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July 1966

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दुनिया का दुर्भाग्य भी सौभाग्य बन जाता है

मृत्यु का संकट संपन्न होते देखकर परेशान होने वाले शिष्यों से महात्मा ईसा ने कहा—”तुम लोग परेशान क्यों हो रहे हो? आज जब तुम मुझ पर मृत्यु की घटा देखकर इतना परेशान हो रहे हो तो यदि सत्य की प्रतिष्ठा में तुम्हारे प्राणों पर संकट आ पड़ा तो उसे किस प्रकार सहन करोगे?”

वह समय आता है जब लोग धर्म के नाम पर देवदूतों को मार डालते हैं और समझते हैं कि उन्होंने पुण्य किया, परमात्मा की सेवा की। किन्तु दुनिया का यह दुर्भाग्य अन्त में सौभाग्य बन जाता है। क्योंकि वे पिता के संदेशवाहक देवदूत को मारकर ही उसका और उसके वचनों का महत्व समझ पाते हैं।”


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