बापू की वाणी

March 1948

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हैवान की सभ्यता

यह पागलपन जो दिनों दिन अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाता जा रहा है और फिर उनको पूरा करने के लिए दुनिया के कोने कोने को खून से खूब रंग रहा है, मुझे यह पागलपन ना पसन्द है। अगर यही आज की सभ्यता है तो मैं कहूँगा कि यह इंसान की नहीं हैवान की सभ्यता है।

वह दिन आ रहा है जब कि वे लोग जो आज अपनी आवश्यकताएँ बढ़ाने के लिए पागल हो गये हैं, वे अपना कदम पीछे हटायेंगे और गंभीरता से सोचेंगे-‘यह हमने क्या किया?’ सभ्यताएँ आई हैं और चली गई हैं और बराबर मेरी इच्छा हुई कि मैं पूछूँ ‘हमें क्या मिला?’ पिछले 50 वर्ष के आविष्कार और खोज के बावजूद हमारी नैतिकता में एक अणुमात्र परिवर्तन भी नहीं हुआ।

कर्मयोग का महत्व

भगवान् ने मनुष्य को कर्म करके अपना जीवन बसर करने के लिए बनाया है। जो कर्म नहीं करता और सम्पत्ति का उपभोग करता है वह चोर है। अगर हम अपनी रोटी के लिए मेहनत करें, केवल रोटी के लिए, तो बहुत काफी उत्पादन होगा, बहुत सा समय भी बच जायेगा। तब न रोग होगा न दरिद्रता। मनुष्य काम करेगा, मगर वह काम विनाश का नहीं होगा। वह काम प्रेम का होगा, सृजन का होगा। उस समय न कोई बड़ा होगा, न छोटा, न कोई अमीर होगा, न गरीब, न कोई सवर्ण होगा, न शूद्र सभी उस भगवान् के मजदूर होंगे। सभी उनके चाकर होंगे और उनके प्रेम के लिए मजदूरी करेंगे। कर्मयोग का महत्व तो कहाँ तक कहा जाय। अगर मैं भगवान् बुद्ध से बातें कर सकता तो पूछता कि आपने ध्यान योग के बजाय कर्मयोग का महत्व क्यों नहीं बताया? अगर मैं तुकाराम और ज्ञानदेव से मिलूँ तो भी उनसे यही सवाल पूछूँ ?

व्यक्तित्व और मानवता

जब मैं रूस की ओर देखता हूँ, जहाँ मशीन की सभ्यता ने नया रूप ले लिया है तो मेरा मन नहीं भरता। बाइबिल के शब्दों में-“क्या लाभ हुआ अगर किसी आदमी ने सारी दुनिया जीत ली मगर अपनी आत्मा को हार बैठा।” इससे क्या फायदा कि आदमी ने अपना व्यक्तित्व और अपनी आदमीयत खो दी और महज मशीन का पुर्जा बन गया। मैं चाहता हूँ कि हर आदमी पूर्णतः विकसित हो। पशु में आत्मशक्ति निद्रित रहती है और वह शरीर बल के अलावा कोई बल नहीं जानता मनुष्य का सम्मान अधिक ऊंचे नियम का - आत्मा की शक्ति का - अनुसरण करने का तकाजा करता है।

आत्म विश्वास मेरा सहारा

यह तो वास्तव में विश्वास है जो हमें तूफानों के पार ले जाता है। यह विश्वास है जिसके सहारे हम समुद्रों को लाँघ सकते हैं और पहाड़ों को उखाड़ सकते हैं। यह विश्वास अपने हृदय में रहने वाले भगवान् की चेतना के अलावा और कुछ नहीं है। जिसमें यह विश्वास है, उसे फिर कुछ नहीं चाहिए। बिना विश्वास के यह सारी सृष्टि एक क्षण में नष्ट हो जायेगी। विश्वास कोई नाजुक फूल नहीं जो जरा से तूफानी मौसम में कुम्हला जाय। विश्वास तो अपरिवर्तनशील हिमालय की तरह है। कोई तूफान हिमालय को हिला नहीं सकता। मैं चाहता हूँ कि आप में से हर एक भगवान् में वह अदम्य विश्वास जगा ले।

आशावाद अमोघ शस्त्र

मैं तो अदम्य आशावादी हूँ और मेरी आशाओं का आधार यह है कि मुझे चरम विश्वास है कि अहिंसात्मक शक्तियों का विकास किसी भी सीमा तक हो सकता है और इसीलिए मैंने अपनी आशाएं कभी नहीं खोई। बहुत ही निराशा और अहंकार के क्षणों में भी मेरे मन में आशा का प्रकाश जलता रहा है। मैं स्वयं उस आशा के प्रकाश को बुझाने में असमर्थ हूँ। मेरे अन्दर पराजय की कोई भाषा नहीं है। मैं दुनिया को प्रसन्न करने के लिए ईश्वर से विश्वासघात नहीं कर सकता।

प्रेम की साधना

मैं इसे नम्रता से स्वीकार करता हूँ कि चाहे मैं उतना सफल न होऊँ लेकिन मैं अपने व्यक्तित्व के रेशे-2 को प्रेम की साधना में डुबोना चाहता हूँ। मैं अपने प्रभु का साक्षात्कार करने के लिए व्यग्र हूँ। मेरा प्रभु सत्य स्वरूप है लेकिन अपनी साधना के प्रारंभ में ही मैंने पहचान लिया था कि अगर मुझे जीवन का चरम सत्य पाना है तो मुझे प्रेम हुकूमत के सामने सर झुका देना होगा। हमें अपने गाँव को प्यार करना चाहिए, फिर अपने जिले को प्यार करना चाहिए, फिर देश, और अन्त में विश्व प्रेम में अपने आपको लीन कर देना चाहिए। मेरे पास तो प्रेम के अतिरिक्त किसी पर भी किसी प्रकार का अधिकार नहीं है। प्रेम देता है, कभी कुछ माँगता नहीं, प्रेम सदा दुःख सहता है, कभी दुःख नहीं देता, कभी बदला नहीं लेता। जहाँ प्रेम है, वहीं भगवान् हैं।


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