बंधन मुक्ति की ओर (Kahani)

December 1991

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नगर में प्रतिष्ठलब्ध व्यक्ति मंदिर गया और मूर्ति के समक्ष नत मस्तक हो कर बुदबुदाने लगा। “क्षमा करे भगवान ! मैं बड़ा कुटिल हूँ, अधम हूँ, अपराधी हूँ। मैंने जीवन में अब तक पाप ही पाप किये हैं।” बाजू में खड़े व्यक्ति के कान में शब्द पड़े। उसने आँखें खोली देखा अरे यह तो अमुक व्यक्ति है। इसकी शराफत, सादगी, सज्जनता की बड़ी धाक है। लोग इसे अव्वल दर्जे का ईमानदार, चरित्रवान समझ बैठे हैं यह तो अपनी असलियत मंदिर में कुछ और ही बखान रहा है। सोचा चलें चलकर नगर वासियों को अभी बता दें। प्रतिष्ठित व्यक्ति ने देखा बाजू वाले व्यक्ति ने सब कुछ सुन लिया। उसने रोककर कहा खबरदार तुमने तीसरे को यह शब्द बताये। यह मेरी व्यक्तिगत बातें हैं जो केवल मैं और भगवान ही जानते हैं। अन्यथा मेरी प्रतिष्ठ धूल में मिल जायेगी व्यक्ति सकपकाया उसने सोचा शायद इस लिए व्यक्ति का उत्कर्ष नहीं हो पाता कि वह दिखाई कुछ और देता है और होता ठीक उसके विपरीत है। प्रायश्चित पूरा तभी होता है जब लिए गये संकल्प जीवन में भी उतारे जाते हैं।

करने का सौभाग्य गायत्री माता द्वारा ही मानव को प्राप्त होता है।

ब्रह्म की इच्छा, शक्ति एवं क्रिया गायत्री है। उसी से उत्पत्ति, विकास एवं अवसान का आयोजन होता है। सुन्दरता, मधुरता क्रीड़ा, सम्पत्ति, कीर्ति आशा, प्रसन्नता, करुणा, मैत्री आदि रूप में यह महाशक्ति ही जीवन क्षेत्र को आनन्दित और तरंगित करती रहती है। इस विश्वनारी की, सर्वव्यापी महाशक्ति गायत्री की, महा माता की आराधना करके हम अधिकाधिक आनन्द की ओर, बंधन मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।


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