मैस्मरेजम से हमें क्या फायदा?

March 1940

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(ले-प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती, बी.एस.सी)

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गत दो अंकों को पढ़ने के बाद पाठक समझ गये होंगे कि मैस्मरेजम किन सिद्धान्तों पर स्थित है। जो इस विद्या के जिज्ञासु हैं उन्हें अच्छी तरह यह समझ लेना चाहिये कि यह पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक आधार पर टिकी हुई है। दूसरों पर असर डालने वाली जो व्यक्तिगत विद्युत आदमी में होती है उसी की नियमित रूप से अभ्यास करने पर अभिवृद्धि हो जाती है और इस विशेष बल द्वारा अपने को तथा दूसरों का हानि-लाभ पहुँचाया जाता है।

आज पाठकों को हमें यह बताना है कि इस विद्या के द्वारा क्या हो सकता है और क्या नहीं। पहले अपने संबंध में विचार करना चाहिये कि हम स्वयं इस विज्ञान के जरिये क्या हानि−लाभ उठा सकते हैं। यहाँ उस बात को फिर दुहराना पढ़ेगा कि आत्मशक्ति को बढ़ाये बिना कोई भी महान कार्य पूरा नहीं हो सकता और न जीवन ही सार्थक किया जा सकता है। क्योंकि सारी शारीरिक और मानसिक शक्तियों की मूल चेतना आत्म शक्ति से ही मिलती है। इच्छाशक्ति यदि निर्बल है तो पहलवान आदमी एक लड़के को भी परास्त करने में असमर्थ होगा। हट्टा-कट्टा आदमी दस कोस पैदल चलने में अपने को अशक्त पायेगा। दार्शनिक सुकरात से किसी ने पूछा-मुर्दा कौन है? उनने उत्तर दिया-जिसका मन मर गया। यहाँ मन से अभिप्राय इन्द्रिय-जन्य वासना से नहीं वरन् इच्छाशक्ति से है। यह आत्मशक्ति, विद्युत निर्माण के यंत्र है जिसके चलने पर मशीन के सारे कल पुर्जे चलने लगते हैं। चाहे वे टूटे फूटे ही क्यों न हों और उस यंत्र के बन्द या मन्द होते ही पुर्जों का काम शिथिल हो जाता है, चाहे वे बिलकुल नये ही क्यों न हों। अस्सी फीसदी नौजवानों के शरीर और मन का विश्लेषण कीजिये वे अनुत्साही और निराशा से भरे हुए मिलेंगे। शरीर की जाँच करने पर कोई छोटा-मोटा घुन लगा हुआ मिलेगा पर जवानी के नये खून को केवल उस छोटे से घुन के कारण अशक्त नहीं कहा जा सकता। फिर क्यों उसके मुँह पर मक्खियाँ भिनक रही हैं? क्यों किसी काम को करने की भीतर से स्फुरणा नहीं होती? क्यों हर वक्त निराशा और आशंका की भावनाओं से घिरा रहता है? उसमें आत्म शक्ति, आत्म विश्वास की कमी हो गई है। वह अपने बल को भूल गया है। हनुमान में समुद्र पार करने का बल था पर वे अपने बल को भूल गये थे। जामवन्त ने बताया कि भूलो मत, तुम में अनन्त बल है। जब उन्हें आत्म-शक्ति का स्मरण हुआ तो सहज ही समुद्र पार कर गये। सत्तर वर्ष के बुढऊ गाँधी को देखिये, अठारह-अठारह घंटे काम में जुटे रहते हैं। इतना श्रम करते हैं जितना अनेक युवक मिल कर भी नहीं कर सकते उनके जीर्ण क्षीण शरीर में इतनी ताकत कहाँ से आती है? उन्होंने आत्मशक्ति को बढ़ाया है। और उसी डायनेमो से इतनी बिजली मिलती रहती है कि नौजवानों की अपेक्षा कई गुना काम अपने जीर्ण शरीर से भी कर सकते हैं।

