क्रिया-माहात्म्य

September 1949

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(श्री स्वामी सत्यभक्त जी)

लड़के सो लड़के थे यह भी नहीं देखते कि किसी को किस मौके पर चिढ़ाना चाहिए और किस मौके पर नहीं। पंडित रामकृष्ण के यहाँ आज मेहमान आये थे और वे अपने मेहमान के साथ बाजार से लौट रहे थे कि लड़को ने चिल्लाकर कहा- पंडित जी, राधेश्याम।

पंडित जी जरा बिगड़ कर बोले- क्या बकते हो? उस चोर का नाम क्यों लेते हो? राम-राम कहो, राम-राम!

लड़कों ने और जोर से चिल्लाया कहा- राधेश्याम- राधेश्याम।

पंडित जी कहते रहे मूर्खों! नासमझों! क्या बकते हो आदि। और लड़के चिल्लाते रहे ‘राधेश्याम-राधेश्याम’। इस युद्ध में पंडित जी पराजित हुए और वे चल दिये। लड़के तब तक चिल्लाते रहे जब तक उनकी आवाज पंडित जी के कानों में पहुँच सकती थी। और पंडित जी जाते-जाते तब तक मुंह फिरा कर धमकाते रहे जब तक उनके चेहरे की आकृति लड़कों को दिखाई दे सकती थी।

घर पहुँच कर मेहमान ने पूछा- आप तो वैष्णव हैं, ‘राधेश्याम’ कहने से चिढ़ते क्यों हैं?

पंडित जी ने हँसते-हँसते कहा-चिढ़ता नहीं हूँ किसी तरह लड़कों से राधेश्याम कहलाना चाहता हूँ, भगवान का नाम लेने से विचारों की मुक्ति हो जायगी।

मेहमान ने कहा- वे तो आप को चिढ़ाने के लिये राधेश्याम कहते हैं भगवान का नाम लेने का तो उन्हें ख्याल भी नहीं होता, तब कैसे उनकी मुक्ति हो जायगी।

पंडित जी ने कहा- आप को क्रिया-माहात्म्य का पता नहीं है।

मेहमान चुप रहे।

पंडित जी बड़े गौभक्त थे। उनने घर में एक गाय रख छोड़ी थी और बड़े जतन से वे उस की सेवा किया करते थे। उस के खाने-पीने आदि की पूरी व्यवस्था किये बिना वे सोते नहीं थे।

मेहमान ने कहा- गौ-सेवा के पुण्य में आज मुझे भी हाथ बटाने दीजिए।

पंडित जी ने खुशी से स्वीकृति दे दी। मेहमान ने गाय के बाँधने की जगह की खूब सफाई की और खाने-पीने की पूरी व्यवस्था करके गाय को बाँध दिया।

जब सवेरे पंडित जी उठे तो उन ने देखा कि गाय को बाँधने का रस्सा इतना छोटा कर दिया गया है कि गाय सिर भी नहीं उठा सकती। पंडित जी को बड़ा रंज हुआ। उनने मेहमान से पूछा-आप ने गाय का रस्सा इतना छोटा क्यों कर दिया? बेचारी का रात भर सिर झुका रहा।

मेहमान ने कहा- मैंने सोचा इस प्रकार सिर झुकाने से नम्रता या विनय की तपश्चर्या होगी और इस तपश्चर्या से परमात्मा अवश्य खुश होगा।

पंडित जी ने कहा- इस प्रकार तो गाय का प्राण भी निकल जायगा तब भी तपस्या न होगी। बिना समझे कहीं कोई तपस्या होती है?

मेहमान ने आश्चर्य से कहा-आप तो क्रिया- माहात्म्य रातभर में ही भूल गये।

अब की बार पंडित जी को चुप रहना पड़ा।

इस बातचीत का दुष्परिणाम यह हुआ कि जब लड़के चिढ़ाते हैं पंडित जी ध्यान ही नहीं देते। इस प्रकार एक चहल-पहल ठंडी पड़ गई है और इस से बहुतों का मनोरंजन छिन गया है।


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