जैसे हम फटे पुराने या जले गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नये कपड़े धारण करते हैं वैसे ही आत्मा पुराने शरीरों को बदलते और नयों को धारण करते रहते हैं। जैसे कपड़ों को उलटफेर हो शरीर पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता वैसे ही शरीरों की उलट पलट का आत्मा पर असर नहीं होता। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो भी वस्तुतः उसका नाश नहीं होता।
मृत्यु कोई ऐसी वस्तु नहीं, जिसके कारण हमें रोने या डरने की आवश्यकता पड़े। शरीर के लिए रोना वृथा है क्योंकि वह निर्जीव पदार्थों का बना हुआ है। मरने के बाद भी वह ज्यों का त्यों पड़ा रहता है। कोई चाहे तो मसालों में लपेट कर मुद्दतों तक अपने पास रखे रह सकता है। पर सभी जानते हैं कि- देह जड़ है। संबंध तो उस आत्मा से होता है जो शरीर छोड़ देने के बाद भी जीवित रहती है। फिर जो जीवित है, मौजूद है, उसके लिए रोने और शोक करने से क्या प्रयोजन?
दो जीवनों को जोड़ने वाली ग्रन्थि को मृत्यु कहते हैं। वह एक वाहन है जिस पर चढ़कर आत्माएं इधर से उधर-उधर से इधर आती जाती रहती हैं। जिन्हें हम प्यार करते हैं वे मृत्यु द्वारा हमसे छीने नहीं जा सकते। वे अदृश्य बन जाते हैं तो भी उनकी सत्ता में कोई अन्तर नहीं आता। जो कल मौजूद था वह आज भी मौजूद है। हम न दूसरों को मरा हुआ मानें न अपनी मृत्यु से डरें, क्योंकि मरना एक विश्राम मात्र है उसे अन्त नहीं कहा जा सकता।
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