मैस्मरेजम इस आत्मशक्ति की वृद्धि करने का एक सरल और अनुभूत उपाय है। मैं यह नहीं कहता कि जिस प्रकार की त्राटक या अन्य शक्ति आकर्षण क्रियायें मैं जानता हूँ उससे अधिक हैं ही नहीं या आत्मशक्ति संपन्न महानुभावों ने उन्हीं क्रियाओं को करके आत्मशक्ति को जाग्रत किया है। उसके अगणित उपाय हो सकते हैं और बुद्धिपूर्वक नये निकाले जा सकते हैं। कुएं में से पानी निकालने के लिये पम्प लगाया जा सकता है, रहट चलाई जा सकती है, ढेंकी से काम हो सकता है, रस्सी में बाँध कर घड़ा खींचा जा सकता है और जंजीर में लोटा, कमंडल, ताम्र पात्र बाँध कर खींच सकते हैं। सब तरीकों से पानी प्राप्त किया जा सकता है पर क्रिया एक ही होगी। किसी न चूने वाले पात्र को कुएं में डुबा कर ऊपर खींचना। खींचने के उपायों को बदला जा सकता है पर सिद्धान्त में अन्तर नहीं हो सकता। यही बात आत्मशक्ति की उन्नति और मैस्मरेजम प्रणाली के संबंध में है।

बिखरी हुई शक्तियों का एकत्रीकरण ही शक्ति का कुँज हैं। एक स्वर से आज दुनिया चिल्ला रही है संगठन करो। संगठन ही शक्ति है हर प्लेटफार्म से यही पुकार आती है। संगठित हो जाओ। सर्वत्र संगठन की धूम है। हिन्दू सभा, मुसलिम लीग, जातीय संगठन, राष्ट्रीय काँग्रेस, युवक संगठन, विद्यार्थी संघ, महिला सम्मेलन, प्रजा परिजन, दलित सभा, पंडित-परिषद, का बोलबाला है। विचारधारा, व्यवसाय, धर्म, जाति, अधिकार, विद्या, स्वास्थ्य, आदि के आधार पर विभिन्न संगठन कायम हैं। और नित नये बनते जाते हैं। क्योंकि अब दुनिया जान गई है कि संसार में संघ- शक्ति एकत्रीकरण से बढ़कर कोई ताकत नहीं हो सकती। यही सर्वोपरि शक्ति है बिखर जाने, फूट पड़ने, टूट-फूट होने तथा प्रथक करण के दोष और एकता, मेल, इकट्ठे होने के गुण सर्वविदित हैं उनकी एक छोटी सी झाँकी करा देने का तात्पर्य इतना ही है कि मैस्मरेजम तत्त्व के जिज्ञासु यही भली-भाँति समझ जावें कि मानसिक शक्तियों के एकत्रीकरण द्वारा जो अद्भुत चमत्कार हो रहे हैं और उससे भी बढ़कर आगे होने वाले हैं उनका मूलभूत आधार वही महान सत्य है जिसके आगे दुनिया अब घुटने टेक कर बैठ गई है और उसके अनन्त शक्तिसम्पन्न चरणों में अपना मस्तक रगड़ रही है।

एकता- एकत्रीकरण शक्ति का सर्वोत्तम विधान है। आतिशी शीशे द्वारा सूर्य की किरणें एकत्रित होते और उनके द्वारा अग्नि उत्पन्न होते, आप सब लोगों ने देखी होगी। किसे पता है कि एक इंच के छोटे शीशे की परिधि में इतनी अग्नि घूम रही है जिसमें विश्व को भस्मीभूत करने की शक्ति है। साधारण काँच पर बिखरी हुई किरणों से हम इसे नहीं जान सकते। अपने पड़ोसियों को जब कीड़ों की तरह क्षुद्र जीव देखते हैं तब यही भ्रम होता है कि यह हाड़ माँस का पुतला तुच्छ है। इसकी शक्ति नगण्य है। किन्तु जिसने विवेकपूर्वक गवेषणा की है उसने देखा है कि यह ईश्वर का अमर पुत्र तुच्छ नहीं है। इसका बल अकूत हैं। आज का हिटलर चिल्लाता हैं ‘अज्ञानिया’ मुझे कल चपरासी, उद्रपूर्ण के लिए चिन्तित एक अनाथ बालक समझो। आदमी के अन्दर जो तत्व हैं उसे मैंने देख लिया है। मेरी शक्ति अतुलित है क्योंकि मैं अखंड शक्ति का पुत्र हूँ। दुनिया मेरी जान खाकर तिलमिला उठेगी। आज के तानाशाह कहते हैं हमें देखो हम राजघरानों में नहीं भुखमरों के घर में पैदा हुए हैं। पर हमने जान लिया है कि आदमी के अन्दर क्या है। उस दिन नेपोलियन नामक एक लड़का महान एल्पस पर्वत के निकट पहुँचा। यह अनन्त काल से रास्ता रोके पड़ा हुआ था। नेपोलियन ने दृढ़तापूर्वक कहा तुम्हें मेरे मार्ग में से हटना पड़ेगा, बेचारा एल्प आखिर जड़ पदार्थ था। चैतन्य तत्व की गर्मी कैसे सह सकता था। उसे हटना पड़ा और नेपोलियन के लिए मार्ग देना पड़ा। जिसके पास अपनी गिरह का पेट भरने लायक अन्न और तन ढकने लायक कपड़ा नहीं है। वह भिक्षुक गाँधी, चालीस करोड़ आदमियों के दिलों पर शासन करता है। दुनिया की मानवता ने अपने हृदय पुष्य उसके चरणों के नीचे बिछा दिये हैं। क्योंकि गाँधी ने जाना है कि आदमी उस सत्य महासागर का ही बिन्दु है।

