=कोटेशन===========================
स्वस्थ मनुष्य के चित्त के लिए प्रसन्नता वैसी ही प्राकृतिक है जैसी उसके गालों पर लाली। जहाँ कहीं स्वाभाविक स्नानता होती है, वहाँ उसका कारण या दूषित वायु, अस्वास्थ्यकर भोजन, अनुचित रूप से कठिन परिश्रम होता है या भूल से भरी जीवनचर्या।
—रस्किन
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