अपनी सीमा के भीतर रहो
सत्य का कोई एक निश्चित रूप नहीं। देश काल के अनुसार सत्य की मान्यता बदलती रहती है। किन्तु सत्य में निहित जो एक कल्याणकारी तत्व है वह चिरन्तन है, एक है, अपरिवर्तनशील है। जिस बात में भी यह शिव-तत्व निहित होता है वह बात सदा सत्य है। वैसे सत्य का कोई मौलिक रूप नहीं है।
इसी तराजू से यदि तोलकर देखा जाये तो आज बहुत से सत्यों का थोथापन सामने आ जायेगा। फिर किसी एक सत्य पर किसी एक देश का आधिपत्य नहीं है। न कोई जाति विशेष ही किसी सत्य पर अपना इजारा जाहिर कर सकती है।
कोई एक बात एक देश के लिये सत्य और कल्याणकारी हो सकती है और दूसरे के लिये नहीं। पर यह सबके लिये समान रूप से सत्य है कि विश्व शाँति तभी सम्भव है जब प्रत्येक व्यक्ति एवं देश अपनी सीमाओं और अपने साधनों में संतुष्ट रहे।
—महामना मदनमोहन मालवीय