“गुरु वन्दना”

September 1949

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(श्री. रत्नेशकुमारी जी नीराँजना, मैनपुरी)

आपने ये गुरु-वन्दना स्वयं पढ़ी न भी हो, तो भी सुनी तो जरूर ही होगी। आप सभी में से अनेकों में स्वयं पढ़ी भी होगी और कुछ कदाचित ऐसे भी होंगे जो नित्य पाठ करते होंगे-

‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देव महेश्वरः,

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः’।

क्या आपने कभी इस पर विचार किया है इस में सत्य का भी अंश है या केवल स्तुति वाक्य मात्र है? यदि आपने विचार नहीं किया है तो आपका ये वन्दना पाठ व्यर्थ है क्योंकि आपका अन्तर मन कभी भी उस बात को धारण नहीं करेगा। जिस पर उसका विश्वास न होगा भले ही आप दिन में बीसों बार तोता रटन्त करें।

अस्तु, आइये हम इस पर विचार करें “ब्रह्मा गुरु क्यों है”? हाँ, गुरु ब्रह्मा है क्योंकि वह हमको नवीन, दिव्य, पवित्र आनन्दमय जीवन प्रदान करता है, जिसको भुक्तभोगी ही जान सकता है।

गुरु विष्णु भी है। यह नव-जीवन हमारे चिर संचित कुसंस्कारों के बीच में कैसे टिक पायेगा। यदि गुरुदेव का पवित्र संरक्षण न प्राप्त हुआ तो महेश भी गुरु हैं, हमारे मन में जो कुसंस्कारों की बस्ती बसी हुई होती है। उसका शाँत भाव से धीरे-धीरे या क्षण मात्र में नाश कर देता है।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों (सृजन, वर्धन, संहार) शक्तियाँ जिस में निवास करती हैं तथा जो उनसे समय-2 पर काम भी लेता है पर उनमें जिस की आसक्ति नहीं है वही तो परब्रह्म है। गुरु भगवान में ये भी गुण होता है इसीलिए तो वह परब्रह्म भी कहा जाता है।

आइये, आज अनन्य मन से प्रार्थना करें-

‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देव महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।’


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