(डॉ. गोपालप्रसाद बंशी, बेतिया)
किसी साधु की गुदड़ी चोरी हो गई। विनोद और कौतुक के लिए किसी राज कर्मचारी ने ही ऐसा किया था। साधु ने राज दरबार में रिपोर्ट लिखाई कि मेरी सारी सम्पत्ति चोरी चली गई।
रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी ने पूछा- आपकी क्या-क्या चीज चोरी गई है, लिखाइए। साधु ने लिखाया- रजाई, बिछौना, चादर, तकिया, अँगरखा, आसन, छतरी, धोती आदि सभी कुछ चोर चुरा ले गये।
साधु के पास इतना सामान होने की बात सुनकर वहाँ बैठे हुए लोग उसे बड़ा मालदार अनुभव करने लगे। “इतनी चीजें क्यों जमा कर रखी थी?” चारों ओर से प्रश्नों की बौछार होने लगी।
जिसने चुराई थी वह राज कर्मचारी भी वहाँ उपस्थित था। वह हँस पड़ा और बोला महाराज जी झूठ बोलने से क्या? राज आपको इतनी चीजें अपने पास से थोड़े ही दे देगा। देखिए, यही आपकी गुदड़ी है न? और तो कोई चीज नहीं थी?
अपनी गुदड़ी पाकर साधु संतुष्ट हुआ। उसने कहा- जो-जो चीजें मैंने बताई थी उन सबका काम यह गुदड़ी निकाल देती है। इसलिए मैं उन सब चीजों को इस एक में ही समाया हुआ समझता हूँ। वे अनेक वस्तुएं अलग-अलग मेरे पास नहीं है तो भी उन सबका प्रयोजन इस एक से हल हो जाने के कारण मेरे लिए यह उतना ही महत्व रखती है जितना कि अन्य लोगों के लिए मेरी चोरी वाली रिपोर्ट में लिखाई हुई चीजों का होना।
साधु की बात सुनकर सब लोग हँस पड़े। साधु ने कहा हंसिये नहीं, आपके सब के पास भी एक ऐसी ही गुदड़ी है जिसको प्रयोग करने लगें तो बहुत चीजें बटोरने के झंझट से बच जायं और उस एक से ही सब काम निकाल लिया करें।
लोगों ने आश्चर्य से पूछा- ऐसी गुदड़ी हमारे पास कहाँ है? साधु ने कहा- अन्तरात्मा में निवास करने वाला ईश्वर ही वह गुदड़ी है। उसका आश्रय मजबूती से पकड़ लिया जाय उसे हर समय छाती से लगा कर रखा जाय, और हर अवसर पर उसको उपयोग किया जाय तो वह जीवन की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है।
साधु के प्रवचन से श्रोताओं के कान खुल गये। उनकी समझ में आया कि अनेक प्रयोजनों की पूर्ति एक ईश्वर आश्रय रूपी गुदड़ी से भी हो सकती है।