अपनी गति का सृजन करो
हर मनुष्य एक नदी के समान है जो अपनी ही गति में बहता चला जा रहा है। इन सब नदियों की गति में गति मिलाकर चल सकना असम्भव है और इनके विपरीत बहना भी।
तब क्या किया जाय? बहना तो है ही। हाँ बहना है और अवश्य बहना है। बिना बहे काम भी तो नहीं चल सकता। इसका एक आसान रास्ता यही है कि न तो किसी की गति में गति मिलाई जाये और न किसी की गति के विपरीत अपना बहाव चलाया जाय। सभी नदियों के प्रवाह से अपने अनुरूप गति लेकर एक नई, एक अलग गति का सृजन करना चाहिये, जिससे कोई भी नदी हमें गति का चोर न कह सके और न किसी से संघर्ष हो।
अपनी इसी स्व-निर्मित गति में बहे चलो, बहे चलो और पहुँच जाओगे अपने अभीष्ट स्थान पर!
—जापान के गाँधी, कागावा।