बापू सो रहे हैं

March 1948

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जगाओ न बापू को नींद आ गई है।

अभी उठके आए हैं बजमें दुआ से। वतन के लिये लौ लगाकर खुदा से।। टपकती है रुहानियत सी फिजा से। चली आती है राम की धुन हवा से।। दुखी आत्मा शान्ति पा गई है। जगाओ0।। 1

नहीं चैन से बैठने देती हलचल। जो हैं आज दिल्ली तो बंगाल में कल।। यह पीरी यह दिन रात की दौड़ पैदल। सदा कौम रखती है बापू को वेकल।। तड़प जिंदगी की सुकूँ पा गई है। जगाओ0।।2

यह घेरे हैं क्यों रोने वालों की टोली। खुदारा न बोलो यह मनहूस बोली।। भला कौन मारेगा बापू को गोली ? कोई बाप के खूँ से खेलेगा होली ? जमीं ऐसी बातों से थर्रा गई है। जगाओ।। 3

सभी को है प्यार उस अजीजे वतन से। फिरंगी ने जेलों में रक्खा जतन से।। वतन पर वह कुरबान है जानो जन से। वतन उसको मारेगा पिस्तौलों गन से ?? अबस मादरे हिन्द शर्मा गई है। जगाओ।।4

मुहब्बत के झण्डे को गाड़ा है उसने। चमन किसके दिल का उजाड़ा है उसने ? गरीबान अपना ही फाड़ा है उसने। किसी का भला क्या बिगाड़ा है उसने।। उसे तो अदा अमन की भा गई है। जगाओ।। 5

अभी उठके खुद वह बिठाएगा सबको। लतीफों से पैहम हँसाएगा सबको।। सियासत के नुक्ते बताएगा सबको। नई रौशनी फिर दिखाएगा सबको।। दिलों पर यह जुलमत सी क्यों छा गई है?ज0।। 6

अभी सिन्ध बाचश्म नम तक रहा है। लिए दिल में पंजाब गम तक रहा है।। अभी वर्धा दम बदम तक रहा है। अभी रास्ता आश्रम तक रहा है।। मुसाफिर को रास्ते में नींद आ गई है। जगाओ

वह सोएगा क्यों ? है जो सबको जगाता। कभी मीठा सपना नहीं उसको भाता।। यह आजाद भारत का है जन्म दाता। उठेगा, न आँसू बहा देशमाता। उदासी यह क्यूँ बाल बिखरा गई है ? जगाओ

वह खून अपना खाता वह खून अपना पीता। वतन ही पै मरता वतन ही से जीता ।। जो इक बात कुरआँ तो इक बात गीता। सितमगर वो हारे ये मजलूम जीता।। जमाने पर मजलूमियत छा गई है। जगाओ।

वह हक के लिये तन के अड़जाने वाला। निशाँ की तरह रन में गढ़ जाने वाला।। निहत्ता हुकूमत से लड़जाने वाला। बसाने धुन में उजड़ जाने वाला।। बिना जुल्म की जिससे थर्रा गई है। जगाओ

वह बादल जो खेती पै बरखा को उट्ठे। वह सूरज जो धरती की सेवा को उट्ठे।। वह लाठी जो दुखियों की रक्षा को उट्ठे। वह हस्ती बचाने जो दुनिया को उट्ठे।। वह किश्ती जो तूफाँ में काम आ गई है। जगाओ

वह सुकरातो ईसा की जुरअत भी उसमें। श्री कृष्णो गौतम की शफकत भी उसमें।। मुहम्मद के दिल की हरारत भी उसमें। हुसैन इबने हैदर की हिम्मत भी उसमें।। अहिंसा तश्द्दुद से टकरा गई है।जगाओ

कोई उसके खूँ से न दामन भरेगा। बड़ा बोझ है सरपै क्यों कर धरेगा।। चिराग उसका दुशमन जो गुल भी करेगा। अमर है अमर वह भला क्या मरेगा।। हयात उसकी खुद मौत पर छा गई है।जगाओ

वह परवत वह बहरे-रवाँ सो रहा है। वह पीरी का अज्मे जवाँ सो रहा है।। वह अपने जहाँ का निशाँ सो रहा है। वह आजाद हिन्दोस्ताँ सो रहा है।। उठेगा, सहर मुझसे बतला गई है। जगाओ

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