मेरी डायरी के पृष्ठों से-

March 1948

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(डॉ. गोपाल प्रसाद ‘वंशी’ वेतिया)

सच्चा मित्र वह है, जो मेरे शारीरिक और मानसिक दुखों की चाहे उपेक्षा कर जाय परन्तु मेरी आत्मा के पतन को सहन न करे।

आमोद-प्रमोद जीवन के आरम्भ का उफान है।

दया करना ऊँचा उठना है, परन्तु दया पात्र बनना अपने तेज को कम करना है।

सहानुभूति का अर्थ है-उसके दुख को अपना दुख समझने लगना। यदि सहानुभूति है तो फिर यह असंभव है कि मैं उसके दुख को दूर करने का कुछ भी प्रयत्न न करूं।

जिसके हृदय में दया नहीं, भगवान उस पर दया नहीं करते। सब जीव भगवान के परिवार हैं। जो व्यक्ति जीवमात्र की मंगल कामना के लिये सबसे अधिक चेष्टा करता है, वही भगवान का प्रियतम सेवक और श्रेष्ठ भक्त है।

हर एक की प्रवृत्ति में दया, करुणा और कुकर्म से अरुचि के अंकुर हैं, चाहे वह उन्हें सींचकर बढ़ा दे, चाहे सुखा दे। यह सब गुण केवल अभ्यास से पुष्ट होते हैं।

हमें जीवन इसलिये प्रदान किया गया है कि सद्विचार से और सत्कर्मों से उसे उन्नत करें और एक दिन अनन्त ज्योति में विलीन हो जायँ।

प्रार्थना अन्तःकरण का स्नान है। स्फूर्ति, पवित्रता, बल उसका फल है।

सुन्दरता रूप में है, गुण में है या देखने वाले की आँखों में है? यदि रूप में है तो लैला में कौन सा रूप था ? यदि गुण में है तो वेश्याओं के इतने उपासक क्यों हैं ? इतने तलाक क्यों दिये जाते हैं ? यदि देखने वाले में है तो फिर बाह्य जगत की क्या आवश्यकता है?

सुन्दरता वहीं है, जहाँ सत्य है। सुन्दरता वहीं है-जहाँ शिव है। सत्य सदा कल्याणकारी होता है। मनुष्य को वही वस्तु सुन्दर मालूम होती है, जिसमें उसका मन रम जाता है-मन को आनन्द और शान्ति प्रतीत होती है। आनन्द और शान्ति वास्तव में सत्य के ही परिणाम हैं, परन्तु स्थूल-बुद्धि-मनुष्य उन्हें रूप आदि बाह्य साधनों में देखने लगता है। इसलिए वह विलासी बन जाता है। यदि वह उसके तह तक पहुँच सके तो सच्चे सौंदर्य का उपयोग भी करेगा और उसकी वासना से भी दूर रहेगा।

दुखी आत्मा दूसरों की नेक नीयती पर सन्देह करने लगती है।

धर्म का अर्थ है-दुर्बलों की रक्षा करो। बलवानों का अत्याचार उन पर मत होने दो। न्याय और सत्य की सदैव धरण ग्रहण करो। अज्ञानियों के हृदय में ज्ञान की ज्योति का प्रचार करो। मूढ़जनों को चेतावनी दो कि वे उस महाप्रभु की मंगलमय सृष्टि में अपने सत्यों को पहचानें। अपने अधिकारों को मत नष्ट होने दो, उनकी रक्षा करो। अपने कर्त्तव्य पालन में डटे रहो। जीवन संग्राम में संभल-संभल कर अपने डग बढ़ा दो। धर्म का यही तत्व है।

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