सूक्ष्म-और अतिसूक्ष्म

September 1949

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(श्री के. बी. सुब्बाराव)

पानी पृथ्वी से अधिक सूक्ष्म है। पृथ्वी पानी का बदला हुआ स्वरूप है। पृथ्वी पानी से उत्पन्न हुई है। पृथ्वी प्रलय के समय पानी में घुल जाती है। पानी पृथ्वी से अधिक द्रव है इसलिए पृथ्वी पर फैल जाता है। अग्नि पानी से अधिक सूक्ष्म है। पानी अग्नि से उत्पन्न होता है। जब मानसून गरम होती है, हमें पसीना आता है। पानी अग्नि में मिल जाता है। हवा अग्नि से अधिक सूक्ष्म है। अग्नि हवा से उत्पन्न होती है। अग्नि हवा में घुलनशील है। हवा अग्नि पर फैलती है। आकाश हवा से अधिक पतला है और इन दूसरे चार तत्वों की उत्पत्ति आकाश से ही होती है। आकाश, हवा, अग्नि, पानी और पृथ्वी इन चार तत्वों पर आच्छादित है। मन और समय आकाश से अधिक सूक्ष्म है। परमात्मा मन से भी अधिक सूक्ष्म है।

विचार से बढ़कर मन है। मन से बढ़कर बुद्धि होती है। परन्तु बुद्धि से बढ़कर क्या है? वह है, आत्मा या परमात्मा। ये बड़ी आत्मा बुद्धि बगैर सब तत्वों का जरिया है, यह क्राँति सूक्ष्म है। यह स्थिर, अस्थिर, भीतर और बाहर, द्रव और दृढ़ सब में व्याप्त है, यह बात स्वयं सिद्ध है और वह बहुत दूर और पास है और वही सब से बड़ा आत्मा या परमात्मा है। यह परमात्मा सब और हर एक जीव में छुपा हुआ व्याप्त-विद्यमान है, परन्तु प्रकाशित नहीं होता, जो व्यक्ति उस परमात्मा के अस्तित्व का अनुभव करना चाहते हैं वे इस तत्व को समझ कर, पालन करके इसको अपनी दिन चर्या से लाकर अपने चित्त को सूक्ष्म करके ध्यानपूर्वक साधना के द्वारा उसका अनुभव कर सकते हैं।


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