(प्रणेता श्री रज्जनलाल प्रधान एम.ए. मन्दसोर)
तुम अपरिचित साथ हो पर ।
आज युग युग से तुम्हारा,
ढूँढ़ते हैं लोग परिचय।
मोहने को आपके हित,
हो रहे हैं नित्य अभिनय॥
दूर साधक क्यों समझते, दूर से ही पास होकर।
तुम अपरिचित साथ हो पर ॥
मधुर परिचय हीन परिचय,
अखिल जिसमें विश्व है लय।
आज तक परिचय प्रयत्नों,
ने है दिखलाई प्रलय क्षय।
आज परिचय के अनेकों,मार्ग यद्यपि एक होकर।
तुम अपरिचित साथ हो पर ॥
तुम कहीं भी हो भले ही,
जान कर भी हम न जाने।
आपको ही सत्य सुन्दर,
नित्य सारा विश्व माने।
कौन सा अज्ञान में भय, जबकि सर पर तेरे दो कर।
तुम अपरिचित साथ हो पर ॥