युग मनीषा का आह्वान!

December 1991

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इस अंक में प्रस्तुत है 24 जून 1980 को प्रबुद्ध वर्ग के मध्य शाँतिकुँज हरिद्वार में दिया गया प्रवचन। पृष्ठ संख्या सीमित होने के कारण मूल पाठ को थोड़ा संपादित कर निचोड़ा गया है। शब्द मूलतः वही हैं जो वक्तव्य में हैं, भाव भी वही रखे गये हैं, मात्र पुनरुक्तियाँ हटायी गयी हैं।

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गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ बोलिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य,

धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!

देवियो, भाइयो-

अब्राहम लिंकन ने पार्लियामेण्ट की मेज पर एक बौनी सी महिला को खड़ा कर परिचय देते हुए कहा “यह महिला वो है, जिसने अपने संकल्प को पूरा करके दिखा दिया।” अब्राहम लिंकन ने अपनी आत्मा व अपने भगवान के सामने कसम खाई थी कि हम अमेरिका पर से एक कलंक हटाकर रहेंगे। कौन सा कलंक? कलंक यह कि अमेरिका के दक्षिणी भाग में नीग्रो-कालों को गुलाम बनाकर उनसे जानवर के तरीके से काम लिया जाता था। कानून मात्र गोरों की हिमायत करता था। ऐसी स्थिति में एक महिला लिंकन की कसम को पूरा करने उठ खड़ी हुई। उसका नाम था हैरियट्स्टो-। लिंकन ने पार्लियामेण्ट के मेम्बरों से कहा “ यही वह महिला है जिसकी लिखी किताब ने अमेरिका में तहलका मचा दिया। लाखों आदमी फूट फूटकर रोये हैं लोगों ने कह दिया जो लोग ऐसे कानून को चलाते हैं, इस तरह जुर्म करते हैं, हम उनसे लड़ेंगे।

आप क्या समझते हैं नीग्रो व नीग्रो की लड़ाई की बात लिंकन कर रहे थे। नहीं! नीग्रोज के पास न हथियार थे, न ताकत। उनके पास तो आँसू ही आँसू थे। वे तो रो भर सकते थे। लड़ाई गोरों व गोरों में हुई। उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका में ग्रह युद्ध हो गया। इतना खौफनाक युद्ध हुआ कि व्यापक संहार हुआ पर इसका परिणाम यह हुआ कि कालों को उनके अधिकार मिल गये। इतना बड़ा काम इतना बड़ा विस्फोट करा देने वाली महिला थी हैरियट्स्टो जिसने किताब लिखी थी “अंकल टाम्स कैबिन” “टाम काका की कुटिया।”

एक छोटी सी महिला के अंतःकरण की पुकार से लिखी गयी इस किताब ने जन-जन के मर्म को, अंतःकरण को छुआ और अमेरिका ही नहीं, सारे विश्व में तहलका मचा दिया। हर आदमी ने उसे पढ़ा और कहा कि जहाँ ऐसे जुल्म होते हैं, इंसान इंसान पर अत्याचार करता है, हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और उखाड़ फेंकेंगे। लिंकन ने कसम तो खाई थी पर वे अकेले कुछ कर नहीं सकते थे। क्योंकि उनके पास गोरों का शासन तंत्र था। कालों का कोई हिमायती नहीं था। उनका हुकुम किन पर चलता? पर उस महिला की लिखी उस किताब ने हर नागरिक के दिल में ऐसी आग पैदा कर दी, ऐसी टीस पैदा कर दी कि आदमी कानून को अपने हाथ में लेकर दूसरे आदमियों को ठीक करने पर आमादा हो गया। गृहयुद्ध तब समाप्त हुआ जब वह कानून खत्म हो गया और सबको समान अधिकार दिला दिये गये।

