धूप और उसका महत्व

September 1949

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(श्री लक्ष्मी नारायण टंडन ‘प्रेमी’ संपादक ‘खत्री-हितैषी)

यों तो ‘गुणमय, दोषमय कीन्ह विश्व करतार’ कथन ठीक है- सर्वांगपूर्ण, सर्वांगीण, सुन्दर, सर्वांग उपयोगी जो कोई भी वस्तु है संसार में ईश्वर के अतिरिक्त नहीं हैं, किन्तु रुपया में पन्द्रह आने लाभ पहुंचाने वाली वस्तुयें ‘लाभ प्रद’ कहलाती हैं यही संसार का नियम है। धूप में रहने से यदि रंग काला हो जाता है, इससे फैशनेबल लोग धूप से दूर भागते हैं। भागा करें। भले ही दोपहर की धूप रंग काला कर दे, पर प्रातःकाल की धूप तो रंग भी काला नहीं करेगी। निर्धनों का कम से कम दिन का तो जाड़ा सूर्य भगवान की कृपा से ही पार होता है-भारत गर्म देश है यहाँ हम धूप और सूर्य की भले ही परवाह न करें, किन्तु संसार के ठंडे प्रदेशों के निवासियों से इसकी महत्ता पूछी जाय तो वे बतावेंगे कि यह कैसा अमृत है।

यह साधारण बात तो कोई भी जानता है कि बिना सूर्य की गर्मी और प्रकाश के पेड़-पौधे, कीट-पतंग, मनुष्य, पशु-पक्षी कोई ही जीवित नहीं रह सकता। किन्तु सूर्य का प्रकाश और धूप किस प्रकार रोगों को भगाने और स्वास्थ्य को ठीक रखने में सहायता देता है, यदि हम जान जायं तो हमारा बहुत लाभ हो। संभव है आपको यह सुनकर हँसी आवे कि-धूप भी एक प्रकार का भोजन है। जल, वायु और आकाश तत्व से प्राण तत्व और भोजन योगी जन तथा वह मनुष्य प्राप्त करते हैं जिन्होंने अपने शरीर को प्राकृतिक ढंग पर चल कर निताँत शुद्ध कर लिया है, पर धूप से भी वे लोग भोजन ग्रहण कर लेते हैं। एक प्राकृतिक चिकित्सक ने मुझको बताया कि जब उन्हें भूख लगती है तो वह काफी देर धूप में बैठ जाते हैं और उनकी भूख बहुत कुछ कम हो जाती है। खैर इतनी बड़ी बात आप जाने दें। पर डाक्टरों के इस सिद्धान्त को भी सभी मानते हैं कि धूप और प्रकाश से बढ़कर अधिक सफल कीटाणु-नाशक कोई वस्तु नहीं है। वर्तमान समय में जब देश का स्वास्थ्य गिरा हुआ है तब तो धूप और प्रकाश हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है। आइये पहले हम यह समझें कि धूप कब कैसे लेनी चाहिए-

(1) प्रातःकाल के निकलते सूर्य की प्रथम रश्मियाँ (अल्ट्रा वायलेट रेज) स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभप्रद हैं। उससे घटिया सायंकाल के समय डूबते हुए सूरज की किरणें हैं। सूर्य की किरणें नंगे बदन लेना चाहिए। स्त्रियाँ यदि नंगे बदन न ले सकें तो एक बहुत पतला या भीगा कपड़ा पहन लें। अब तो सूर्य-चिकित्सा-विज्ञान के आधार पर अनेक रोगों की सफल चिकित्सा हो रही है। सूर्य की धूप से रंगीन शीशों आदि का तैयार किया हुआ वैज्ञानिक ढंग से पानी तथा सेल आदि अनेक रोगों को दूर करने में समर्थ हुआ है।

(2) जाड़े के दिनों में दस बजे से पहले और गर्मी में आठ बजे से पहले धूप-स्नान कर लें। सर्दी के दिनों में भले ही दोपहर को धूप लें। पर ऐसे समयों में पैर घुटने तक कपड़े से ढके रहें और चेहरा हरे पत्तों से या कम से कम कपड़े से ढ़का रखें। करवट लेते रहे ताकि सारे शरीर में धूप लगे। पाँच मिनट से प्रारम्भ करके एक घंटे तक या और अधिक तक बढ़ा सकते हैं। शरीर से तेजी से पसीने द्वारा विकार निकलता है और रोम-कूप खुल जाते हैं। (फिर स्नान कर लें।) चर्म रोगों में जैसे खाज, दाद, उकौता आदि में तथा स्नायु-दुर्बलता तथा शारीरिक कमजोरी में धूप कभी भी न लें। अस्थि-क्षय में यह राम बाण है। पर फेफड़े के क्षय में रोगी सीधी धूप कभी भी न लें। वह कम ही लें। क्योंकि धूप से रोगों का उभार तेजी से होता है। विशेष कर जिन्हें बीमारी तेजी पर हो या जिन्हें एक बार भी खून आ गया है, ऐसे क्षयी, सीधी धूप से, कम से कम तेज धूप से बचें। वे प्रातः की रश्मियों का सेवन कर सकते हैं- वह भी धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ा कर। प्रखर सूर्य किरणों से तो स्वस्थ मनुष्य को भी बचना चाहिए।

यह जानना भी आवश्यकता है कि धूप कब न लें-

(1) तेज हवा चलती हो, बदली हो, पाला हो उस दिन धूप-स्नान स्थगित रखें। बहुत सर्दी हो तो एक हल्का कपड़ा पहन सकता है।

(2) खाना खाने के बाद कम से कम एक घंटे तक धूप न लें।

(3) नहाने के भी तुरन्त बाद धूप न लें। 10-15 मिनट गुजर जाने दें।

(4) एनीमा लेने के 10-15 मिनट तक धूप न लें। वैसे ही धूप के 15-20 मिनट तक एनीमा न लें।

(5) दोपहर की प्रखर धूप से बचें।

विटामिन डी तो शरीर में अपने आप धूप में बैठने से उत्पन्न हो जाता है। सरसों का तेल यदि धूप में रख कर गर्म कर लें और फिर धूप में शरीर में मले तो विटामिन डी पैदा हो जाता है। यही कारण है कि माताएं शिशुओं के शरीर में धूप में उन्हें लिटाकर कड़ुवा तेल मलती हैं। विटामिन डी की कमी से हड्डी और दाँत सम्बन्धी रोग, हड्डी का टेढ़ा हो जाना (रिकेट) दाँतों का ठीक समय पर न निकलना, सूखा रोग, जुकाम, मृगी, हिस्टीरिया, पीलिया, दाद, खुजली, उकौता, हृदय रोग, क्षय, इन्फ्लुएंजा, निमोनिया आदि रोग हो जाते हैं। निर्धन मनुष्य भले ही दवा आदि तथा उन पदार्थों का प्रयोग करने में समर्थ न हों जिनसे विटामिन डी उसे प्राप्त हो, पर धूप और धूप में तेल-मालिश में तो कुछ खर्च नहीं होता। अतः धनी, निर्धन, युवा, बाल, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सभी को धूप और प्रकाश का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। हमारे यहाँ सूर्य नमस्कार सूर्य-पूजा आदि इसी से महर्षियों ने प्रचलित की। सूर्योदय के पूर्व नहा धोकर निकलते सूर्य को जल चढ़ाने की धार्मिक प्रथा है। उसके अन्दर यही अल्ट्रावायलेट-रेज के नाम वाली बात छिपी है।


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