मन के पास जितने विचार रह जाते है उन्हीं की उधेड़बुन शुरू हो जाती है-और हम मौन द्वारा बहुत कुछ ज्ञान तथा भला बुरा पहचान लेते हैं। इसलिये मौन रखना एक अच्छा गुण है।
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विष को खाकर कोई नहीं परखता उसे तो दूसरों के कथनानुसार ही मान लेते हैं कि इसमें भारक गुण विद्यमान है। इसी तरह अमृतमय पवनों को मानने में आना कानी न करो। क्योंकि इनको हजारों पुरुषों ने अपनाया है और आत्मोन्नति की है।
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आत्मिक सुन्दरता ही सच्ची सुन्दरता है यदि यह सुन्दरता नहीं है तो बाहरी सुन्दरता किस काम की। जो काम यह सुन्दरता कर सकती है वह शारीरिक सुन्दरता नहीं कर सकती। असली सुन्दरता तो आत्मिक सुन्दरता ही है जिसे प्राप्त करना प्रत्येक का ध्येय होना चाहिये।