भाग्य का निर्माण अपने हाथ में है।

September 1949

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(पं. परमानन्द पन्त, रानीखेत)

अनेक बार छोटी-मोटी असफलता मिलने तथा अभाव ग्रस्त होने पर लोग ऐसा कहने लगते हैं-”क्या करें, हमारे भाग्य में ही ऐसा लिखा है, हमें ऐसी ही हीन स्थिति में रहना पड़ेगा। यदि हमारे भाग्य में सफलता बंधी होती तो अब तक के प्रयत्न असफल क्यों होते?”

ऐसे अदूरदर्शी मनुष्य भाग्यवाद के गूढ़ सिद्धान्तों को नहीं समझते और न यह समझते हैं कि इस प्रकार की मान्यता बना लेने के कारण वे किस प्रकार अपने भविष्य के निर्माण में भारी बाधा उपस्थित कर रहे हैं। ऐसे लोग मार्ग की बाधाओं का मुकाबला नहीं कर सकते।

सफलता की देवी का प्रसन्न करने के लिए पुरुषार्थ की भेंट चढ़ानी पड़ती है। जो मनुष्य पुरुषार्थी नहीं है, प्रयत्न और परिश्रम में दृढ़ता नहीं रखता वह स्थायी सफलता का अधिकारी नहीं हो सकता। यदि अनायास किसी प्रकार कोई सम्पत्ति उसे प्राप्त हो भी जाय तो वह उससे संतोषजनक लाभ नहीं उठा सकता। वह ऐसे ही अनायास चली जाती है जैसे कि अनायास आई थी।

रोटी का स्वाद वह जानता है जिसने परिश्रम करने के पश्चात् क्षुधार्त होकर ग्रास तोड़ा हो। धन का उपयोग वह जानता है जिसने पसीना बहाकर कमाया हो। सफलता का मूल्याँकन वही कर सकता है जिसने अनेकों कठिनाइयों, बाधाओं और असफलताओं से संघर्ष किया हो। जो विपरीत परिस्थितियों और बाधाओं के बीच मुस्कराते रहना और हर असफलता के बाद दूने उत्साह से आगे बढ़ना जानता है। वस्तुतः वही विजयलक्ष्मी का अधिकारी होता है।

जो लोग सफलता के मार्ग में होने वाले विलम्ब की धैयपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर सकते, जो लोग अभीष्ट प्राप्ति के पथ में आने वाली बाधाओं से लड़ना नहीं जानते वे अपनी अयोग्यता और ओछेपन को बेचारे भाग्य के ऊपर थोप कर स्वयं निर्दोष बनने का उपहासास्पद प्रयत्न करते हैं। ऐसी आत्म वंचना से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है। सबसे बड़ी हानि यह है कि अपने को अभागा मानने वाला मनुष्य आशा के प्रकाश से हाथ धो बैठता है और निराशा के अन्धकार में भटकते रहने के कारण इष्ट प्राप्ति से कोसों पीछे रह जाता है।

इतिहास पर दृष्टिपात कीजिए, जिन महापुरुषों ने बड़े-बड़े कार्य किये हैं उन्होंने एक से एक बढ़कर आपत्तियों को झेला है। यदि वे हर एक कठिनाई के समय ऐसा सोचते कि “हमारे भाग्य में यदि सफलता बंधी होती तो यह बाधा क्यों उपस्थित होती, इसलिए जब कोई बात भाग्य में ही नहीं है तो प्रयत्न क्यों करे?” विचार कीजिए कि ऐसी मान्यता यदि उन्होंने रखी होती तो क्या वे इतने महान बने होते?

बाधाएं, कठिनाइयाँ, आपत्तियाँ और असफलताएं एक प्रकार की कसौटी हैं जिन पर पात्र-कुपात्र की खरे-खोटे की परख होती है। जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं, सफलता के अधिकारी सिद्ध होते हैं उन्हें ही इष्ट की प्राप्ति होती है। जो सस्ती सफलता के फिराक में रहते हैं, बिना अड़चन और स्वल्प प्रयत्न में जो मनमाने मनसूबे पूरे करना चाहते हैं वे न तो प्रकृति के नियमों को समझते हैं न ईश्वरीय विधान को। उन्हें जानना चाहिए कि कायर पुरुष भाग्य की दुहाई देते रहते हैं और उद्योगी पुरुष सिंह विजय लक्ष्मी प्राप्त करते हैं।


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