क्या किताब ने यह क्राँति की? अरे “किताब” नहीं “दर्शन”। किताब की बाबत नहीं कहता मैं आपसे। मैं कहता हूँ- दर्शन। दर्शन अलग चीज है। विचार बेहूदगी का नाम है जो अखबारों में, नॉवेलों में, किताबों में छपता रहता है। कभी खाने कमाने का, कभी खेती बाड़ी का, कभी बदला लेने का, यही विचार मन में छाया रहता है और दर्शन वह आदमी के अंतरंग से ताल्लुक रखता है। जो सारे समाज को एक दिशा में कहीं घसीट ले जाने का काम करता है, उसको दर्शन कहते हैं। आदमी की जिंदगी में, उसकी संस्कृति में सबसे मूल्यवान चीज का नाम हैं -दर्शन। हिंदुस्तान की तवारिख में जो विशेषता है आदमी के भीतर का भगवान क्या जिंदा है, यह किसने पैदा किया? दर्शन ने। इतने ऋषि इतने महामानव, इतने अवतार किसने पैदा कर दिये? यह है दर्शन जो आदमी को हिला देता है। हमारी दौलत नहीं, दर्शन शानदार रहा है। हमारी आबोहवा नहीं, शिक्षा नहीं, दर्शन बड़ा शानदार रहा है। इसी ने आदमी को ऐसा शानदार बना दिया कि मुल्क देवताओं का देश कहलाया जाने लगा। दूसरी उपमा स्वर्ग की दी जाने लगी। स्वर्ग कहाँ रहेगा? जहाँ देवता रहेंगे? देवता ही स्वर्ग पैदा करते हैं, इमर्सन ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं और प्रत्येक किताब के पहले पन्ने पर लिखा है “मुझे नरक में भेज दो मैं वही स्वर्ग बनाकर दिखा दूँगा।” यह है दर्शन। आज की स्थिति में हम क्या कहें मित्रों। हम सब के दिमाग पर एक घिनौना तरीका, छोटा वाला तरीका नामाकूल तरीका इतना वाहियात की सारी जिंदगी को हमने- हीरे मोती जैसी जिंदगी को हमने खत्म कर डाला। आदमी की ताकत विचारों की ताकत को हमने तहस नहस कर दिया। हमें कोढ़ी बना दिया। कसूर किसका है? सिर्फ एक ही कमी है-वह है आदमी का दर्शन। वह कमजोर हो गया है।

आज आदमी की समस्या सिर्फ एक है। उसका नाम है दर्शन की भ्रष्टता। उसके पास चीजों की कमी नहीं है। आदमी के पास जरूरत से ज्यादा चीजें हैं पर मुझे यह लगता है कि आदमी इनको खा भी सकेगा कि नहीं, हजम भी कर सकेगा कि नहीं। आदमी का दर्शन घिनौना होने की वजह से इतनी ज्यादा चीजें होते हुए भी मालूम पड़ता हैं कि बहुत कम है। गरीबी उसके पर हावी हो गयी है। परिस्थितियाँ, दरिद्रता, मुसीबतें उसके दर्शन के कारण उस पर हावी हो गई हैं। दर्शन सारे व्यक्तियों का, सारे समाज का, सारे विश्व का भ्रष्ट होता चला गया है। दुष्टों को पकड़ना, रोकना और मारकर ठीक करना चाहिए, मच्छरों को मारना चाहिए पर एक एक मच्छर को मारने से पहले उस गंदगी को निपटाना चाहिए जो मच्छर पैदा करती है हम मच्छर मक्खी मार नहीं सकते। हम समस्याओं को कैसे मार पायेंगे? समस्याएँ आदमी के सड़े हुए दिमाग में पैदा होती है। सड़े हुए दिल में पैदा होती हैं। पैसे वाले बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाते हैं कि हम गृह, उद्योग बढ़ायेंगे नहरें खोदेंगे, बाँध बनायेंगे ये सब ठीक है। आदमी को साक्षर बनायेंगे, हर आदमी को मालदार बनायेंगे। कोई कहता है कि आदमी को पहलवान बनायेंगे पर इतना सब कुछ करने के बाद फिर होगा क्या? जरा विश्लेषण पोस्टमार्टम करके देखिए कि इस सबके बावजूद विचारों की दर्शन की भ्रष्टता यदि बनी रही तो वह करता क्या है? वह खुद जलता है, दूसरों को जलाता है। दियासलाई अपने आप को जलाकर खत्म कर देती है। आज हमारी आपकी जिंदगियाँ दियासलाई के तरीके से जल रही हैं और अनेकों को जला रही हैं।

