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December 1991

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कई बार पुराने खण्डहर गिराने और पुराने कपड़े बदलने पड़ते हैं, यही बात प्रचलनों के संबंध में भी है। कई बार नये विवेकपूर्ण प्रतिपादन भी इतने सुन्दर होते हैं जैसे ओस बिन्दुओं में शोभायमान नवोदित कमल पुष्प।

धिक्कारेगी, कोसेगी और लाँछित करेगी कि उन्होंने क्षुद्रता को बंदर के मरे बच्चे की तरह अपनाकर महानता को पहचाना नहीं और संकीर्ण स्वार्थपरता की पूर्ति के जाल जंजाल में उलझकर वासना, तृष्णा और अहंता की पूर्ति को ही तुष्टि, तृप्ति एवं शाँति की संज्ञा देते रहे हैं।

यह संधिकाल भी मनुष्य जाति के लिए सोने का नहीं बल्कि जागरण गीत गाने का है। जब मुर्गे जैसे सामान्य जीव, रात रानी जैसी वनस्पति ऐसे अवसरों को पहचानकर अपने सामान्य क्रिया कलापों में हेर फेर कर सकते हैं तो कोई कारण नहीं कि मनुष्य इन परिस्थितियों को न समझ पायें। भले ही वह व्यस्तता की दुहाई देकर दूसरों की आँखें में धूल झोंकने का प्रयत्न करें किन्तु यह सुविदित तथ्य है कि ऐसे व्यक्ति सदा घाटे में ही रहते हैं और श्रेय सम्मान से वंचित बने रहते हैं जिसे सहजता से उपलब्ध किया जा सकता है। अच्छा हो आड़े समय की महत्ता को समझें और ऐसा कुछ कर दिखायें जिसे अनुपम अलौकिक एवं अविस्मरणीय कहा जा सके।


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