डर, ओस बिन्दु के समान है जो सूर्य की गर्मी तथा हवा से विलीन हो जाती है। इसी तरह से जब किसी का चित्त पूर्ण रूप से सत्य की ओर झुक जाता है तो उसका डर रूपी ओस बिन्दु वहीं विलीन हो जाता है और उसके स्थान पर शान्ति विराजती है।
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डर मनुष्य के हृदय में तभी पदार्पण करता है जब कि वह अपने को अकेला तथा असहाय अनुभव करता है या जब तक वह ईश्वर को सर्वव्यापक नहीं मानता। उसके ऊपर वही असर पड़ता है जैसा एक असहाय मनुष्य पर पड़ता है। यदि उसे यह भान हो जाए कि ईश्वर सबका सहायक है तो उसका भय तुरन्त दूर हो सकता है।
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यदि तुम अपने काम में सफलता चाहते हो या वैभव चाहते हो या अपना स्वास्थ्य अच्छा करना चाहते हो तो अपना विश्वास ईश्वर में रखो। वही तुम्हारे सब कामों का पथ प्रदर्शक हो सकता है।