आपने ब्याह कर लिया। बीबी आई। हाँ तो ठीक है, अब आप क्या करेंगे उसको जला दीजिए। नहीं साहब बीबी तो बहुत अच्छी मालूम पड़ती है। इसीलिए तो कहते हैं कि फुलझड़ी बहुत अच्छी मालूम पड़ती है। तो आप दियासलाई लेकर के खत्म क्यों नहीं करते? हर चीज को आज आदमी जला रहा है। जिंदगी को जला रहा है, समाज को जला रहा है।देश को जला रहा है। बच्चों को जला रहा है। इस सब का मूल कहीं खोजना हो तो एक ही जगह है वह है आदमी के सोचने व ऊँचा उठने वाली शैली, तरीका, विद्या जिसे दर्शन कहते हैं। विचार नहीं। विचार तो अखबारों में गंदी किताबों में रोज छपते रहते हैं। कितना भ्रामक, अज्ञान, फैलाने वाले अखबार रोज निकलते रहते हैं। इनकी बाबत में मैं आप से नहीं कहता। मैं आपसे कहता हूँ - दर्शन की बात। सुकरात दर्शन जिन दिनों पैना होने लगा और विद्यार्थियों को पढ़ाया जाने लगा तो हुकूमत काँप उठी। हुकुम दिया गया कि यह आदमी बागी है। इस आदमी को जहर पिला देना चाहिए। डाकू या चोर एक या दो लोगों का नुकसान करते हैं, पर दार्शनिक, वह तो पूरे समाज को हिलाकर रख देता है। दार्शनिक दुनिया को उलट पलट देता है। ईसा संत थे, नहीं दार्शनिक थे। संत तो समाज में ढेर सारे हैं जो एक पाँव पर खड़े रहते हैं, पानी नहीं पीते, दूध नहीं पीते। बाबा जी की बात मैं नहीं कह रहा। ईसा कौन हैं? दार्शनिक थे। उनने अपने समय को बदलने वाला दर्शन दिया था। दर्शन वह, जो आदमी के अंतरंग को छुए, आत्मा को छुए, हृदय को छुए। अंतरंग को छूने वाला दर्शन जब कभी आता है तो गजब करके रख देता है। दुनिया में पहलवान बहुत हुए हैं, विद्वान बहुत सारे हुए हैं, लेखक भी, कवि भी ढेर सारे हुए हैं, मालदार आदमी बहुत हुए हैं पर दार्शनिक जब भी कभी हुए हैं तो मजा आ गया है। गजब हो गया है, समाज हिला दिया गया है।

