्त्रीय शिक्षा आदि कार्यक्रमों द्वारा आत्म-कल्याण की ऐसी सुविधा यहाँ उपलब्ध है जो अन्यत्र नहीं मिल सकती। प्राकृतिक चिकित्सा का सांगोपांग शिक्षण, आसन प्राणायाम आदि योग-क्रियाओं का अभ्यास, यज्ञ एवं षोडश संस्कार कराने की योग्यता, भाषण कला, धार्मिक प्रवचन युग-निर्माण के शतसूत्री रचनात्मक कार्यों के संबंध में विशिष्ट ज्ञान तथा जन-जीवन में नवजागरण उत्पन्न करने की विशिष्ट क्षमता उत्पन्न करने का अनुभव यह एक वर्षीय वानप्रस्थ-तपश्चर्या की सेवात्मक पद्धति है जो उपासना कार्यक्रमों के साथ-साथ ही चलती रहेगी।

जिनके ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ नहीं हैं, जो कमाने की चिन्ता से मुक्त हैं उन्हें अपने शेष जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करने का अवसर तपोभूमि में रहते हुए वानप्रस्थ जीवन बिताने में हो सकता है। जो सदा के लिये नहीं आ सकते उन्हें एक वर्ष के लिए आना भी मंगलमय प्रतीत होगा। ऐसा साधना के उपयुक्त वातावरण तथा वानप्रस्थों के निवास की विशेष व्यवस्था यहाँ बनाई गई है। जिन्हें अनुकूलता हो वे प्रसन्नतापूर्वक मथुरा आने के लिए तैयारी कर सकते हैं। पत्र व्यवहार द्वारा स्वीकृति प्राप्त की जा सकती है। बालकों के चार वर्षीय पाठ्यक्रम की बात अगले वर्ष कार्यान्वित होगी। एक साथ इतनी प्रशिक्षण योजनाएँ चालू कर सकना सम्भव भी न था।

जेष्ठ के तीन शिविरों में आने वाले सभी परिजनों में से प्रत्येक ने यह आवश्यकता अनुभव की कि शाखा-संचालकों और युग-निर्माण योजना के कर्मठ कार्यकर्ताओं को जन-जीवन में प्रेरणा उत्पन्न करने की व्यवहारिक शिक्षा की भी एक प्रशिक्षण व्यवस्था की जाय। चूँकि प्रायः सभी शाखा संचालक गृहस्थ और कार्यव्यस्त व्यक्ति हैं इसलिए यह शिक्षण अधिक लंबा न हो। एक बार में एक महीने की ही शिक्षा दी जाय। यदि वह एकबार में पूरी न हो पावे तो दूसरे वर्ष एक महीने के लिए वे फिर आ सकते हैं। विचार करने पर यह आवश्यकता उपयुक्त प्रतीत हुई। तद्नुसार इसी वर्ष से यह प्रक्रिया भी आरम्भ की जा रही है कि जिसके माध्यम से युग-निर्माण के महान अभियान का नेतृत्व कर सकने के लिए प्रतिभाशाली कर्मठ कार्यकर्ताओं को एक-एक महीने के लिए प्रशिक्षित किया जाय।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्यसमाज रचना के त्रिविधि आन्दोलनों की रूपरेखा इसी अंक में पिछले पृष्ठों पर दी जा चुकी है। गत वर्ष जून के अंक में इन्हीं बातों को शत सूत्री योजना के अंतर्गत विशेष विस्तार से कहा जा चुका है। जहाँ जैसी परिस्थितियाँ हों, वहाँ तदनुसार कार्य आरम्भ करते हुए यह आन्दोलन देशव्यापी बनाया ही जाना है। अस्तु यह आवश्यकता भी पड़ेगी ही—कि कहाँ किस प्रकार किन कार्यों को आरम्भ किया जाय ताकि सफलता का उत्साहवर्धक वातावरण तेजी से उत्पन्न हो चले। इस एक महीने के प्रशिक्षण में कार्यकर्ताओं को आन्दोलनात्मक पद्धति की समग्र शिक्षा देने का कार्यक्रम बना लिया गया है। आशा की जाती है कि आन्दोलन को व्यापक और सुव्यवस्थित बनाने में इस प्रशिक्षण से भारी सहायता मिलेगी।

