(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)
सौभाग्य पारिवारिक जीवन में भी प्राप्त किया जा सकता है। माता के स्नेह, पिता के पथ प्रदर्शन, भाई की मृदुलता, बहिन की सच्ची सहानुभूति, पत्नि की सहृदयता, सेवा, और मूक प्रेम, छोटे बच्चों का वात्सल्य, इष्ट मित्रों का मनोरंजन, शिष्टता और सहायता-ये सब ऐसे देव दुर्लभ सुख हैं, जिन्हें हम इस पृथ्वी पर ही लूट सकते हैं। पारिवारिक जीवन के प्रधान अंग प्रेम पूर्वक स्मरण, पारस्परिक सद्भाव, मंगल कामना, एक दूसरे की सहायता, माता-पिता का आशीर्वाद, पुत्र का स्नेह, भगिनी का अभिमान, भाई का प्यार आदि हैं। परिवार एक पाठशाला है, एक शिक्षा संस्था है, जहाँ हमें स्व संस्कार, नीति संयम, और आत्म संस्कार के लिए उपयोगी निर्देश प्राप्त होते हैं।
अपने पारिवारिक सुख की वृद्धि के लिए यह स्मरण रखिये कि प्रत्येक व्यक्ति आत्मदमन के लिए प्रस्तुत रहे, अपने सुख की इतनी परवाह न करें, जितनी दूसरे की, व्यवहार में शिष्टता और उदारता रहे, सबके प्रति प्रसन्नता, स्नेह और कोमलता का व्यवहार रहे। द्वितीय गुण शिष्टता है। हम वैसा ही व्यवहार करें जैसा दूसरे से चाहते हैं। शिष्टता में विनय अथवा नम्रता भी सम्मिलित है। तीसरा गुण जो इनमें जोड़ा जा सकता है, वह प्रफुल्लता है। आप अपने परिवार में खूब हँसिये खेलिये क्रीड़ा कौतूहल कीजिए, परिवार में मनोरंजन के नए नए साधन जुटाइये। धर्म प्रवर्त्तक लूथर ने कहा है, ‘विनोद और साहस अर्थात् विचार पूर्ण विनोद मर्यादापूर्ण साहस वृद्ध और युवक के लिए उदासी की अच्छी दवा है।’
रूखापन जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। कई आदमियों का स्वभाव बड़ा नीरस, रूखा, शुष्क, निष्ठुर, कठोर और अनुदार होता है। उनकी आत्मीयता का दायरा बहुत ही छोटा होता है। उस दायरे के बाहर के व्यक्तियों तथा पदार्थों में उन्हें कुछ दिलचस्पी नहीं होती, किसी के हानि-लाभ, उन्नति-अवनति, खुशी-रंज, अच्छाई-बुराई से उन्हें कोई मतलब नहीं होता। अपने अत्यन्त ही छोटे दायरे में स्त्री, पुत्र, तिजोरी, मोटर मकान आदि में उन्हें थोड़ा रस जरूर मिलता है। शेष वस्तुओं के प्रति उनके मन में बहुत ही अनुदारतापूर्ण रुखाई होती है। कोई-2 तो इतने कंजूस होते हैं कि अपने शरीर के अतिरिक्त अपनी छाया पर भी उदारता या कृपा नहीं दिखाना चाहते। ऐसे रूखे आदमी यह समझ ही नहीं सकते कि मनुष्य जीवन में कोई आनन्द भी है। अपने रूखेपन के प्रत्युत्तर में दुनिया उन्हें बड़ी रूखी, नीरस, कर्कश, खुदगर्ज कठोर और कुरूप मालूम पड़ती है।
रूखापन जीवन की सबसे बड़ी कुरूपता है। रूखी रोटी में क्या मजा है, रूखे बाल कैसे भद्दे लगते हैं, रूखी मशीन में बड़ी आवाज होती है, पुर्जे जल्दी ही टूट जाते हैं। रूखे रेगिस्तान में कौन रहना पसन्द करेगा। प्राणिमात्र सरसता के लिए तरस रहा है। सौभाग्य के लिए सरसता, स्निग्धता की आवश्यकता है। मनुष्य का अन्तःकरण रसिक है, कवि है, भावुक है, सौंदर्य उपासक है, कलाप्रिय है, प्रेममय है। मानव-हृदय का यही गुण है। सहृदयता का अर्थ कोमलता, मधुरता, आर्द्रता है, जिनमें यह गुण नहीं उसे हृदयहीन कहा जाता है। हृदयहीन के अर्थ हैं ‘जड़-पशुओं से भी नीचा।’ नीरस व्यक्ति को पशुओं से भी नीचा माना गया है।
जिसने अपनी विचार-धारा और भावनाओं को शुष्क, नीरस और कठोर बना रक्खा है, वह मानव जीवन के वास्तविक रस का आस्वादन करने से वंचित ही रहेगा। उस बेचारे ने व्यर्थ ही जीवन धारण किया और वृथा ही मनुष्य शरीर को कलंकित किया। आनन्द का स्रोत सफलता की अनुभूतियों में है। परमात्मा को आनन्द मय कहा गया है। क्यों? इसलिए वह सरस है, प्रेममय है। श्रुति कहती है-ज्रसोवैसः’ अर्थात् परमात्मा रसमय है। उसे प्राप्त करने के लिए अपने अन्दर वैसी ही लचीली, कोमल, स्निग्ध, सरस भावनाएँ उत्पन्न करनी पड़ती हैं।
पारिवारिक जीवन में आप अपने हृदय को कोमल, द्रवित, पसीजने वाला, दयालु प्रेमी और सरस बनाइये। संसार के पदार्थों में जो सरसता का सौंदर्य का अपार भंडार भरा हुआ है, उसे ढूँढ़ना और प्राप्त करना सीखिये। अपनी भावनाओं को जब आप कोमल बना लेते हैं तो आपके अपने चारों और अमृत झरता हुआ अनुभव होने लगता है। जड़ वस्तुओं पर दृष्टि डालिये। प्रत्येक वस्तु अपने-2 ढंग की अनूठी है। वह अपने कलाकार की अमर कीर्ति का मूकवाणी द्वारा बड़ी ही भावुक भाषा में वर्णन कर रही है। मखमल सी घास, दूध के फेन से उज्ज्वल नदी नाले, हँसते हुए पुष्प, खिलौनों से सुन्दर कीट पतंग, माता सी दयालु गौएं, भाई से साथी बैल, वफादार सेवक से घोड़े, स्वामी भक्त कुत्ते, जापानी खिलौनों से चलते फिरते पक्षी आप अपने चारों ओर देख सकते हैं। सिनेमा की सी चलती बोलती तस्वीरें सब तरफ घूम रही हैं, नाटक का सा अभिनय स्थान-2 पर हो रहा है। प्रकृति के कोमल दृश्यों का कवित्वमय भावुकता के साथ यदि आप निरीक्षण करें तो सर्वत्र सौंदर्य की अजस्र धारायें बहती हुई दिखाई देंगी। तस्वीर सा यह सुन्दर संसार आपके दिल की मुरझाई हुई कली को हरी कर देने की परिपूर्ण क्षमता रखता है। भोले भाले मीठी मीठी बातें करते हुए बालक, प्रेम की प्रतिमायें, देवियाँ, अनुभव, ज्ञान और शुभ कामनाओं के प्रतीक वृद्धजन-यह सब ईश्वर की ऐसी आनन्दमय विभूतियाँ हैं जिन्हें देखकर मनुष्य का हृदय कमल को पुष्प के समान खिल जाना चाहिए।
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