स्मरण शक्ति और उसका विकास

March 1940

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(ले0-श्री गिरराज किशोर विशारद, चिरहौली)

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स्मरण शक्ति का विकास, मनुष्य जीवन के विकास के लिये अत्यंत ही आवश्यक है। इस बात को सभी लोग स्वीकार करते हैं। गृही, विरक्त, बहुधंधी, बैरागी सब को पिछली बातें याद रखने की जरूरत पड़ती है। बहुत पढ़ने सुनने और अनुभव करने पर भी मूर्खता बनी रहती है इसका कारण स्मरण शक्ति की कमी है। हम सैकड़ों सद्ग्रन्थ पढ़ते हैं उनको पढ़ने और सुनने के काल में अपने ऊपर ज्ञान का पूरा असर होता है। उन क्षणों में साधारण लोगों की स्थिति भी महापुरुषों के समान होती है। जिस विषय की पुस्तक पढ़ रहे हैं उस विषय की काफी जानकारी उस समय हो जाती है। पर यह पढ़ना सुनना बंद करते ही सारा ज्ञान चला जाता है। दस पाँच दिन बाद तो कुछ भी याद नहीं रहता सिर्फ इतना ख्याल रहा आता है कि अमुक विषय की अमुक पुस्तक हमने पढ़ी थी। कोई एकाध बात अधिक आकर्षक हुई तो वह याद रह गई अन्यथा सब गायब। कुछ बरस बाद केवल इतना याद रहता है कि यह किताब हमने कभी पढ़ी थी। और भी अधिक समय बीतने पर इस बात को भी भूल जाते हैं। इस प्रकार असंख्य पुस्तकों में पढ़ा हुआ और अनेक महापुरुषों के मुख से सुना हुआ ज्ञान हमारी फटी जेब में से यों ही कहीं गिर पड़ता है और धूलि में मिल कर खो जाता है। यदि हम दस पाँच पुस्तकों के सत् ज्ञान को धारण किये रहें। एकाध महापुरुष के विचार भी याद बने रहें तो पूरे ज्ञानी और अनुभवी बने रह सकते हैं। किन्हीं उत्तम अवसरों पर हम जैसे प्रभावित हुये थे वैसी ही स्थिति का चित्र स्मरण रखे रहें तो जीवन को एक ही निश्चित पथ की ओर ले जा सकते हैं। यदि हमारी स्मरण शक्ति तीव्र हो तो बात की बात में पुराने अनुभवों को याद कर सकते हैं। पिछली विद्या का स्मरण करके अद्वितीय बने रह सकते हैं।

यहाँ यह न सोचना चाहिये कि ईश्वर ने याद भूल जाने का दुर्गुण देकर हमारे साथ अन्याय किया है। नहीं, उसने हमारे मस्तिष्क यंत्र और उसके भीतर की शक्तियों का निर्माण बड़ी बुद्धिमतापूर्वक किया है। यदि हमें पिछले दिनों की सारी बातें ज्यों की त्यों याद बनी रहें तो मस्तिष्क इतना भर जाय कि उसमें आगे की चीजें देखने और सुनने शक्ति ही न रहे। गत अंक में बताया जा चुका है कि पिछली बातें मस्तिष्क के परमाणुओं में भीतर धँसती जाती हैं और उनकी ऊपर की पीठ दूसरी बातों के लिये खाली होती जाती है। जिस प्रकार पानी की एक लहर आगे चलती जाती है और पीछे का स्थान दूसरी लहरों के लिये छोड़ती जाती है उसी प्रकार पूर्व ज्ञान की स्मृति भी सूक्ष्म परमाणुओं में भीतर धँसती जाती है।