कुछ हवाले दूँ आपको। रूसो नाम का एक दार्शनिक हुआ है, जिसने सबसे पहले एक विचार दिया, अंतरंग को छूने वाला, आदमी के मस्तिष्क को छूने वाला, समाज की व्यवस्था पर असर डालने वाला। दर्शन दिया रूसो ने जिसे डेमोक्रेसी नाम दिया गया। डेमोक्रेसी के बारे में मजाक उड़ाया गया था। जिन दिनों यह दर्शन प्रस्तुत किया गया कहा गया है कि यह पागलों की बातें हैं। हुकूमत तो राजा की होती है। रिआया के ऊपर। रिआया रिआया के ऊपर हुकूमत करेगी, यह तो पागलों की बातें हैं। लेकिन पागलों की बात आप देखते हैं? सारी दुनिया में घुमा फिरा के डेमोक्रेसी आ गयी है। यह विचार एक दार्शनिक ने दिया था और उसने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया। और हवाले दूँ आपको। एक नाम है नीत्से। उसका वह हिस्सा तो नहीं बताऊँगा जिसमें उसने यह कहा था कि खुदा खत्म हो गया, खुदा को हमने जमीन में गाढ़ दिया पर यह वह आदमी था जिसने कहा था कि आदमी को सुपरमैन बनना चाहिए। आदमी को गई गुजरी स्थिति में नहीं रहना चाहिए। अपने आपको विकसित करना चाहिए और दूसरों को ऊँचा उठाने की अपनी सामर्थ्य एकत्रित करनी चाहिए। यह किसकी फिलॉसफी है। नीत्से की। आपको इतिहास मैं इस लिए बता रहा हूँ कि आप समझें कि दर्शन कितनी जबरदस्त चीज है। दर्शन उस चीज का नाम है जो कौमों को बदलकर रख देता है। बिरादरियों को, मुल्कों को, परिस्थितियों को बदल देता है। दर्शन बड़े शानदार होते हैं। वे भले हो अथवा बुरे, कितनी ताकत होती है उनमें यह आपको जानना चाहिए। मैं आपको अपने जीवन की एक घटना सुनाता हूँ दर्शन की बाबत।

जब मैं शिलाँग डिब्रूगढ़ की तरफ अपने मिशन के लिए दौरा कर रहा था तो मेरी इच्छा हुई कि नागालैण्ड जाऊँ। नागा कैसे होते हैं? जरा देख कर आऊँ। हमारे कार्यकर्ता साथ चले, बोले हम दुभाषियों का काम करेंगे। उनकी जीप में बैठकर नागालैण्ड चला गया। उन लोगों के बीच जो रेलगाड़ी पलट देते थे, तीर कमानों से जिनने सेना की नाक में दम कर रखा था। नागाओं के इस गाँव में जाकर एक चबूतरे पर मेरे मित्रों ने बिठा दिया व नागाओं से उनकी भाषा में कहा कि कोई मनोकामना हो तो इनसे कहिए। कोई पचास सौ नागा वहाँ बैठे थे, एक ने दूसरे से कहा, दूसरे ने तीसरे से कहा। सब ने आपस में पूछताछ कर ली और कहा हमारा तो कोई दुख नहीं, रोटी मिल जाती है। सोने के लिए फूँस के मकान हैं, पहनने को लोमड़ी की खाल हैं, मौज करते हैं। हमें दुख काहे का। एक दूसरे की ओर देखा तो एक बुड्ढा नागा उठा व दुभाषियों से बोला कि इन स्वामी जी से पूछिये की इनको कोई दुख तो नहीं है। हमसे बोले, ‘हमें तो कोई परेशानी नहीं है किन्तु आप भूखे हो तो हमारे यहाँ चावल है। भूखे नहीं जायें हमारे दरवाजे से। पहनने को कपड़े न हो तो खाल ले जाये हमारा अपना कोई कष्ट नहीं। हम तो प्रसन्न हैं। स्वामी जी कोई दुख हो तो हम दूर कर दें। मैं समझ गया। आदमी का दर्शन यह है। नागाओं ने नागालैण्ड बना लिया। क्या वजह हो सकती है? यह उस बिरादरी का दर्शन है। जो कुछ हमारे पास है, उससे खुशी से जिंदगी जियेंगे। उसे देकर के खायेंगे। मस्ती से जीवन जियेंगे। यह दर्शन है। कौम, बिरादरियाँ, समय और जातियाँ हमेशा दर्शन के आधार पर उठी हैं। यह दर्शन पैदा करना मनीषा का काम है। दर्शन को बनाने वाली माँस का नाम है मनीषा। मनीषा कैसी होती है? मनीषा ऐसी होती है जैसी कि बुद्ध के भीतर से पैदा हुई थी।

