सन् 1757 की बात है—अंग्रेज बंगाल पर अपना कब्जा करने का प्रयत्न कर रहे थे। किन्तु नवाब सिराजुद्दौला की नीतिमयी वीरता से उनकी दाल न गलती थी। बार-बार मुँह की खाने पर अंग्रेजों ने कूटनीति से काम लिया। उन्होंने सिराजुद्दौला के सेनापति मीरजाफर पर डोरे डालने शुरू किये। उन्हें पता लग गया कि मीरजाफर एक कुशल सेनापति होते हुये भी बड़ा लालची और कमजर्फ आदमी है। अंग्रेजों ने उसका लाभ उठाया और उसे बंगाल का नवाब बना देने का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। मीरजाफर नवाबी का स्वप्न देखता हुआ बड़ा खुश रहने लगा।
इधर अंग्रेजों ने नई तैयारी करके बंगाल पर फिर आक्रमण किया। सिराजुद्दौला ने सेनापति मीरजाफर को मोर्चे पर भेजा। नवाब के मन बढ़े सिपाही बड़ी वीरता से लड़े किन्तु गद्दार मीरजाफर ने उन्हें हतोत्साहित करके अस्त-व्यस्त कर दिया। अंग्रेजों की जीत हो गई जिसके फलस्वरूप बंगाल पर उनका अधिकार हो गया।
मीरजाफर ने जब अपना वचन पूरा करने को कहा—तो अंग्रेज सेनापति ने घृणा से यह कहकर उसे तलवार के घाट उतार दिया—”कि ऐ विश्वास घाती कुत्ते! तू बंगाल का सुलतान होने का स्वप्न देख रहा है। तेरे जैसे गद्दार को दुनिया में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। जब तू अपने मालिक और मुल्क का न हुआ, तो हमारा ही क्या होगा?”