यहाँ भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं है। मैं जानता हूँ कि आप यह पूछने वाले है कि क्यों साहब क्या यह सब लोग मैस्मरेजम करने वाले थे? इन्होंने यह सब काम मैस्मरेजम से कर डाले थे? इसके दोनों उत्तर हो सकते हैं। आप समझते हैं कि मैस्मरेजम वह तमाशा है जिसे बाजीगर गली कूचों में दिखाकर भीख माँगते हैं तो मैं कहूँगा कि हरगिज इससे उन महापुरुषों ने कोई मदद नहीं ली यदि आप समझते है कि आत्मशक्ति के विकास का नाम ही इन दिनों मैस्मरेजम चल पड़ा हैं और इन पंक्तियों का लेखक उसे इसी अर्थ में प्रयोग कर रहा है तो मैं कहूँगा हाँ जनाब हर एक महापुरुष ने इसी मैस्मरेजम को सीखा है इसी के सहारे हर कार्य में सफलता पाई है। जिसने आत्मतत्व को बढ़ाया है उसने अपनी बिखरी हुई ताकतों को इकठ्ठा किया है। आप भी अपना विकास करना चाहते हैं तो आप को भी यही करना पड़ेगा। सौभाग्य से कभी-कभी तीतर के हाथ बटेर पड़ जाती है। आलसियों को कभी गढ़ा खजाना मिल जाता है पर यह अपवाद है। अमुक चरवाहे को सोने का कंठा जंगल में पड़ा मिल गया था उससे यह नहीं कहा जा सकता कि हाँ एक पशु चराने वाले को जंगल में पड़ा सोने का कंठा मिलता है। हाँ यह बात निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि जो दिन भर मजदूरी करेगा उसे अन्न वस्त्र के लिए सुविधाएं मिलेंगी जो बोयेगा वह काटेगा। अपवाद इसमें भी हो सकते हैं किन्तु अपवादों के कारण कोई सुदृढ़ सिद्धान्त कट नहीं सकता।

आप मैस्मरेजम तत्व का अभ्यास करके अपनी आत्मशक्ति बढ़ा सकते हैं। इस बढ़ी हुई शक्ति के कितने लाभ हो सकते हैं यह गिनाया नहीं जा सकता। बिजली बचाने वाला जारेदार चालू यंत्र आपके पास हो तो उससे क्या क्या काम ले सकते हैं यह गिन लेना कठिन है। इतना ही कहा जा सकता है कि जितने प्रकार की मशीनें आपके पास हों उन सब को चलाया जा सकता है। इच्छानुसार उसे चाहे किसी भी काम में प्रयोग कर सकते है। यह एक आध्यात्मिक धन है। रुपया पैसा से हम जिस प्रकार अच्छी बुरी भौतिक चीजें मोल ले सकते हैं उसी प्रकार इस आत्मिक धन का भी उपयोग हो सकता है। शरीर को बलवान किया जा सकता है मन को सशक्त बनाया जा सकता है मस्तिष्क की अनेक गुप्त प्रकार की शक्तियों को बढ़ाया जा सकता है अपनी कार्य क्षमता बढ़ाई जा सकती है, गहन आत्म तत्व की खोज की जा सकती है, ईश्वर दर्शन किया जा सकता है। अनेक प्रकार की अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। आत्म तेज और मनोबल इतना बढ़ाया जा सकता है जिसके बल पर सब प्रकार की सफलताएं स्वयमेव आकर्षित हो आवें। और तमाशा? तमाशा भी दिखाया जा सकता है। बाजीगरी भी की सकती है पर जो लोग इस चन्दन को चमड़ा काटने की सिल बनाने के लिए प्राप्त करना चाहते हों उनसे मैं नम्रतापूर्वक कहूँगा, महोदय, तमाशे एक से एक बढ़िया बनाये जा रहे हैं आप मनोरंजन के लिए कोई दूसरा साधन चुन लीजिए। इस सती साध्वी माता के समान पूजनीय शक्ति को वेश्या बना कर बाजार में नचाते मत ले जाइये।


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