बुद्ध ने जमाने को देखा था। बड़ा वाहियात जमाना बड़ा, फूहड़ जमाना। माँस, मदिरा, मद्य, मुद्रा, मैथुन ये पाँच चीजें उस जीवन का आधार बनी हुई थीं। यही उस समय का धर्म था, जो आज के समय का वाममार्ग है। वही उस समय का दर्शन था। ऐसी परिस्थितियों में एक बुद्ध नाम का आदमी उठ खड़ा हुआ। बुद्ध किसे कहते है? बुद्ध विचारशीलता, भावनाशीलता का प्रतीक था। लोगों को दिशा देने वाले को बुद्ध कहते हैं? कथावाचक धर्मोपदेशक उस जमाने के भी थे लेकिन मनीषी के रूप में केवल बुद्ध सामने आये। उनने लोगों से कहा कि बुद्धं शरणं गच्छामि- बुद्धि की, विवेक की, समझदारी की पकड़ में आ जाओ क्यों और कैसे के सवाल पूछों। उनने लोगों के समक्ष कसौटी रखी कि यदि आज के विचार, रीति रिवाज, क्रियाकलाप, गतिविधियाँ सही साबित हों तो स्वीकार कीजिए, नहीं तो मना कीजिए। लोगों ने इंकार करना शुरू किया- यह नहीं हो सकता। हमारे बाप-दादा किया करते थे तो हम क्या करें? इंकारी का नशा इस कदर चढ़ता चला गया कि सारी बातें वाहियात ठहराई जाने लगीं। यज्ञों के नाम पर जानवर काटे जाते थे अश्वमेध के नाम पर घोड़े मार कर हवन होता था। जो भी अनर्थ होता था इंकार किया जाने लगा। बुद्ध ने कहा कि यदि भगवान कहते हैं तो ऐसे भगवान को ही नहीं मानना चाहिए। उनने वेदों को मानने से इंकार कर दिया जिनका अर्थ निकाला जाने लगा था और कहा बुद्धं शरणं गच्छामि। बुद्ध को क्या कहेंगे? दार्शनिक मनीषी। बाबाजी नहीं मनीषी।

मनीषी इन्सान की समस्याओं का समाधान देते हैं, व्यक्ति तैयार करते हैं और समाज बनाते हैं। अरस्तू को तैयार करने वाले का नाम सुकरात है और शिवाजी को तैयार करने वाले का नाम समर्थ गुरु रामदास है। चन्द्रगुप्त को तैयार करने वाले का नाम चाणक्य है। और विवेकानन्द को तैयार करने वाले का नाम रामकृष्ण परमहंस है। ये कौन हैं? अरे भाई ये मनीषी हैं। मनीषी विचार नहीं दर्शन देते हैं। दर्शन जी कर देखते हैं। और अनेकों का जीवन बना देते हैं। आप कहेंगे दर्शन तो बद्रीनाथ का, केदारनाथ का, सोमनाथ का किया जाता है। किराया खर्च करके जो दर्शन आप करते हैं, वह दर्शन नहीं, दर्शन वह है जो जमीला ने किया। जमीला ने सारी जिंदगी भर के लिए पैसे जमा किये थे और कहती थी काबा जाऊँगी और दर्शन करूंगी। जाने के वक्त पड़ गया अकाल। पानी न पड़ने से, अनाज न होने से लोग भूखों मरने लगे। जमीला ने कहा मैं काबा हज करने जाने वाली थी अब हज नहीं जाऊँगी। बच्चे भूखे मर रहे हैं। इनके खाने का, दूध का, इंतजाम किया जाय ताकि वे जिंदा रह सकें और उसने काबा जाने से इंकार कर दिया। मेरे पास कुछ है ही नहीं मैं कैसे जाऊँगी। इसे कहते हैं दर्शन। ट्राफिलासॉफी। देखने के अर्थ में नहीं फिलॉसफी के अर्थ में। बाद में खुदा बंद करीम के यहाँ मीटिंग हुई तो यह तय किया गया कि हज किसका कबूल किया जाय। सारे फरिश्तों की मीटिंग में तय हुआ कि सिर्फ एक आदमी ने इस साल हज खुलकर किया। खुदाबंद ने उसका नाम बताया- जमीला। फरिश्तों ने अपने रजिस्टर दिखाये और कहा कि वह तो गयी ही नहीं। खुदाबंद ने समझाया। देखने के लिए न गयी तो न सही लेकिन उसने काबा के ईमान को, प्रेरणा को समझा और हज करके जो अंतरंग बिठाया जाना चाहिए था, वह यहीं बैठ कर कर लिया। शेष सब झक मारते रहे। इसलिए सबका नामंजूर। जमीला का कबूल।

