जमीला, जमीला, जमीला,

July 1964

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फ्राँस के द्वारा पददलित अल्जीरिया को स्वतन्त्र कराने के लिए वहाँ के स्वाभिमानी देशभक्तों ने लंबे समय से संघर्ष किया है। अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही तो किसी जीवित समाज, देश या व्यक्ति का गौरव परखा जा सकता है। अनीति सहने का अर्थ है उसे और अधिक बढ़ाने एवं परिपुष्ट करने में सहयोग देना। जिन्हें कायरता ने ग्रसित न कर रक्खा हो, वे अन्याय सहन नहीं करते और बड़ी से बड़ी जोखिम उठाकर संघर्ष करते हैं। अल्जीरिया के देशभक्तों ने लंबे समय से अपना स्वाधीनता संग्राम जारी रक्खा, और उसमें हजारों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी।

पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को दुर्बल समझा जाता है। और उनसे घर गृहस्थी के अतिरिक्त किन्हीं बड़े साहसपूर्ण कार्यों की आशा नहीं की जाती। पर विचार करने पर स्पष्ट होता है कि उनके गले में सामाजिक पराधीनता की तौक पड़ी है उसी के कारण वे ऐसी दुर्बल एवं असहाय बनी हैं। यदि अवसर मिले तो वे पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रह सकतीं। अल्जीरिया में जिन नारियों को स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने का अवसर मिला, उन्होंने पुरुषों से बढ़कर ही अपनी देशभक्ति और वीरता का परिचय दिया।

तीन देशभक्त लड़कियों ने जिनका नाम भी संयोगवश जमीला ही था—स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी बलि चढ़ाकर वहाँ के निवासियों के लिए एक ऐसी आशा उत्पन्न कर दी जिसके कारण वहाँ के युवक हार मानकर घर बैठे रहने में डूब मरने जैसी शर्म अनुभव करते थे। इन तीन जमीलाओं का बलिदान प्रत्येक अल्जीरिया निवासी के मन में एक टीस उत्पन्न करता रहा और उसे संघर्ष के युद्ध क्षेत्र में लाकर खड़ा होने की प्रेरणा देता रहा। भारत में जैसे महात्मागाँधी की जय का नारा लगाया जाता है उसी प्रकार अल्जीरिया निवासी ‘जमीला जिन्दाबाद’ का नारा लगाने और स्वतन्त्रता संग्राम में जूझने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

पहली जमीला वहाँ के क्रान्तिकारी दल की सदस्य थी। अनेक गुप्त प्रवृत्तियों का संचालन करती और स्वतन्त्रता संग्राम को आगे बढ़ाने के लिए दल द्वारा निर्धारित कार्यक्रम को पूर्ण करने में लगी रहती। फ्राँसीसी पुलिस ने उसे पकड़ लिया। गिरफ्तारी के समय उसके पास वैसे कागजात भी पकड़े गए जिससे दल की गति-विधियों पर प्रकाश पड़ता था। अन्य सदस्यों के नाम तथा गति-विधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए पुलिस ने उसे ऐसी-ऐसी यंत्रणायें दीं जिनका विवरण सुनने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वर्षों तक उसे यन्त्रणाएँ दी जाती रहीं पर जब उसने कोई भेद नहीं बताया तो फाँसी की सजा सुना दी गई। इस देश में फाँसी देने की अपेक्षा उसे फ्राँस ले जाया गया और वहाँ उसके मृत्युदण्ड की व्यवस्था की गई।

इतने छोटे अपराध पर इतना बड़ा दण्ड देने के कारण सारे संसार में उसकी प्रतिक्रिया हुई। विश्व के जनमत ने फ्राँस को धिक्कारा। फ्राँसीसी नेताओं ने भी इस दण्ड की भर्त्सना की। अल्जीरिया में तो इस सजा ने एक प्रकार से आग ही भड़का दी और विद्रोह की लपटें तेजी से बढ़ने लगीं। अन्त में सरकार झुकी। मौत की सजा कारावास में बदली गई और अब जब कि समझौता हो रहा है उसे रिहा भी कर दिया गया है।

दूसरी जमीला को अपनी बहिन और बहनोई को सरकारी अत्याचारों से उत्पीड़ित होते देखकर रोष आया वह क्राँतिकारी कार्य करने लगी। 22 वर्ष की छोटी आयु में उसने जो कार्य किए उससे फ्राँसीसी सरकार चिन्तित हो उठी और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। भेद पूछने के लिए इतनी यन्त्रणायें दी गई कि उसका शरीर ही बेकाम हो गया। जेल का अधिकाँश समय उसे अस्पताल में काटना पड़ा। अमानवीय यंत्रणाओं के प्रमाण मौजूद थे इसलिए उनके विरोध में वकीलों की एक समिति ने मिलकर न्यायालय में इसकी पुकार भी की पर सुनने वाला कौन था।

तीसरी जमीला उससे भी छोटी थी, सिर्फ 20 वर्ष की। उसे भी उन्हीं अभियोगों में पकड़ा गया। यन्त्रणाओं में कमी न रक्खी गई। फिर भी उसने इतनी दृढ़ता दिखाई कि पुलिस को कुछ भेद पाने की आशा छोड़ देनी पड़ी समझौते का वातावरण बन जाने से इस तीसरी जमीला के भी प्राण बच गये अन्यथा मृत्युदण्ड उसके लिए ही निश्चित था।

नेतृत्व साहस करता है योग्यता नहीं। जब कि बड़े-बड़े सुयोग्य और साधन सम्पन्न व्यक्ति मनोबल के अभाव में कुछ कर नहीं पाते तब छोटे-छोटे साहसी व्यक्ति अपनी स्वल्प सामर्थ्य के साथ साहसपूर्वक आगे बढ़ सकते हैं तो बहुत कुछ कर दिखाते हैं। अल्जीरिया की इन तीन लड़कियों ने जिस साहस, त्याग और देशप्रेम का परिचय दिया, उसने सारे देश में प्रेरणा फूँक दी और फ्राँसीसियों को फौलादी ‘पंजा ढीला करने के लिए विवश होना पड़ा।

तीन जमीलाएँ अल्जीरिया के आकाश में उज्ज्वल नक्षत्रों की तरह चमकती हैं। संसार का इतिहास उन्हें भुला न सकेगा।


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