ईश्वरी आदेश की उपेक्षा न करें।

July 1966

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अन्तःकरण मनुष्य का सब से सच्चा मित्र, निःस्वार्थ पथ-दर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है। पग-पग पर मनुष्य को सजग एवं सचेत बनाता हुआ सही मार्ग पर ही चलाने का प्रयत्न किया करता है। अपने अन्तःकरण पर विश्वास कर के चलने वाले व्यक्ति न कभी पथ-भ्रष्ट होते हैं और न किसी आपत्ति में पड़ते हैं। आपत्तियों का आगमन तब ही होता है जब मनुष्य अपने सच्चे शुभ-चिंतक अन्तःकरण पर अविश्वास करता है।

अन्तःकरण पर अविश्वास करने का मतलब है ईश्वर के आदेश पर अविश्वास करना। ईश्वर के आदेश पर अविश्वास करने वाला धृष्ट उसकी सृष्टि, इस संसार और अपर संसारों में यदि सुख की आशा करता है तो वह अपने समय का सब से बड़ा मूर्ख है। जब साधारण शासक के आदेश की अवहेलना करने वाला दण्ड का अधिकारी बने बिना नहीं रह सकता तब शासकों के भी शासक उस परमात्मा के आदेशों की अवहेलना किस प्रकार अदण्डनीय हो सकती है।

—स्वामी विवेकानन्द

—स्वामी विवेकानन्द


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