मस्तिष्क एक प्रकार की कबाड़िए की दुकान है जिसमें तरह-तरह की टूटी-फूटी नई पुरानी चीजें अव्यवस्थित रीति से भरती चली जाती हैं। उस दुकान में कहीं टूटे पुर्जे पड़े हुए हैं तो कहीं चक्की चूल्हे, कहीं बटन पड़े हैं तो कही सुइयाँ, कहीं कुर्सियों के पाये पड़े हुए हैं तो कहीं हाकी की। इस प्रकार की अव्यवस्थित ढंग से खचाखच भरी हुई दुकान का मालिक भी यदि आलसी है, तो किसी चीज को ढूंढ़ निकालना सहज न होगा। दुकानदार उसमें से एक पेच ढूंढ़ना चाहे तो उसे दुकान का सारा सामान तितर-बितर करना पड़ेगा तब किसी अनिश्चित स्थान पर कोई पेच पड़ा मिल सकेगा। यही बात स्मरण के संबन्ध में हमारे मस्तिष्क की होती है। जो लोग स्थूल बुद्धि से यों ही लापरवाही के साथ चाहे जिस ज्ञान को चाहे जहाँ पटक देते हैं उनका संग्रह कूड़े की तरह होता है जिसे दूसरे ही क्षण खोज निकालना कठिन है। इसके विपरीत जो लोग व्यवस्थापूर्वक किसी चीज का स्थान नियत करके उसी स्थान पर सब किसी वस्तुओं को रखते हैं उनकी चीजें निगाह के सामने रहती हैं और यदि ओझल भी हो जाएं तो ढूंढ़ने में देर नहीं लगती उन बातों की याद जल्दी उठ आती है जो यह समझ कर मस्तिष्क में रखी जाती हैं कि इसकी फिर जरूरत पड़ेगी और तब तुरंत याद उठ आनी चाहिये। इसके विपरीत जिस चीज में कोई विशेष रुचि नहीं होती या ऐसा भाव नहीं होता कि इसका स्मरण रखना आवश्यक है वह सब चीजें याद नहीं रहती।

आप एक बगीचे में घूमने जाते हैं, सैकड़ों तरह के पौधों, बच्चों, बेलें, फूल, फल देखते हैं। बगीची छोड़ते ही कोई आपस पूछे कि बताइए कौन कौन से पेड़ आपने देखे आप यही कहेंगे ‘भाई, याद नहीं। फिर कोई प्रश्न करे अच्छा पेड़ तो बहुत से थे शायद इसलिये न याद रहे हों, फूल तो थोड़े ही पौधों पर होंगे, बताइये किन-किन फूलों को आपने देखा। आपको पूरी तरह यह भी याद न होगा। एक दो चीजों की यदि याद रही भी होगी तो उनकी जिनमें कुछ विशेष आकर्षण होगा। सीधी-साधी चीजों में से तो शायद ही कोई याद होगी। दूसरे दिन आप उसी बगीचे में जाते हैं और सोचते हैं कल के पूछने वाले को आज ठीक जवाब दूँगा और पेड़ों को ध्यान से देखते हैं फूलों को ठीक तरह पहचानते हैं, उनके नाम याद करते हैं और ध्यान देते जाते हैं कि यह सब बातें मुझे ध्यान रखनी हैं साथ ही डरते जाते हैं कि कहीं भूल न जाऊँ जिससे कल की तरह आज भी निरुत्तर होकर अपनी स्मरणशक्ति की स्थूलता का उपहास न कराना पड़े। अब आप बगीचे के बाहर आइये सारे बगीचे का चित्र मस्तिष्क में घूम रहा है पूछने वाला फिर पूछता है-बताइए साहब आज बगीचे में क्या देखा? आप तुरंत ही सब चीजें बता देते हैं। भूल पड़ती है तो केवल एक दो बात की। यह भी इसलिये कि इस प्रकार स्मरण को धारण करने का यह पहला अभ्यास था। अभ्यास कुछ पुराना होते ही-याद रखने की भावना दृढ़ होते ही वे बातें आपको तुरंत याद आने लगेंगी जिनके लिये अभ्यास किया था। अकबर किस सन् में पैदा हुआ था यह स्कूल के विद्यार्थियों को ठीक याद होता है पर उनसे पूछा जाय कि तुम्हारा छोटा भाई किस सन् में पैदा हुआ था तो उन्हें याद न होगा। क्या छोटे भाई की अपेक्षा अकबर अधिक घना संबंधी है? नहीं। अकबर की जन्म तिथि याद रखने की इसलिये कोशिश की गई है कि शायद यह बात परीक्षा में पूछी जाय। पर छोटे भाई के बारे में ऐसी कोई आशंका नहीं है इसलिये वह याद भी नहीं है। स्कूल में जोमेट्री हम में से सब ने पढ़ी होगी पर जिन्हें स्कूल के बाद उससे काम नहीं पड़ा उन्हें एक दो साध्यों को छोड़ कर शेष सब साध्यें भूल गई होंगी। पर कक्षा 1 में याद किये गये पहाड़े अभी तक याद होंगे क्योंकि उनके पीछे अनेक बार यह भावना की गई है कि यह हमें याद रखने हैं।

उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ने के बाद पाठक समझ गये होंगे कि स्मरण शक्ति तभी ठीक काम करती है जब उसके पीछे याद रखने की इच्छा और प्रयत्न हो। जिन लोगों में यह शक्ति स्वभावतः अधिक हो उन्हें ईश्वर की इस कृपा के लिये धन्यवाद देना चाहिये और जिनमें कम है उन्हें बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिये।

अभ्यास नं0 2

गत अंक में स्मरण शक्ति बढ़ाने का एक अभ्यास ताश की बूँदों को याद रखने का बताया गया था। अब एक और अभ्यास बताया जाता है। कोई ऐसा एक रंगा चित्र लीजिये जिसमें अनेक चीजें दिखाई पड़ती हों। सीनरी के चित्र इस कार्य के लिये अच्छे बैठते हैं। इस चित्र को एक मिनट ध्यान से देखिए फिर एक कागज पर लिखिए कि उसमें क्या-क्या चीजें देखीं। बाद को अपने लिखे हुए कागज और चित्र का मुकाबला कर के देखिये कि आप क्या-क्या बातें लिखने में भूल गये हैं। अब दूसरा चित्र लीजिए और उसे देखिये तथा पूर्ववत उसमें देखी हुई चीजों को भी लिखिए तत्पश्चात परीक्षा कीजिए कि अब की बार क्या छोड़ गये। एक चित्र एक बार ही काम में लाना चाहिए। क्योंकि दूसरी बार तो कोई चीज छूट ही नहीं सकती। पहली बार जो भूल गये थे, मुकाबला करने में आपने जान लिया कि इसमें अमुक भूल थी। फिर दूसरी बार भूल रहने के लिये कोई चीज ही नहीं बचती। एक दिन में दो तीन चित्रों का अभ्यास काफी होगा। यह जरूरी नहीं है कि इतने चित्र खरीदें तभी काम चले। सचित्र पुस्तकों में अनेक चित्र होते हैं। ऐसी एक किताब से कई दिन का कम चल सकता है। कुछ देर के लिये मित्रों से सचित्र पुस्तकें माँगी जा सकती हैं, इस प्रकार बिना कुछ खर्च किये भी यह अभ्यास चलाया जा सकता है। एक मिनट का अभ्यास ठीक हो जाय तो फिर समय घटाना चाहिए 50 सेकेंड फिर 40 फिर 30 सेकेंड इस प्रकार एक दो सेकेंड देख कर ही चित्र का पूरा विवरण लिख देने तक का अभ्यास करना चाहिये। एक रंगे चित्र के बाद बहुरंगे चित्रों का अभ्यास है। इसमें दीखने वाली चीजों का स्वरूप और रंग दोनों लिखना चाहिये। यह दुहरा अभ्यास है इसलिए आरंभ काल में दो मिनट तक समय देखने के लिए लिया जा सकता है और क्रमशः घटाया जा सकता है। कुछ दिन लगातार इस चित्र दर्शन और लेखन के अभ्यास करने पर स्मरण शक्ति का काफी विकास हुआ मालुम पड़ने लगता है।


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