हम प्राण चेतना से परिपूर्ण हों!

December 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

हमारी जीव चेतना में प्राण की एक सीमित मात्रा ही भरी हुई है जिसके द्वारा जीवन का दैनिक व्यापार चलता है। भौतिक सफलताओं एवं आत्मिक विभूतियों की अतिरिक्त उपलब्धि के लिए हमें आँतरिक प्राण संपदा की मात्रा क्रमशः बढ़ानी पड़ती है और इसके लिए विराट ब्रह्माण्ड में विपुल परिमाण में संव्याप्त प्राणशक्ति से संबंध जोड़ना पड़ता है।

ब्रह्माण्ड एक ऐसा विराट सागर है जिसमें प्राणतत्व हिलोरे ले रहा है। पिण्ड सत्ता जीव सत्ता में समाहित प्राणतत्व को आत्माग्नि कहा जा सकता है और ब्रह्माण्ड में संव्याप्त प्राण को ब्रह्माग्नि। आत्माग्नि लघु है तो ब्रह्माग्नि विभु। ठीक इसी प्रकार आत्माग्नि में ब्रह्माग्नि का अनुदान सतत् पहुँचते रहना आवश्यक है। जिस साधना प्रक्रिया द्वारा इस प्रयोजन की पूर्ति होती है उसे प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम अर्थात् प्राण का आयाम जोड़ने की, प्राणतत्व संवर्धन की एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें जीवात्मा का क्षुद्र प्राण-विराट चेतना के महाप्राण से जुड़कर उसी के समतुल्य बन जाय। विराट चेतना से जुड़ने और पूर्णता प्राप्त करने का यही राजमार्ग है।

यों तो “डीप ब्रीदिंग“ अर्थात् गहरी साँस लेने को आरोग्यवर्धक बताया गया है। इससे फेफड़ों को अधिक ऑक्सीजन मिलती है जो स्वास्थ्य संतुलन एवं संवर्धन में सहायक सिद्ध होती है, पर अध्यात्म विज्ञान में जिस प्राणायाम की चर्चा की जाती है, वह शरीर शास्त्रियों की प्रचलित डीप ब्रीदिंग से भिन्न होती हैं। गहरी साँस से अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलने और स्वास्थ्य संवर्धन का मात्र शारीरिक स्थूल प्रायोजन पूरा होता है, पर यौगिक प्राणायामों से ब्रह्माण्ड व्यापी प्राण तत्व का असाधारण लाभ भी मिलता है।

वस्तुतः प्राणायाम में साँस की गति में असामान्य व्यतिक्रम निर्धारित है। इसमें घर्षण का असामान्य क्रम उत्पन्न होता है और उसकी प्रक्रिया जीवन निर्वाह की आवश्यकता पूरी करने से आगे बढ़कर शरीर में विशेष हलचलें उत्पन्न करती है। दाँये-बाँये नासिका स्वरों से चलने वाले विशेष प्रकार के मेरुदण्ड के इड़ा, पिंगला विद्युत प्रवाह को उत्तेजित करती है, वे असामान्य हलचलें ऐसे प्रसुप्त संस्थानों को जगाती हैं जो सामान्यता निर्वाह क्रम में तो आवश्यक नहीं होते पर जाग्रत होने पर मनुष्य में विशेष स्तर की अतिरिक्त मात्रा में विशेष क्षमता प्रदान करते हैं। प्राणायाम साँस की गति को तीव्र करना नहीं, उसे तालबद्ध और क्रमबद्ध करना है। इस ताल-लय और क्रम के हेर-फेर के आधार पर ही अनेक प्रकार के प्राणायाम बने हैं और उनके विविध प्रयोजनों के लिए विविध प्रकार के उपयोग होते हैं।

प्राणायाम का विधान सरल भी है और कठिन भी। सरल प्राणायाम यह है कि गहरी साँस ली जाय और पूरे फेफड़े खाली करके उसे बाहर निकाला जाय। साँस खींचते समय विश्व प्राण के अपने भीतर प्रवेश करने और स्थिर होने की भावना की जाय और निकालते समय भावना की जाय कि दुर्बलता, रुग्णता एवं अनैतिकता के सभी तत्व निकल कर बाहर जा रहे हैं और वे फिर कभी लौटने वाले नहीं हैं। यह एक प्राणायाम हुआ, यह न्यूनतम तीन बार किया जाय और फिर प्रति सप्ताह उसे एक-एक की संख्या में बढ़ाते चला जाय।

स्मरण रहे मात्र गहरी साँस लेना-छोड़ना ही प्राणायाम नहीं है। उसके साथ संकल्प, भावना और दृढ़ विश्वास भी जुड़ा रहना चाहिए। इस प्रकार अपने में प्राण तत्व की मात्रा निरन्तर बढ़ाई जाय। उसे निखिल ब्रह्माण्ड में संव्याप्त अनुभव किया जाय और खींचते समय तदनुरूप भावना की जाय। उसे इसी आकर्षण से साँस में प्राण तत्व की अधिक मात्रा अंतरिक्ष से खींचती और घुलती चली आती है। इस प्राणायाम में श्वास-प्रश्वास क्रम की विशेष प्रक्रिया और साधक की संकल्प शक्ति का समावेश होने से वह सामान्य साँस लेना न रहकर विशिष्ट ऊर्जा की उपलब्धि का विशेष आधार बन जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा प्राणतत्व का विधिवत् आकर्षण और अवधारण किया जा सके तो ओजस तत्व उभर कर ऊपर आता है और साधक को मनस्वी, तेजस्वी एवं ओजस्वी बनने का अवसर मिलता है। भौतिक सिद्धियों एवं आत्मिक क्षेत्र की ऋद्धियों के उन्नयन का आधार प्राण प्रखरता का संपादन ही है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118