हमें धार्मिक शिक्षा चाहिए।

September 1949

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्रीमती ब्रह्मावती देवी, वारा)

भारत की नारियों में अपने कर्त्तव्य का ज्ञान प्राचीन समय से होता चला आया है, क्यों न हो हमारी प्राचीन मातायें गर्भावस्था से ही अपनी संतान को चाहे वह पुत्र हो या पुत्री सुँदर, सुशील, धार्मिक एवं विद्वान बनाने के यथेष्ट रूप से प्रयत्न करती रहती थी। जब तक उनकी संतान पूर्ण रूप से योग्य न बन जाये। उस काल लड़कियों की शिक्षा के लिए विशेष ध्यान दिया जाता था। उनको धर्म शास्त्र गृह-कार्य में दक्ष एवं पारिवारिक और लौकिक व्यवहार में पटु बना दिया जाता था ताकि वे अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए दोनों कुलों को उज्ज्वल कर अक्षय सुख को प्राप्त होती थी हमारे ग्रन्थ प्रमाण स्वरूप हैं। राज्य घराने में उत्पन्न हुई सुकुमारियाँ सीता, दमयन्ती, सावित्री, शकुन्तला आदि अपने कर्त्तव्य और ज्ञान द्वारा घोर दुःखों से पीड़ित होने पर भी अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित न हुई और संसार में नारी समाज के लिए आदर्श बनकर अमरता को प्राप्त हुई।

इसका कारण यही था कि हमारी प्राचीन मातायें बाल्य काल से ही अपनी सुशिक्षा द्वारा पुत्रियों को निरन्तर सुशिक्षित करती रहती थी। सीताजी को ससुराल जाते ही माय रानी सुनयना ने क्या ही सुन्दर शिक्षा दी थी जिसको हमारी रामायण पढ़ने वाली बहनें और मातायें भली प्रकार जानती हैं। माता के आदेशानुसार सीता जी ने अपने गुणों द्वारा सारे परिवार को अपने वश में कर लिया था। कौशल्या माता तो उनको आँख की पुतली की तरह रखती थी। दशरथ का उन पर अगाध वात्सल्य था। देवर, देवरानियाँ सासुएं उन पर कितना प्रेम करते थे यह किसी से छिपा नहीं है।

इसी भाँति सावित्री सारे सुखों और वैभव को ठुकरा कर नेत्रविहीन सास-ससुर और पति सत्यवान की सेवा करती हुई वन में निवास करती थी घर का सारा कार्य वह नित्य प्रति अपने ही हाथों करती थीं, अपने पतिव्रत धर्म के बल पर यमराज पर भी विजय प्राप्त किया था।

गार्गी, मैत्रेयी धर्म शास्त्र की ज्ञाता थीं ऐसे हमारे प्राचीन समय के भारत के अनेकों उदाहरण हैं ये हमारी प्राचीन माताओं की सुशिक्षा का ही प्रभाव है जो लड़कियों के लिए लौकिक और पारलौकिक सुख का हेतु है।

परन्तु शोक है कि आज वह हमारी प्राचीन शिक्षा नष्ट हो गई। हम सब कर्त्तव्य हीन हो गई इसी कारण हमारा पारिवारिक जीवन अशान्तिमय बन गया। नित्य प्रति प्रत्येक घर में कलह, न बहू सास से प्रसन्न न सास बहू से प्रसन्न, कहीं देवरानी-जिठानी में नहीं बनती, तो किसी परिवार में कई चूल्हे हैं इसका एकमात्र कारण किसी को अपने सच्चे कर्त्तव्य का ज्ञान नहीं। सास-बहू को नौकरानी समझ कर शासन करना चाहती है तो बहू स्वयं मालकिन बनकर सास पर हुक्म चलाना चाहती है। माताएं चाहती हैं कि मेरी लड़की ससुराल जाकर अपना प्रभाव जमावे परन्तु सास चाहती है बहू मेरी आँखों के इशारे पर नाचे। भला ऐसा कब सम्भव हो सकता है, आखिर वह भी तो किसी की बेटी ही है।

जो शिक्षा स्कूल, कालेजों में कन्याओं को दी जाती है उससे उन्हें सुशिक्षित कहलाने का, प्रमाण पत्र या डिग्रीधारी होने का अथवा नौकरी का साधन भले ही मिल जाय पर वह शिक्षण नहीं मिलता जिसको प्राप्त करने से वे आदर्श नारी, पुत्री, कुल-वधु और माता बन सके। वर्तमान शिक्षा प्रणाली यों तो पुरुष जाति के लिए भी कुछ विशेष उपयोगी सिद्ध नहीं हो रही है पर नारी जाति के लिए तो वह उलटा ही परिणाम उपस्थित कर रही है। अशिक्षित बहिनों की अपेक्षा आज की सुशिक्षित कहलाने वाली बहिनें प्रायः सफल गृहिणी सिद्ध नहीं होतीं।

हमें आज शिक्षा की आवश्यकता है। पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी शिक्षित होना ही चाहिए पर हमारी शिक्षा ऐसी हो जो आदर्श नारी, सुगृहिणी, गृह-लक्ष्मी, सती-साध्वी और विवेकशील माताएं पैदा करें। ऐसी शिक्षा धार्मिक आधार पर होनी चाहिए और ऐसी शिक्षा विदुषी, चरित्रवान महिलाएं तथा वयोवृद्ध, विद्वान तपस्वी पुरुष ही दे सकते हैं। जब हमें नारी जाति के लिए ऐसी ही शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो छात्राओं की नस-नस में भारतीय संस्कृति का आदर्श भर दे और उसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक घर में स्वर्गीय सुख और शाँति के दर्शन होने लगें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118