मित्रो! मैं कह रहा था दर्शन की बात। दर्शन जिसको जन्म देती है मनीषा। मनीषा को हम ऋतम्भरा प्रज्ञा कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में हम इसे गायत्री कह सकते है। श्रेष्ठ चिंतन करने वालों के समूह का नाम है मनीषा। इस मनीषा का हम आह्वान करते हैं उनकी पूजा करते है। माँ क्या करती है? माँ समय समय पर बच्चों के लिए जरूरतों की चीजें बनाकर खिलाती है। हजम कर सके, ऐसी खुराक बनाकर देती है। माँ! मनीषा वह है जो युग की आवश्यकताओं, समय की आवश्यकताओं, इंसान की आवश्यकताओं, को तलाशती रहती है। समझती है वह वैसी ही खुराक दर्शन को देती है, जिसकी जरूरत है। युग की मनीषा ध्यान रखती है। कि आज के समय की जरूरत क्या है। पुराने समय का वह ढोल नहीं बजाती। वह युग को समझती है और परिस्थितियों के अनुरूप युग को ढालने की कोशिश करती है। आस्थाओं से रहित हैवानी के गुलाम इंसान को आदमी बना देती है। उसे ऊँचा उठना सिखाती है, व उनके घरों में स्वर्गीय परिस्थितियाँ पैदा करती है। ऐसी ही मनीषा का मैं आह्वान करता हूँ और कहता हूँ कि आप में से जो भी यह सेवा कर सके, वह स्वयँ को धन्य बना लेगा। आज बुद्धिवाद ही चारों ओर छाया है। “नो गॉड, नो सोल” की बात कहता जमाना दीखता है। ये किसकी बात है? नास्तिकों की, वैज्ञानिकों की, बुद्धिवादियों की। इनने फिजा बिगाड़ी है? नहीं इनसे ज्यादा उन धार्मिकों ने, पण्डितों ने, बाबाजियों ने बिगाड़ी है, जो उपदेश तो धर्म का देते हैं पर जीवन क्रम में उनके धर्म कतई राई रत्ती भर नहीं है। पुजारी की खुराफात देवी को सुना दें तो देवी शर्मिन्दा हो जाय। धर्म व विज्ञान को सब कुछ ठीक करना होगा। आप को युग की जरूरतें पूरी करनी होगी। आदमी के भीतर आस्थाएँ कमजोर हो गयी हैं, उन्हें ठीक करना चाहिए। आज की भाषा में नीति की, धर्म की, सदाचार की, आस्था की बात कीजिए व सबका मार्गदर्शन कीजिए। बताइये सबको की आदर्शों ने सदैव जीवन में उतरने के बाद फायदा ही पहुँचाया है नुकसान किसी का नहीं किया।

अब्राहमलिंकन ने बीच मेज पर खड़ाकर के कहा था यह स्टो है। इसने अमेरिका के माथे पर लगा कलंक हटा दिया। आप क्या करना चाहते हैं? हम भारतीय संस्कृति को मेज पर खड़ा करके यह कहना चाहते हैं कि यह एक संस्कृति है जिसने दुनिया का कायाकल्प कर दिया। आज भी यह पूरी तरह से मार्गदर्शन देने में सक्षम है। मनीषी इसने ही पैदा किये हैं। यदि मनीषी जाग जायें तो देश समाज, संस्कृति सारे विश्व का कल्याण होगा। भगवान करे मनीषी जगे, जागे-जगायें व जमाना बदलें। हमारा यह संकल्प है व हम इसे करेंगे। आपको जुड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं।

हमारी बात समाप्त।


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