ऐसा निश्चय किया गया है कि लोक-शिक्षण के लिये देश भर में धार्मिक शिक्षण शिविरों की व्यापक शृंखला चलाई जाय। इसलिए भागवत सप्ताह की तरह ‘गीता-कथा-सप्ताहों’ की योजना रहे। जिस प्रकार धर्म भावना से लोग भागवत सप्ताह करते हैं उसी प्रकार गीता सप्ताहों की परम्परा अपने शाखा केन्द्रों द्वारा आरम्भ हो। एक सप्ताह तक गीता का सामूहिक परायण होता रहे। जहाँ संस्कृत पढ़ने वाले व्यक्ति हों वहाँ मूल गीता का सामूहिक पाठ दो टोलियों में हुआ करे। एक श्लोक आधे लोग पढ़ें दूसरा श्लोक शेष आधे लोग पढ़ें। इस प्रकार प्रतिदिन एक पाठ पूरा कर लिया जाय। जहाँ 15-16 व्यक्ति भी इस प्रकार पाठ करने वाले होंगे वहाँ एक सप्ताह में 108 गीता पाठ आसानी से हो जाएंगे।

जहाँ संस्कृत जानने वाले नहीं हैं वहाँ के लिए गीता का पद्यानुवाद पढ़ा जाय और उसके पाठ हो जायें। इस प्रयोजन के लिए गीता का एक विशेष पद्यानुवाद तैयार भी कराया जा रहा है। इस प्रकार पाठ जहाँ होगा वहाँ संस्कृत न जानने वाली जनता भी गीता के प्रत्येक श्लोक का भावनामय अर्थ समझ सकेगी और संस्कृत पाठ से भी अधिक उपयोगिता उसकी बढ़ जायगी।

यह तो हुई पाठ की बात, अब प्रतिदिन प्रातः सायं दो बार जो डेढ़-डेढ़ दो-दो घण्टे के लिए प्रवचन होंगे, उनमें आठ दस विशिष्ट श्लोकों की व्याख्या हुआ करेगी। इन व्याख्याओं में युग-निर्माण योजना की समस्त विचार-धारा का समावेश होगा। जिन श्लोकों की व्याख्या की जाय उन्हीं विचारों की पुष्टि करने वाली रामायण की चौपाइयाँ भी कही जायें, तथा पौराणिक ऐतिहासिक कथा प्रसंगों की भी भरमार रहे, जिससे सर्वसाधारण को वह प्रकरण रुचिकर भी लगे और समझने में भी सहायता मिले। इस प्रकार सात दिन की गीता कथा एक प्रकार से युग निर्माण के सप्ताह शिक्षण शिविर की आवश्यकता पूरी करेगी। धार्मिक आयोजनों के साथ श्रद्धामय वातावरण में सम्पन्न हुआ यह शिक्षण अधिक आकर्षक भी होगा और अधिक उपयोगी भी।

अन्तिम दिन गायत्री हवन हुआ करे। जिसमें अधिक संख्या में जनता भाग ले। यज्ञोपवीत संस्कार, मुण्डन, अन्नप्राशन, विद्यारम्भ पुंसवन आदि संस्कार जिनके होने हों वे भी सामूहिक रूप से इन्हीं यज्ञों में हो जाय और उस दिन सम्पन्न हुए संस्कारों की महत्ता एवं शिक्षा पर विशेष प्रवचन हों।

गीता सप्ताह का प्रवचन करने वाला व्यास जहाँ सात दिन रहे उस क्षेत्र में स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य-समाज की अभिनव रचना के आन्दोलनों में से जिनका वहाँ सूत्रपात करा सके उसके लिए प्रयत्नशील रहे। लगनशील लोकसेवी जहाँ सात दिन रहेगा वहाँ कुछ तो जागरण होगा ही, कुछ प्रवृत्तियाँ तो आरम्भ होंगी ही। कथा वाचक वस्तुतः एक रचनात्मक कार्यकर्त्ता होगा। गीता सप्ताहों का स्वरूप, कथा भागवत जैसा धार्मिक ही रहेगा पर वस्तुतः वे इतने तक ही सीमित न रहेंगे। मोहग्रस्त अर्जुन की तरह आज के दिग्भ्रांत जन-मानस का जागरण ही उनका प्रधान लक्ष्य रहेगा। अस्तु इन आयोजनों से धर्म जागृति का वास्तविक उद्देश्य भी पूरा होगा ही।

