(श्री पं. तुलसीराम शर्मा, वृन्दावन)
पतिभिर्भ्रातृ भिश्चैताः पतिभिदवरैस्तथा।
पूज्या भूषयितव्याश्चबहुकल्याणमीप्सुभिः॥
मनु. 3।55॥
विरोध कल्याण के इच्छुक माँ, बाप, भाई, पति और देवरों को चाहिए कि स्त्रियों का पूजन (सत्कार) करें, वस्त्राभूषण से भूषित करें॥55॥
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फलाः क्रिया॥ 56॥
जिस कुल में स्त्रियों का आदर होता है उस कुल पर देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ अपमान होता है वहाँ सब कर्म निष्फल होते हैं॥56॥
शोचन्तिजामयो यत्र बिनश्यन्याशु तत्कुलम्।
नशोचन्तितुयत्रैतावर्धते तद्धिसर्वदा ॥ 57॥
जिन कुल में स्त्रियाँ क्लेश भोगती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है। जहाँ क्लेश न पाकर आराम पाती हैं वह कुल सब प्रकार से बढ़ता रहता है।
तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः॥
भूति कामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषुच॥59॥
इसलिए ये स्त्रियाँ सदा भूषण वसन भोजन से संतुष्ट करने योग्य हैं कल्याण की कामना वाले पुरुषों को मंगल कार्य और उत्सवों में संतुष्ट रखना उचित है।
संतुष्टोभार्ययाभर्त्ताभर्त्रामार्या तथैव च।
यस्मि न्नेवकुलेनित्यं कल्याणंतत्रवैध्रुवम्॥60॥
जिस कुल में स्त्री से स्वामी और स्वामी से स्त्री प्रसन्न रहती है उस कुल में सदा कल्याण होता है।
जामयोयानि गेहानि शपन्त्य प्रतिपूजिताः।
तानिकृत्याहतानीव विनश्यन्तिसमन्ततः॥58॥
जहाँ जामि (पत्नी-कन्या-पुत्र वधू) का आदर नहीं होता वह जिस कुल को शाप दे देती है वह अभिचार अथवा कृत्या (मारणादिक) के समान चारों ओर से नाश हो जाता है॥58॥
मातरं पितरं वृद्धं भार्या साध्वीं सुतं शिशुम्।
गुरुविप्रं प्रपन्न च कल्पोऽविभ्रच्छवसन् मृतः॥
(भा. 10।45।17)
वृद्ध माता-पिता, पतिव्रता स्त्री, बालक पुत्र, गुरु और शरणागत विप्र इन का जो पालन नहीं करता है वह जिन्दा होता हुआ मृतक के तुल्य है।