किसी के उपदेश की सत्यता की जाँच लोग उसके आचरण से ही किया करते हैं। इसलिए यदि ज्ञानी पुरुष स्वयं कर्म न करेगा, तो वह सामान्य लोगों को आलसी बनाने का एक बहुत बड़ा कारण हो जायेगा।
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मनुष्य को अपने उद्धार के लिए स्वयं अपना दोष या मूर्खता स्वीकार करना अनिवार्य है।
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असन्तोष ही ऐश्वर्य का मूल है।
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