न पैरों तले वाली जमीन कम है न सिर पर छाया हुआ आकाश छोटा है, छोटा तो केवल मस्तिष्क है, जो स्वार्थों के दायरे में सोचता है। यदि वह हृदय के आधीन हो सके तो किसी को किसी वस्तु की कमी नहीं।
विश्व उद्यान को सुरम्य बनाने के लिए परमार्थ मार्ग अपनाना, यही एक श्रेयस्कर निर्णय है। कब क्या करना चाहिए, इसके लिए अंतरात्मा का प्रकाश मार्ग दर्शन करने के लिए हर समय मौजूद है। सेवा का द्वार सर्वत्र खुला हुआ है।पुण्य परमार्थ की पुकार दशों दिशाओं से है। भूल भुलैया का बहकावा एक ही है कि लिप्सा की मृगतृष्णा में भटका जाय और संपन्नता के अहंता के दिवा स्वप्न देखे जायं। अपने को इस ‘स्वर्ण परी’ के प्रलोभन से बचाया जा सके तो वह मार्ग खुला हुआ है। जिसमें आगे बढ़ने और ऊँचा उठने का उभय पक्षीय श्रेय सामने खड़ा है। इतना निश्चय कर लेने के उपरान्त सामयिक परिस्थितियाँ स्वतः मार्गदर्शन करती चलती हैं। लक्ष्य निश्चित रहना चाहिए “विश्व उद्यान को सुरम्य बनाने के लिए प्राणपण से प्रयत्न करना।”