लोक सेवकों की एक महीने की शिक्षा में गीता की उपरोक्त प्रकार की कथा-पद्धति का विशेष रूप से अभ्यास कराया जायगा। साथ ही उन्हें जन जागरण के लिए जो भी रचनात्मक कार्य करने हैं उनकी रीति नीति कथा प्रवचनों को सुलझाने की व्यावहारिक जानकारी से अवगत कराया जायगा। इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने वाला यदि अन्यत्र शिविरों का आयोजन न भी कर सके तो छुट्टी के दिन सप्ताह में एक दिन यह कार्यक्रम चलाते हुए सात सप्ताह में एक पारायण सम्पन्न कर सकता है। अलग अलग मुहल्लों में यह सात सप्ताह के परायण चलते रह सकते हैं और कोई कार्यव्यस्त व्यक्ति भी अपने नगर में वर्ष के अन्दर छह-सात पारायण पूरे करता हुआ स्थानीय जनता में जागृति उत्पन्न कर सकता है।

जिनके कन्धों पर कमाने की जिम्मेदारी नहीं है वे बड़ी शान से कहीं भी गीता सप्ताह आरम्भ कराते हुए धर्म सेवा में संलग्न रह सकते हैं। साथ ही जिनके ऊपर गृहस्थ की जिम्मेदारी है वे इस आधार पर गुजारे की समस्या भी हल कर सकते हैं। कथा भागवत कहने वाले गुजारा कर लेते हैं तो ये सुसंस्कृत कार्यक्रम जब किसी संगठन द्वारा सुनियोजित होंगे तब गीता के कथा व्यास का गुजारा क्यों न होगा ? जो शाखा गीता कथा के सप्ताह शिविर का आयोजन करे वह व्यास को पाँच रुपया प्रतिदिन भी पारिश्रमिक दे तो महीना में चार शिविर करने वाला व्यास, भोजन मार्ग व्यय आदि के अतिरिक्त चार सप्ताहों में 140 मासिक के करीब प्राप्त कर सकता है जिसमें ब्राह्मण वृति से गुजारा करने वाले किसी परिवार का काम किसी प्रकार चल ही सकता है।

गीता कथाकार की भाषण शैली का निखार करने से लेकर प्रवचन में स्थान-स्थान पर कहीं जाने वाली चौपाइयों तथा कथा प्रकरणों के समावेश की तथा किस श्लोक की व्याख्या में युग-निर्माण के किस अंश की पुष्टि की जाय, यह सब कुछ उस एक महीने शिक्षा प्राप्त करने वाले शिक्षार्थी को अभ्यास करा दिया जायगा। पूर्णाहुति के दिन गायत्री यज्ञ, संस्कारों की धर्म प्रक्रिया तथा शिक्षा मीमाँसा करने की भी उसे पूरी जानकारी हो जायगी। रचनात्मक कार्यों को अग्रसर करने में किन चढ़ाव उतारों का सामना करना पड़ता है, यह सब जानने वाले के लिये निश्चय ही युग-निर्माण के महान अभियान का सफल नेतृत्व कर सकना सरल हो जायगा।

इस वर्ष आश्विन में गृहस्थों का शिक्षण होगा। कार्तिक से रचनात्मक कार्यकर्ताओं की गीता-शिक्षा चलेगी फिर इसी प्रकार मगसिर में गृहस्थों की, पौष में कार्यकर्ताओं की, माघ में गृहस्थों की फाल्गुन में लोक-सेवकों की, चैत्र में गृहस्थों की बैसाख में कार्यकर्ताओं की शिक्षा होगी। अर्थात् आश्विन, मगसिर, माघ, चैत्र हम चार महीनों में गृहस्थों की और कार्तिक, पौष, फाल्गुन, बैसाख में कार्यकर्ताओं की शिक्षा व्यवस्था चलेगी। इस वर्ष कार्य अधिक, स्थान कम और प्रशिक्षणकर्ता हम स्वयं ही होने से कार्यक्रम इसी प्रकार आरम्भ होगा। अगले वर्ष में ज्येष्ठ में फिर परामर्श शिविर होंगे। तब अगले वर्ष की व्यवस्था फिर बनाई जायगी। प्रयत्न यह होगा कि दोनों प्रकार की शिक्षा लगातार चलती रहें ताकि अधिक लोगों को शिक्षा का लाभ मिल सकने की व्यवस्था बन जाय।

इस वर्ष इन दोनों शिक्षाओं में जिन्हें रुचि हो वे यथा सम्भव शीघ्र ही पत्र व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त कर लें। देर से पत्र लिखने वालों को सीमित स्थान पूरे हो जाने पर अगले वर्ष के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।


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