(स्वामी सत्यभक्त जी)
ज्ञान किस प्रकार बढ़ता है। इसके आठ भेद हैं (1) सुनना (2) पूछना (3) पढ़ना (4) विस्तारण (5) विचारण (6) आत्म निरीक्षण (7) निर्माण (8) उपदेश ग्रहण।
सुनना ज्ञान प्राप्ति का प्रथम द्वार है। व्याख्यान सुनना, शास्त्र सुनना आदि भी तप हैं। जानने की इच्छा से नई नई बातें दूसरों से पूछना भी ज्ञानचर्चा है। इस तप के लिए निष्पक्षता और जिज्ञासा जरूरी है। परीक्षा लेने के लिए पूछना नाम का तप नहीं है। पूछना पढ़ने का एक अंग है सुनना साधारण है पर पूछने का बहुत महत्व है। जिसे पूछना नहीं आया समझ लो कि उसे ज्ञान नहीं मिला। पूछने से पता चलता है कि किसी ने चीज को अच्छी तरह समझा है या नहीं। ज्ञान प्राप्ति के लिए पठन पाठन स्वाध्याय तप के समान हैं।
विस्तारण तप है। कोई बात पढ़कर सुनना लिखना फैलाना आदि विस्तारण के अंतर्गत हैं। महात्माओं के उपदेशों का संग्रह करना भी विस्तारण तप है पर विस्तारण निरर्थक न हो, नाम के पिष्ट पोषण आदि करके कागज काला किया गया हो तो वह तप नहीं हैं।
विचारण, चिन्तन करना, पाये हुए ज्ञान का अनुभव और तर्क द्वारा परीक्षण करना आदि भी तप है। इसके द्वारा ज्ञान अन्तर्मुख होता है। चिंतन द्वारा ज्ञान अपनी चीज बन जाता है। पाये हुए ज्ञान के आधार पर अपने को देखना, निष्पक्षता से अपने गुण दोषों का विचार करना आत्मनिरीक्षण है। आत्मनिरीक्षण के बाद जगहित के लिए ग्रन्थ रचना की जाती है। यह निर्माण तप जगत् को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करना उपदेश है।
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